एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती में लॉकडाउन, अरबों का कारोबार चौपट
एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बसी यानी स्लम है मुंबई की धारावी बस्ती। तंग और खिड़की विहीन घरों में लोग रहते हैं। इनके लिए हर दिन एक संघर्ष है और अब लॉकडाउन के समय इस विशाल झुग्गी बस्ती के निवासी अलग तरह के संकट से जूझ रहे हैं। जब से लॉकडाउन लगा है यहां रहने वालों की चिंता बढ़ गई है। अब लोगों के पास कोई काम नहीं है और खाने के लाले पड़े हैं।
मुंबई एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बसी यानी स्लम है मुंबई की धारावी बस्ती। तंग और खिड़की विहीन घरों में लोग रहते हैं। इनके लिए हर दिन एक संघर्ष है और अब लॉकडाउन के समय इस विशाल झुग्गी बस्ती के निवासी अलग तरह के संकट से जूझ रहे हैं। जब से लॉकडाउन लगा है यहां रहने वालों की चिंता बढ़ गई है। अब लोगों के पास कोई काम नहीं है और खाने के लाले पड़े हैं।
240 हेक्टेयर में फैली धारावी के करीब 10 लाख लोगों को घरों में बंद रखना कठिन काम है। कोरोना वायरस के कारण यह बस्ती संक्रमण के सबसे अधिक खतरे में भी है क्योंकि यहां आबादी घनी है। इस बस्ती में साफ सफाई भी सालों से चुनौती रही है। सैकड़ों लोग एक ही स्नानघर इस्तेमाल करते हैं, स्वच्छ पानी की गारंटी नहीं है और अब तो साबुन की भी सुविधा नहीं है।
इस बस्ती के लिए बीमारियाँ कोई नई बात नहीं हैं। दमा, मलेरिया,टाइफाइड, सिफ़लिस, टीबी – हर मर्ज से यहाँ के लोग वाकिफ और रूबरू हैं। संघर्षपूर्ण ज़िंदगी यहाँ रोज़मर्रा की बात है लेकिन कोविड-19 जैसी बीमारी से यहाँ के बाशिंदे हिले हुये हैं।
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झारखंड के रहने वाले प्रवासी श्रमिक नामचंद मंडल कहते हैं, कुछ भी हो सकता है। एक कमरे में हम नौ लोग हैं। हम लोग कभी भी खतरे में आ सकते हैं। धारावी में अब तक कोरोना वायरस महामारी के 300 मामले दर्ज किए जा चुके हैं लेकिन जानकारों को डर है कि आंकड़े बढ़ भी सकते हैं।
मुंबई की एक करोड़ बीस लाख आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा झुग्गी बस्तियों में रहता है। कोरोना वायरस से चिंतित लोग मास्क की जगह रुमाल या फिर आस्तीन से मुंह ढंक कर चलते हैं। कुछ लोगों ने गलियों को ठेले, डंडे और बोर्ड लगाकर बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिया है। फिर भी कई लोगों का कहना है कि उनके लिए छोटे कमरे में दिन भर रहना नामुमकिन है। ये वो कमरे हैं जिन्हें दिहाड़ी मजदूर पारी के हिसाब से इस्तेमाल करते आए हैं। झुग्गी बस्ती के भीतर जाने पर अनौपचारिक बाजार लगा मिलता है जहां कुछ लोग समय गुजारने के लिए शतरंज खेलते दिखते हैं या अपने मोबाइल पर वीडियो देखते। बच्चे भी बाहर क्रिकेट खेलते रहते हैं।
पुलिस की सख्ती
दिन चढ़ते ही पुलिस वाले लॉकडाउन लागू कराने के लिए पहुंच जाते हैं। पुलिस ऐसे लोगों को सजा देती है जो लॉकडाउन का पालन नहीं करते हैं। पुलिस उन्हें धूप में बिठा देती है, उठक-बैठक कराती है या फिर कई बार लाठी से मारती भी है। धारावी में एक पुलिस अधिकारी कहता है,;बहुत मुश्किल है, हमारी बात कोई नहीं सुनता है।
धंधा चौपट
धारावी में तरह तरह का समान बनाने की सैकड़ों यूनिट्स हैं। यहाँ की यूनिट्स में सालाना 70 अरब रुपये का कारोबार होता है। चमड़े के सामान, कपड़े, खिलौने, बर्तन, आभूषण, प्लास्टिक का सामान हर चीज यहाँ बनती है। एक अनुमान है की यहाँ 20 से 25 हजार यूनिट्स हैं।
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वर्क फ्राम होम
धारावी के बाशिंदों के लिए वर्क फ्राम होम हमेशा से रहा है। जहां लोग काम करते हैं वहीं उनका आशियाना है। काम, सोना, खाना बनाना, मनोरंजन, सब एक ही जगह होता है। ये मजबूरी है। ऐसे में सोशल डिस्टेन्सिंग यहाँ चाह कर भी लागू नहीं की जा सकती। यहां छोटे से क्षेत्रफल में बने फ़्लैट्स में कई हज़ार लोग रहते हैं। सामाजिक ताने बाने की बात करें तो इन इलाकों में लोगों का दिन में कई कई बार एक दूसरे के घरों में जाना आम बात है।
सैलानियों का संसार
धारावी इतना बड़ा और घने रूप से बसा है कि यहाँ की गलियों में घुमाने के लिए टूर डिज़ाइन किए जाते हैं। कल्पना से परे की ज़िंदगी को अपनी आँखों से देखने के लिए यहाँ सैलानियों की भीड़ उमड़ती है। हालाँकि लोगों की निजी ज़िंदगी में अड़चन पैदा ना करने के लिए टूर ऑपरेटर यहाँ फोटोग्राफी नहीं करने देते। ब्रिटिश काल में बसाई गई थी धारावी यह इलाका इतना सघन है कि यदि कोई अनजान आदमी इसमें घुस जाए तो शायद दिनभर में भी यहां से नहीं निकल सकेगा। इसी लिए धारावी दुनिया के सबसे सघन इलाकों में गिना भी जाता है।
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धारावी आधुनिक मुंबई की देन नहीं है बल्कि ये ब्रिटिश काल में बसाई गई थी। 1884 में अंग्रेजों के काल में बसाई गई इस बस्ती में फैक्ट्री और दूसरी जगहों पर काम करने वाले मजदूर रहते थे।समय के साथ साथ यहां पर बाहर से आने वाले लोगों की तादाद बढ़ती चली गई। धीरे-धीरे ये कम खर्च में सिर के ऊपर छत चाहने वालों का सबसे आसान ठिकाना भी बन गई।धारावी के सघन होने की वजह से यहां पर पहले भी महामारी फैलने का इतिहास रहा है। 1896 में जब प्लेग का साया देश और विदेश पर पड़ा था तो इससे धारावी भी अछूता नहीं रहा था। इसने मुंबई की आधी आबादी को लील लिया