लॉकडाउन में बढ़ी असमानता, अंबानी के 1 पल की कमाई, मजदूर के 3 साल के बराबर

कोरोना और लॉक डाउन की आपदा का अवसर देश के चुनिंदा पूंजीपतियों को मिला है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी की संपत्ति में इस दौरान 35 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

Update:2021-01-28 21:07 IST
लॉकडाउन में बढ़ी असमानता, अंबानी के 1 सेकंड की कमाई मजदूर के 3 बरस की मेहनत

लखनऊ: कोरोना और लॉक डाउन की आपदा का अवसर देश के चुनिंदा पूंजीपतियों को मिला है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी की संपत्ति में इस दौरान 35 प्रतिशत वृद्धि हुई है। उन्होंने इस दौरान हर सेकंड में जितना रुपया कमाया है उतना एक मजदूर को कमाने के लिए तीन साल तक हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। ऑक्सफेम ने अपनी इस रिपोर्ट को द इनइक्वालिटी वायरस यानी " असमानता का विषाणु" कहा है। समता नेटवर्क ने भी बजट पूर्व सर्वे रिपोर्ट के आंकड़े जारी किए हैं जिसमें कहा गया है कि सरकारी योजनाओं को अधिक प्रभावशाली तरीके से चलाए जाने की जरूरत है।

आर्थिक विषमता की जानकारी

राजधानी लखनऊ में बृहस्पतिवार को ऑक्सफैम और समता नेटवर्क की ओर से मीडिया को बजट पूर्व सर्वे रिपोर्ट और कोरोना काल में बढ़ी आर्थिक विषमता की जानकारी दी गई। समता नेटवर्क के बजट पूर्व सर्वे रिपोर्ट की जानकारी उपासना त्रिपाठी ने दी। उन्होंने बताया कि सर्वे के अनुसार 92परसेंट लोग सस्ता राशन सभी के लिये चाहते हैं और 98 परसेंट लोग पेट्रोल,ईंधन,बिजली और खाने -पीने की वस्तुओं के दाम महंगे नहीं होने देना चाहते हैं। 82 प्रतिशत लोग बुलेट ट्रेन और सेंट्रल विस्टा (संसद पुनर्निर्माण) जैसे खर्चीले प्रोजेक्ट्स को फिलहाल रोकना या सीमित खर्च में चाहते हैं।

ऑक्सफेम के रीजनल मैनेजर नंदकिशोर सिंह कहा कि गैरबराबरी इतना तेज़ी से फैल रही है और नुकसान कर रही कि हमने इसे वायरस नाम दिया है। और ये रिपोर्ट सरकार के लिये भी अहम है कि वो आने वाले दिनों में इसकी निष्पत्तियों के हिसाब से अपनी नीतियां बना सके वरना जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसी समस्याओं को हल करने में मुश्किल होगी।

अमीर और अमीर हो रहे हैं गरीब तबाह

सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर ने इस मौके पर कहा कि अगर सरकार अमीरों के पक्ष में ही पॉलिसी बनाती रही और उन पर टैक्स बढ़ाने की बजाय घटाती रही तो हम ये मान लेंगे कि सरकार की मिलीभगत से ही अमीर और अमीर हो रहे हैं तथा गरीब तबाह। क्या यही सरकार का "आपदा में अवसर" था।

गिरी इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर व अर्थशास्त्री डॉक्टर सी एस वर्मा ने बताया कि इस रिपोर्ट से ज़ाहिर हो गया कि कॉरपोरेट और निजीकरण ,जिसकी पिछले बरसों में इतनी वाहवाही हो रही थी, दरअसल जब मुसीबत आयी तो उसने सबसे बड़ा धोखा दिया, यानी हमे पब्लिक सेक्टर को बचाना और मजबूत करना होगा, जिन देशों का पब्लिक हेल्थ और एडुकेशन सिस्टम मजबूत था वहां इतनी तबाही नहीं हुई।

माइग्रेंट लेबर सबसे ज़्यादा तबाह हुये

लखनऊ विश्विद्यालय की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉक्टर रोली मिश्रा ने कहा कि माइग्रेंट लेबर इस लॉक डाउन में सबसे ज़्यादा तबाह हुये और पहला ध्यान उनपर ही देने की ज़रूरत है मगर दुर्भाग्य है हमारे पास उनकी मौत तक के प्रॉपर आंकड़े नहीं हैं।

रिपोर्ट के दौरान हुई चर्चा में मशहूर व्यंग्यकार राजीव ध्यानी, यौन अल्पसंख्यक समुदाय के हितों पर कार्यरत आरिफ जाफ़र, ऑक्सफेम के बिनोद, दस्तक की संहिता, हिमांशु शुक्ला , आदर्श रस्तोगी , एम्स संस्था के संजय राय ,हसीन , शमीम आरज़ू ,मेहनाज़, आदि ने हिस्सा लिया और कहा कि इस रिपोर्ट के आंकड़ों को आम जनता तक पहुंचाने की ज़रूरत है तभी देश की आर्थिक नीतियां दुरुस्त की जा सकती हैं।

रिपोर्ट का सार

भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में वृद्धि के बीच करोड़ो लोगों की आजीविका क्षति

मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत के 100 अरबपतियों की संपदा में 12,97,822 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। इतनी राशि का वितरण यदि 13.8 करोड़ देश के सबसे निर्धन लोगों में हो तो इनमें से प्रत्येक को 94,045 रुपए का चेक दिया जा सकता है।

भारतीय अरबपतियों की संपत्ति लॉकडाऊन के दौरान ही 35 प्रतिशत बढ़ गई जबकि करोड़ों लोगों के लिए अजीविका का संकट छा गया।

कोविड महामारी के दौरान मुकेश अंबानी ने जो आय एक घंटे में अर्जित की उसे अर्जित करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार वर्ष लगेंगे, या जो आय मुकेश अंबानी ने एक सेंकड में अर्जित की उसे अर्जित करने में एक अकुशल मजदूर को तीन वर्ष लगेंगे। यह जानकारी आक्सफैम की रिपोर्ट ‘द इनइक्वालिटी वायरस’ (विषमता का विषाणु) के नवीनतम भारतीय सप्लीमैंट में दी गई है। यह नवीनतम रिपोर्ट विश्व आर्थिक मंच के ‘देवॉस संवाद’ के पहले दिन जारी की जा रही है।

जन स्वास्थ्य का संकट

कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्ष का सबसे बड़ा जन स्वास्थ्य का संकट रही है। इसके कारण जो अर्थिक संकट उत्पन्न हुआ वह 1930 के दशक की बड़ी आर्थिक मंदी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है।

आक्सफैम ने 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों द्वारा नए वैश्विक सर्वेक्षण को कमीशन किया। इससे पता चलता है कि इनमें से 87 प्रतिशत ने (जिनमें जैफरी सैक्स, जयति घोष व गैब्रिअल जुकमेन जैसे विशेषज्ञ शामिल है) कहा है कि उन्हें महामारी के कारण अपने देश में विषमता बढ़ने या अत्यधिक बढ़ने की आशंका है।

आक्सफैम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने कहा, "इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से कैसे अति धनी अभिजात स्वतंत्रता के बाद के सबसे बड़े आर्थिक संकट और मंदी के बीच भी बहुत संपदा संचय करते हैं जबकि करोड़ों लोग बहुत कठिनाई से गुजर-बसर करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि महामारी से कैसे पहले से मौजूद आर्थिक, जातिगत, सामाजिक, लैंगिक दूरियां और बढ़ रही हैं।"

बेहर ने आगे कहा, "आरंभ में मान्यता थी कि महामारी सबको एक समान प्रभावित करेगी, पर लॉक डाऊन लागू होने के बाद समाज में व्याप्त विषमताएं और खुल कर सामने आई।"

भारत ने अधिक शीघ्र लॉकडाऊन घोषित किया

महामारी आने के बाद भारत ने अनेक देशों की अपेक्षा अधिक शीघ्र लॉकडाऊन घोषित किया जो बहुत सख्त भी था। इसके क्रियान्वयन से अर्थव्यवस्था पंगु हो गई व बेरोजगारी, भूख, मजबूरी में की गई वापसी प्रवास-यात्रा व अन्य दुख-दर्द बहुत बढ़ गए। धनी लोग इस लॉकडाऊन के अधिक विकट असर से अपने को बचा सके। सफेदपोश कर्मियों ने आवास से कार्य करना आरंभ कर दिया। दूसरी ओर बहुत से भारतीयों की आजीविका छिन गई।

रिपोर्ट ने बताया है कि मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, शिव नादर, सायरस पूनावाला, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, सुनील मित्तल, राधाकृष्ण दमानी, कुमार मंगलम बिरला व लक्ष्मी मित्तल (जो कोयला, तेल, टेलीकॉम, दवा, शिक्षा व रिटेल आदि में कार्यरत हैं) जैसे अरबपतियों की संपत्ति मार्च 2020 के बाद महामारी और लॉकडाऊन के बीच तेजी से बढ़ी। दूसरी ओर अप्रैल 2020 में प्रति घंटे 170000 व्यक्तियों की दर से लोग रोजगार से वंचित होते रहे।

भारतीय अरबपतियों की संपत्ति

इंडिया सप्लीमैंट की रिपोर्ट में बताया गया है - धनी अधिक धनी हो गए: अंबानी ने जो अर्जित किया उससे भारत के 40 करोड़ अनौपचारिक मजदूरों को (जो महामारी के कारण गरीबी से नीचे धकेले जाने के खतरे में हैं) 5 महीने तक गरीबी की रेखा से ऊपर रखना संभव है।

भारतीय अरबपतियों की संपत्ति लॉकडाऊन के दौरान ही 35 प्रतिशत बढ़ गई। वर्ष 2009 से आकलन करें तो यह 90 प्रतिशत बढ़ते हुए 423 अरब डालर तक पहुंच गई, व भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस व फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया। भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में जो वृद्धि महामारी के दौरान हुई उससे मनरेगा व स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है।

अनौपचारिक मजदूरों पर सबसे विकट असर हुआ: 12.2 करोड़ ने रोजगार खोए, इनमें से 9.2 करोड (75 प्रतिशत) अनौपचारिक क्षेत्र के रहे।

अचानक लॉकडाऊन से जो बहुत से मजदूरों को वापसी प्रवास की यात्रा पैदल करनी पड़ी, व इस दौरान उन्हें जो मारपीट व कष्ट सहने पड़े उसने बड़ी मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया। लॉकडाऊन के दौरान भूख, आत्म-हत्या, अधिक थकान, दुर्घटना, पुलिस अत्याचार व समय पर इलाज न मिलने से 300 से अधिक अनौपचारिक मजदूर मारे गए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मात्र अप्रैल 2020 में ही मानवाधिकार उल्लंघन के 2582 मामले दर्ज किए।

शिक्षा में रुकावट

स्कूल बहुत समय तक बंद रहने के कारण, स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी होने की संभावना उत्पन्न हो गई (विशेषकर निर्धन वर्ग में)। केवल 4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर था व 15 प्रतिशत से भी कम के पास इंटरनेट कनेक्शन था।

डिजिटल शिक्षा हावी होने से इसकी परिधि से अधिक छात्र छूटने लगे। भारत के 20 प्रतिशत सबसे निर्धन परिवारों का आकलन करें तो इनमें से मात्र 2.7 प्रतिशत के पास कंप्यूटर था व मात्र 8.9 प्रतिशत के पास इंटरनेट उपलब्धि थी। केवल 15.5 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं कंप्यूटर या इंटरनेट का उपयोग करने में समर्थ पाई गईं। बच्चों की शिक्षा जारी रखने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत स्तर पर परिवारों पर पड़ गई व जिन परिवारों में शिक्षा व संसाधन थे उन्हें लाभ मिला। निजी स्तर पर डिजिटल शिक्षा प्रदान करने वालों की इस दौर में तेज वृद्धि हुई। इनमें बायजू की संपत्ति 10.8 अरब डालर आंकी गई व अनएकेडमी की संपदा 1.45 अरब डालर आंकी गई।

स्वास्थ्य विषमताएं

सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों का आकलन करें तो इनमें से मात्र 6 प्रतिशत को पृथक व बेहतर सैनिटेशन उपलब्ध है। भारत की 59.6 प्रतिशत आबादी को मात्र एक कमरे का (या उससे भी कम) आवास उपलब्ध है।

इसका अर्थ यह है कि अनेक बार हाथ धोने व दूरी बनाए रखने की सावधानियों को निभाना अधिकांश जनसंख्या के लिए संभव नहीं था। सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों के कोविड-19 के कार्य में लग जाने से निर्धन वर्ग की अनेक गर्भवती महिलाओं को जरूरी स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल सकी। अनेक निजी स्वास्थ्य संस्थानों ने बड़े पैमाने पर मुनाफाखोरी की। हालांकि सरकार ने गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के लिए कोविड के इलाज की व्यवस्था आयुष्मान भारत में की, पर अन्य कम आय व मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए (जिन्हें बीमा उपलब्ध नहीं था) कठिनाई बनी रही।

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महिलाओं ने अधिक कष्ट सहा

1.7 करोड़ महिलाओं का रोजगार अप्रैल 2020 में छिन गया। महिलाओं में बेरोजगारी दर लॉकडाऊन से पहले ही 15 प्रतिशत थी, इसमें 18 प्रतिशत की और वृद्धि हो गई।

महिलाओं की इस बेरोजगारी से 8 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद या 218 अरब डालर की क्षति हो सकती है। इसके अतिरिक्त महिलाओं पर भुगतान वाले व गैर-भुगतान वाले दोनों तरह के कार्य का बोझ बढ़ा है। उन्हें भुगतान में कमी के कारण अधिक घंटे काम करना पड़ा व घर पर अधिक कार्य बोझ संभालना पड़ा।

लॉकडाऊन के दौरान महिला-विरोधी हिंसा में वृद्धि: मार्च 25 और मई 31, 2020 के बीच राष्ट्रीय महिला आयोग को महिलाओं से घरेलू हिंसा की 1477 शिकायतें प्राप्त हुईं।

कठिन स्थितियों में आर्थिक संकट व अन्य चिंताओं के बीच महिलाओं के प्रति हिंसा की संभावना प्राय: बढ़ जाती है। जहां 2019 में घरेलू हिंसा के 2960 मामले दर्ज हुए, वहां वर्ष 2020 में नवंबर 30 तक ऐसे 4687 मामले दर्ज हुए (58 प्रतिशत वृद्धि)। सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (1576) दिल्ली (906) व बिहार (265) में दर्ज हुए।

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विश्व को अंदर तक हिला दिया

अमिताभ बेहर ने कहा, "इस महामारी ने विश्व को अंदर तक हिला दिया। इससे हमारी अर्थव्यवस्था व समाज की गंभीर विसंगतियां सामने आई हैं पर साथ ही एक न्यायसंगत व समता-आधारित दुनिया बनाने के लिए बदलाव की नीतियां अपनाने की जरूरत भी रेखांकित हुई। यदि सरकारें लोगों की जरूरतों के प्रति समर्पित है तो लोगों की जरूरतों की नए रचनात्मक उपायों से करना संभव है। अब समय आ गया है कि भारतीय सरकार ऐसे स्पष्ट व सुनिश्चित कदम उठाए जो बेहतर भविष्य के लिए जरूरी हैं। हम ऐसा भविष्य बना सकते हैं जो उन नागरिकों की आवाज से निर्धारित हो जो एक समता आधारित व न्यायसंगत भविष्य चाहते हैं।"

बेहर ने आगे कहा, "कोविड-19 के आगे के समय सबसे धनी व्यक्तियों व बड़ी कंपनियों पर अधिक टैक्स लगाने की ओर बढ़ना चाहिए। इस संकट से समतामूलक ढंग से उभरना है तो समाज के सबसे धनी सदस्यों पर अधिक टैक्स लगाना जरूरी है।"

बेहर ने कहा, "सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को सशक्त करने के लिए स्वास्थ्य के बजट आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाना जरूरी है, इलाज के लिए व्यक्तिगत स्तर पर खर्च जुटाने की मजबूरी को कम करना व स्वास्थ्य सेवा सुधार जरूरी है।"

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सरकारी खर्च में स्वास्थ्य बजट के हिस्से को देखें तो दुनिया के सब देशों में नीचे से भारत का चैथा स्थान है। महामारी के दौरान 11 प्रमुख अरबपतियों की संपत्ति में वृद्धि पर एक प्रतिशत टैक्स भी लगाया जाए तो जरूरतमंदों को सस्ती दवा उपलब्ध करवाने वाली जन औषधि स्कीम के आवंटन को 140 गुणा बढ़ाया जा सकता है।

कोविड़ महामारी ने युवा पीढ़ी के भविष्य की संकटग्रस्त किया है, क्योंकि अनेक छात्र (विशेषकर छात्राएं व निर्धन वर्ग के बच्चे) शिक्षा से वंचित होने की स्थिति में हैं। अत: 2020 वैश्विक शिक्षा सम्मेलन घोषणा के अनुरूप सार्वजनिक शिक्षा खर्च को बनाए रखना चाहिए या कम से कम इसमें कटौती नहीं करनी चाहिए।

अखिलेश तिवारी

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