Lal Krishna Advani Birthday: 14 साल की उम्र में बने स्वयंसेवक, BJP को मजबूत बनाने में निभाई बड़ी भूमिका

Lal Krishna Advani Birthday: पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्म आज ही के दिन 1927 में कराची के एक सिंधी परिवार में हुआ था। BJP को मजबूत बनाने में इनकी बड़ी भूमिका है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-11-08 12:01 IST

लालकृष्ण आडवाणी 14 साल की उम्र में बने स्वयंसेवक BJP को किया मजबूत: Photo- Social Media

Lal Krishna Advani Birthday: देश के सियासी परिदृश्य में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मजबूत बनाने में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (Former Deputy Prime Minister LK Advani) की बड़ी भूमिका मानी जाती है। आडवाणी का जन्म आज ही के दिन 1927 में कराची के एक सिंधी परिवार में हुआ था। 14 साल की उम्र में वे 1941 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक बन गए थे। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन संघ और पार्टी को मजबूत बनाने में लगा दिया। भाजपा की स्थापना के बाद उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर पार्टी को बुलंदी पर पहुंचाने के लिए काफी संघर्ष किया। यही कारण है कि भाजपा की सियासी मजबूती में उनका बड़ा योगदान माना जाता है।

आडवाणी को राम जन्मभूमि (Advani and Ram Janmabhoomi case)अभियान का शिल्पकार भी माना जाता रहा है। अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya, Ram Mandir) के निर्माण के लिए उन्होंने 1990 में सोमनाथ से रथयात्रा निकाली थी। इस रथयात्रा के बाद राम मंदिर आंदोलन को काफी ताकत मिली थी। इस रथयात्रा के बाद वे देश के सियासी परिदृश्य पर एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे थे। आज उनके जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई नेता उनके घर पहुंचे और देश, समाज और पार्टी के लिए किए गए उनके कामों को याद किया।

Lal Krishna Advani: Photo- Social Media

बंटवारे के समय पाकिस्तान से आया था परिवार

पाकिस्तान के कराची में पैदा होने वाले लालकृष्ण आडवाणी के पिता किशन चंद आडवाणी व्यापार किया करते थे। आडवाणी की शुरुआती पढ़ाई भी कराची में ही हुई। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आकर बस गया था। भारत आने के बाद उन्होंने हैदराबाद के के डी जी कॉलेज से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। बाद में उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की भी पढ़ाई की। 1965 में उनका विवाह कमला आडवाणी के साथ हुआ था। उनका एक बेटा जयंत और एक बेटी प्रतिभा है।

14 साल की उम्र में 1941 में वे संघ के स्वयंसेवक बने थे इसके बाद उन्होंने कराची में कई शाखाएं विकसित कीं। बाद में भारत आने के बाद वे भारतीय जनसंघ के सदस्य बने। आपातकाल के बाद जनसंघ समेत कई दलों का जनता पार्टी में विलय हो गया था। देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। हालांकि वैचारिक मतभेदों के कारण यह सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी। बाद में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।

भाजपा को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका

देश 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ दो सदस्यों तक सीमित रह गई थी मगर उसके बाद पार्टी को मजबूत बनाने में आडवाणी की बड़ी भूमिका मानी जाती है। आडवाणी ने देश में हिंदुत्व की विचारधारा को एकजुट करने और भाजपा की लोकप्रियता बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। 1990 में आडवाणी की ओर से निकाली गई रथयात्रा को देशभर में व्यापक समर्थन हासिल हुआ। इस रथयात्रा के दौरान देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आडवाणी के साथ थे। रथयात्रा के बाद आडवाणी वाजपेयी के साथ मिलकर भाजपा को ऊंचाइयों पर ले जाने पर में कामयाब रहे।

आडवाणी ने 1986 से 1991,1993 से 1996 और फिर 2004-2005 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका में पार्टी को मजबूत बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। उन्होंने विशेष रूप से संगठन को मजबूत बनाने पर फोकस किया और यही कारण है कि हर चुनाव में पार्टी का सियासी ग्राफ लगातार ऊंचा होता गया।

Lal Krishna Advani: Photo- Social Media

पार्टी में  निभाई बड़ी जिम्मेदारी

भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में देश में एनडीए की सरकार बनने पर लालकृष्ण आडवाणी को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने 1998 से 2004 तक एनडीए की सरकार में गृह मंत्री की भूमिका निभाई। इसी सरकार में 29 जून 2002 को उन्हें उपप्रधानमंत्री पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी।

10वीं और 14वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी उन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय संसद में रखी। 2009 में भाजपा की ओर से उन्हें पीएम पद का चेहरा भी बनाया गया था। हालांकि भाजपा यह चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो सकी और देश में मनमोहन सिंह की अगुवाई में दोबारा यूपीए की सरकार का गठन हुआ था। देश के प्रति उनके महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही 2015 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

जिन्ना विवाद ने पहुंचाया सियासी नुकसान

अपने सियासी जीवन के दौरान आडवाणी को एक विवाद ने काफी नुकसान पहुंचाया। उनके सियासी जीवन का ढलान उसी वक्त शुरू हो गया था जब 2005 में उन्होंने पाकिस्तान जाकर जिन्ना को सेकुलर बताया था। आडवाणी ने जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें सेकुलर और हिंदू-मुस्लिम एकता का दूत बताया था जिसे लेकर काफी विवाद पैदा हो गया था। उनकी छवि कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी नेता के रूप में थी मगर पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ करना उनकी छवि के बिल्कुल विपरीत था।

सियासी जानकारों का भी मानना है कि इस प्रकरण ने आडवाणी को सियासी रूप से काफी नुकसान पहुंचाया और वे अपने सियासी कोरियर में एक तरह से ढलान पर आ गए। भाजपा की ओर से भले ही उन्हें 2009 में प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया गया मगर उनकी दावेदारी में वह पुराना रंग नहीं दिख सका।

वे 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के भी खिलाफ थे। मोदी के मजबूत बनकर उभरने और अधिक अवस्था के कारण बाद में वे राजनीतिक परिदृश्य से किनारे हो गए। वैसे भाजपा के लगभग सभी नेताओं का मानना है कि पार्टी को बुलंदी पर पहुंचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से कभी इनकार नहीं किया जा सकता।

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