Lok Bharti National Campaign: मंगल-परिवार राष्ट्रीय अभियान

Lok Bharti National Campaign: लोक भारती ने इस महान संकल्प की सिद्धि के लिए प्रथम पाठशाला परिवार को 'मंगल परिवार' बनाने की दिशा में प्रेरित कर सुगठित, सशक्त एवं समर्थ बनाने का अभियान प्रारम्भ किया है।

Newstrack :  Network
Update: 2024-07-05 16:56 GMT

Lok Bharti National Campaign

हो मंगल परिवार हमारा, मंगलमय हो परिसर सारा।

अन्न, वायु, जल होवें मंगल, जन-जन के हम बनें सहारा।।

Lok Bharti National Campaign: किसी भी राष्ट्र के निर्माण का आधार वहाँ का व्यक्ति होता है। व्यक्तिके निर्माण का आधार मनुष्य की प्रथम पाठशाला हमारा परिवार है। जिस राष्ट्र का व्यक्ति, परिवार और समाज यह तीनों सुसंगठित, सशक्त व समर्थ होते हैं, वह राष्ट्र ही विश्व को "वसुधैव कुटुम्बकम" के मार्ग पर प्रशस्त कर सकता है। लोक भारती ने इस महान संकल्प की सिद्धि के लिए प्रथम पाठशाला परिवार को 'मंगल परिवार' बनाने की दिशा में प्रेरित कर सुगठित, सशक्त एवं समर्थ बनाने का अभियान प्रारम्भ किया है। इस हेतु लोक भारती द्वारा यहाँ पर कुछ मार्गदर्शी विषयों को लिया गया है, जिन्हें कार्यकर्ता अपनी स्थिति, सामर्थ्य, सहयोग और सहभाग के अनुरूप अपने परिवारिक जीवन में समायोजित कर प्रेरणादायी स्वरूप में प्रस्तुत कर समाज को दिशा एवं दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। इस हेतु प्राथमिककरणीय प्रस्तुत हैं-

स्वच्छता - घर एवं घर के परिसर में सफाई रखना, सफाई बनी रहे. इस हेतु कूड़ादान की व्यवस्था करना तथा स्वच्छता रखने का हमारा स्वभाव बने, इस हेतु आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक है। दैनिक गतिविधियों एवं कार्यक्रमों में पालीथीन मुक्त व्यवस्था बनाना और दूसरों को भी प्रेरित करना हमारा दायित्व है। जिस कार्य से गंदगी होती हो, पर्यावरण प्रदूषित होता हो, उन सभी कार्यों को रोकना तथा उनके विकल्प प्रस्तुत करना भी आवश्यक है। इस अभियान को और प्रभावी बनाने के लिए हम अपने क्षेत्र के देवस्थानों, पार्कों, विद्यालयों को स्वच्छता के लिए चुन सकते हैं। इसके साथ ही अपने क्षेत्र में आयोजित होने वाले भण्डारों को पर्यावरण के अनुरूप स्वच्छ एवं व्यवस्थित बना सकते हैं, जैसे लखनऊ में जेठ माह के बड़े मंगल के भण्डारों में कार्य किया गया है।


हरित कचरा प्रबन्धन- स्वच्छता का अगला कदम घर में निकलने वाले हरे कचरे को घर पर ही निस्तारण के लिए हरित कचरा पात्र की व्यवस्था है। फल, सब्जी के छिलके, उनकी हरी पत्तियों तथा गमलों एवं रसोई वाटिका की कटिंग आदि से तरल खाद बनाने हेतु अपने घर में तरल खाद वाले डिब्बे का प्रयोग करें, जिसमें प्रारम्भिक कुछ दिनों तक जैविक कल्चर का प्रयोग किया जाता है, जिससे इस डिब्बे से दुर्गन्ध मुक्त तरल खाद प्रतिमाह 4 से5 बोतल प्राप्त होती है। प्राप्त तरल खाद में बीस गुना पानी मिलाकरअपनी रसोई वाटिका में सिंचाई के साथ प्रयोग करें। सामान्यतः एक परिवार में यह डिब्बा 2 साल में भरता है, भरने पर डिब्बे में लगी जालीदार बोरी की मदद से शेष बचे ठोस पदार्थ को बाहर निकाल कर सुखा लें। और उसका प्रयोग भी सूखी खाद के रुप में गमलों में करें।


इसके साथ ही घर में रसोई वाटिका बनायें।और घर में पैदा हुई ताजी सब्जियां खायें।दुर्गन्ध से वायुमण्डल को बचायें और गर्व से कहें कि बाहर फैल रही दुर्गन्ध में हमारे परिवार की हिस्सेदारी नहीं है। इसके साथ ही यह भी गर्व का विषय होगा कि हमारे घर से बाहर जाने वाले 70 प्रतिशत कचरे को मैं अपने घर पर ही निस्तारित कर लेता हूँ। मन्दिर जैसे स्थान के लिए बड़े पात्रों की आवश्यकता होगी। जहाँ देखभाल की समुचित व्यवस्था हो, वही इसका प्रयोग उपयोगी होगा। सार्वजनिक स्थानों पर यह प्रयोग करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि वहाँ कोई उसके प्रति उत्तरदायी नहीं होता।


हरियाली - घर के वायुमण्डल संरक्षण हेतु हरियाली व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस हेतु गृह वाटिका, रसोई वाटिका, औषधिवाटिका, पंचपल्लव, पंचवटी, हरिशंकरी, आरोग्यत्रयी, फलदार, फूलदार, औषधीय एवं लताजन्य पौधे तथा शाकभाजी आदि लगाने की व्यवस्था प्रत्येक घर में होनी चाहिए। घर के अतिरिक्त विद्यालय, गाँव, कालोनी, आफिस या किसी भी संस्थान के परिसर में मंगल वाटिका के साथ हीस्थानीय पर्यावरण एवं अपनी आवश्यकता के अनुकूल पौधों का रोपण कर सकते हैं। गाँव में देव वन, की व्यवस्था भी करनी चाहिए।


जल प्रबन्धन- जल का संयमित उपयोग, जल का पुनः उपयोग, वर्षा जल का संचयन, भण्डारण एवं रिचार्जिंग संरचना का निर्माण प्रत्येक घर मेंआवश्यक है। यही कार्य अपने गाँव, कालोनी या संस्थान में भी करें। गाँव में तो तालाबों को पुनर्जीवित करना, उस तालाब में जल की व्यवस्था, चारों ओर वृक्षारोपण एवं स्वच्छता की व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए उसे पवित्र तालाब घोषित करना महत्वपूर्ण कार्य है, जिस पर कोई गंदगी नहीं करेगा। उसके निकट कोई शौच नहीं जायेगा। इसके अतिरिक्त गाँव के निकट कोई भी जल स्रोत / नदी हो तो उसके पुनर्जीवन के लिए कार्य करना आवश्यक है, जिससे वर्षा जल भण्डारण, भूगर्भ जल भरण एवं भू जल स्तर सुधार में गति आ सके।


गौ आधारित उत्पादों का प्रयोग- अपने घर में देशी गाय के दूध, दही, मक्खन एवं घी का प्रयोग अवश्य हो, वहीं घर में जन्म लेने वाले बच्चे और उसकी माँ के लिए आवश्यक रूप से गौ उत्पाद एवं गौ आधारित कृषि उत्पादों में अनाज, दालें, तेल, फल, सब्जी आदि जिस मात्रा में उपलब्ध हों, उसका प्रयोग आवश्यक रूप से प्रारम्भ करें। मौखिक रूप से गौ को माँ बोलने और उसकी पूजा के स्थान पर गौ माता के लिए अपने घर से कार्य प्रारंभ करें। जो परिवार खेती करते हैं, वह कम से कम अपने खाने के लिए गौ आधारित प्राकृतिक कृषि अवश्य प्रारम्भ करें। अच्छा होगा कि हम स्वयं अपने से सम्बन्धित सभी परिवारों, गौ पालकों, गौ संवर्धन एवं गौआधारित प्राकृतिक कृषि में लगे बन्धुओं के लिए प्रेरणा केन्द्र बनें।


परिवार भाव - किसी भी उच्च व श्रेष्ठ परिवार के कुछ सद्‌गुण होते हैं, जैसे बड़ों का आदर, छोटों की देखभाल। परिवार के सभी सदस्यों का दिन में एक समय भोजन अथवा जलपान साथ-साथ हो। जो परिवार के सदस्य एक ही नगर में अलग-अलग घरों, कालोनियों में रहते हैं, वे महीने में एक बार सपरिवार एक साथ मिलें, अपने आराध्य का स्मरण करें साथ-साथ भोजन जलपान करें। बच्चों को पारिवारिक सम्बन्धों की जानकारी दें।उन्हें सम्बन्धों के अनुसार व्यवहार करने का अभ्यास करायें। हमारे कार्यऔर व्यवहार से विश्व बाजार नहीं, विश्व परिवार बने ऐसा प्रयास करें।हमारा परिवार हम दो हमारे दो नहीं, अपितु हमारे परिवार का व्यापक स्वरूप है, जिसमें नाते-रिश्तेदार, मोहल्ले या गाँव के सदस्य तथा अन्यजीव-जन्तु व पेड-पौधे तक होते हैं। गाँव हमारा एक बड़ा परिवार है, इस भावना को जगाने और सुदृढ़ करने के विभिन्न कार्य एवं कार्यक्रम हम करें।


जीवनचर्या - स्वस्थ शरीर से ही स्वस्थ कार्य सम्पन्न होता है और स्वस्थ कार्य से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। अतः इसके लिए हमारी दिनचर्या, ऋतुचर्या नियमित व्यवस्थित होना आवश्यक है। बीमारी से बचाव करना अच्छा है। इस हेतु समय से जागरण, प्रातः सायं भ्रमण, योग, व्यायाम एवं खान-पान आदि पर ध्यान देना आवश्यक एवं उपयोगी है।जहाँ हम व्यक्तिगत जीवन चर्या का विचार करते हैं, वहीं परिवार एवं गाँव की भी जीवन चर्या का विचार करें।


संस्कार - संस्कार जीवन की पूँजी है। संस्कारों से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः अपने परिवार में उन सब संस्कारों की व्यवस्था अपनी दिनचर्या में जोड़ें जो हम अपने बच्चों में देखना चाहते हैं। इस हेतु उन्हें महापुरुषों, ग्रन्थों एवं परम्पराओं की ठीक जानकारी देना, जीवन में उनका सम्मान करना तथा उसके अनुरूप जीवन में आचरण एवं तद्नुरूप जीवन के आचरण एवं तद्नुरुप कार्यक्रम करना आवश्यक है। समूहगत संस्कारों की योजना रचना करना भी आवश्यक है।


सेवा कार्य- हमारा कार्य समाज को जोड़ने, सुसंगठित कर समर्थ और तेजस्वी बनाने का है, जो मंगल परिवार से प्रारम्भ होकर "वसुधैवकुटुम्बकम" तक जाता है। इस में सबसे बड़ा बाधक अहंकार है, जो समाज को तोड़ने का कार्य करता है। इसीलिए हमारा ध्येय वाक्य 'मैं नहीं'हम है।' अहंकार का शमन सेवा से होता है। इसीलिए सेवा को परमोधर्मः कहा गया है। अतः जीवन को उन्नत बनाने के लिए जीवन में कोई न कोई सेवा का ऐसा कार्य लेना चाहिए, जिसमें परहित के साथ, स्वयं को आनन्द और दूसरों को प्रेरणा मिले। यही कार्य अपने परिवार, गाँव एवं कालोनी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भी किए जा सकते हैं। हम अपने हित का कोई भी कार्य करें, उसमें यदि यह ध्यान रखें कि इससे किसी अन्य व्यक्ति, समाज या जीव को संकट न पैदा हो, तो यह बहुत बड़ी सेवा होगी। यह हमारा, हमारे परिवार और इष्ट मित्रों का स्वभाव बने, ऐसा प्रयास करना होगा।उपरोक्त कार्यों से हमारा घर, हमारा परिवार, हमारा परिसर, हमारी कालोनी , हमारा गाँव मंगलमय होगा और समाज का उर्ध्वगामी विकासहोगा, जो हमारे राष्ट्र के उत्थान का आधार बनेगा। ऐसे प्रयास के प्रत्यक्ष परिणाम देखने हों तो विभिन्न ग्रामों में आयोजित हुए अनेक 'ग्राम संस्कृति उत्सव’ प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

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