महापरिनिर्वाण मंदिर जहां भगवान बुद्ध ने किया था अंतिम विश्राम
पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद मुख्यालय गोरखपुर से 51 किमी की दूरी पर पूर्व दिशा में 28 राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अंतर्राष्ट्रीय स्तर का धार्मिक व ऐतिहासिक पर्यटन स्थल।
दुर्गेश पार्थसारथी
पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद मुख्यालय गोरखपुर से 51 किमी की दूरी पर पूर्व दिशा में 28 राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अंतर्राष्ट्रीय स्तर का धार्मिक व ऐतिहासिक पर्यटन स्थल। यह स्थल जहां काल के क्रूर हाथों से विध्वंश हुए अनेक राजवंशों के उतार-चढ़ाव को आंचल में समेंटे अपने पुरातन वैभव की गौरव गाथा सुना रहा है, वहीं भगवान बुद्ध ने इसे अपने निर्वाण स्थल के रूप में चुन कर इसके धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया है।
निर्वाण के लिए भगवान बुद्ध चुना था कुशी नगर को
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राजकुमार से भिक्षु बने गौतम बुद्ध मगध राज्य की राजधानी वैशाली से चल कर गांवों-नगरों के जन सैलाब को अपने आध्यात्मिक ज्ञा की अलौकिक आभा से आलोकित करते हुए अब अपने शिष्यों समेत कुशी नगर की धरती पर पहुंचे तब उनके एक शिष्य ने पूछा- भगवन! आप बड़े-बड़े धार्मिक नगरों में भ्रमण करते रहे, परंतु जीवन के अंतिम क्षणों में निर्माण के लिए कुशी नगर जेसे छोटे नगर को क्यों चुना है, तब शाक्यमुनि भगवान बुद्ध ने कहा- भंते! ' कुशी नगर को छोटा मत कहो। यह नगर पवित्र होने के साथ-साथ मुझे प्यारा भी है। इसीलिए हमने इसे निर्वाण स्थल के चुना है।' भगवान बुद्ध कबे प्रिय नगर की इसी धरा पर बौद्ध विहारों के ध्वंशावशेषों के बीच स्थित है तथागत का महापरिनिर्वाण मंदिर।
मंदिर के अंदर प्रतिष्ठित है बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा
कुशी नगर स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर भू-तल से लगभग 2.74 मीटर ऊंचे चबूरते पर बना है। बताया जाता है कि इसी स्थान पर तथागत भगवान बुद्ध का निर्वाण (मृत्यु) बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुआ था। वास्तु कला की दृष्टि से उच्चकोटि के इस मंदिर के गर्भगृह में गुप्त कालीन ईटों द्वारा निर्मित अलंकृत आधार पर करीब 6.10 मीटर लंबी भगवान बुद्ध की सोई हुई प्रतिमा है। जिसे कलाकार ने प्रतिमा के माध्यम से शयन की मुद्रा में भगवान बुद्ध को निर्वाण प्राप्त करते हुए दिखाने का सफल प्रयास किया है। इस प्रतिमा को तत्कालीन मूर्ति कला की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं।
पुरातत्वविद एसी क्लाइकल ने 1877-80 ई. में करवाई थी खुदाई
इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल की प्रहचान प्रसिद्ध पुरातत्वविद् सर एलेक्जेंडर कनंघम ने 1861-62 ई में किया था। जबकि इस स्थल की खुदाई सर्वप्रथम एसी क्लाइकल द्वारा 1877-80 ई. में कराई गयी। इसके बाद डॉ. जेपी बोगेल 1904-07 ई. और पं. हीरानंद शास्त्री के कुशल नेतृत्व में 1910-11 ई. में कराई गयी थी।
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यही पर बना था पहला स्तूप
कुशी नगर की खुदाई से प्राप्त महापरिनिर्वाण मंदिर के अतिरिक्त 19-21 मीटर ऊंचा स्तूप मिला। यही स्तूप कुशी नगर का मुख्य स्तूप है। इसी स्थान पर यहां के मल्ल राजाओं ने बुद्ध के अवशेषों को रख कर स्तूप का निर्माण करवाया था। संभवत: यही पर पहला स्तूप का निर्माण हुआ था। कालांतर में वर्मा के बौद्ध धर्मावलंबियों ने इस स्तूप का पुनर्निर्माण कराया जो मुख्य मंदिर के पीछे छत्र युक्त अपने अतीत पर गौरवान्वित होता खड़ा मुस्करा रहा है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी देखा था स्तूप
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में इस स्तूप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि 200 फिट ऊंचा स्तूप अत्यंत कलात्मक ढंग से निर्मित था। इसके आसपास अनेक बौद्ध बिहार एवं एक चौकोर लघु स्तूप था, जिस पर निर्वाण प्राप्ति के बाद तथागत के निर्जीव शीर को लोगों के दर्शनार्थ आठ दिनों तक रखा गया था। और इस स्थान से पूरे राजकीय सम्मान के साथ तथागत की शव यात्रा निकाली गई थी, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं, आम जन सहित राज परिवार भी शामिल था।
हरिवल स्वामी ने करवाया था प्रतिमा का निर्माण
विस्तृत भूभाग में फैले रंग बिरंगे फूलों से सजे पुराताव्तिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बरामदे युक्त इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। अहिंसा के पुजारी शांति के अग्रदूत तथागत की छवि को दर्शाती इस मंदिर में प्रतिष्ठित यह प्रतिमा बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती है। इस मूर्ति में गजब का आध्यात्कि आकर्षण है। बताया जाता है कि इस प्रतिमा का निर्माण हरिवल स्वामी नामक बौद्ध भिक्षु ने कराया था। चबूतरे के मुख्य फलक पर शोकातुर बौद्ध भिक्षुओं को बड़े ही सजीव ढंग से दिखाने का प्रयास किया है।
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खंडहरों में गूंजते हैं बुद्ध के अंतिम उपदेश
यदि मनुष्य मशीनी कोलाहल एवं निजी जीवन के भाग-दौड़ से फब चुका हे और शांति की तलाश में इधर-उधर भटक रहा हो तो वह इस स्थान पर एक बार अवश्य आये और मंदिर परिसर में ध्यान गोय की मुद्रा में चित को केंद्रित कर कुछ देर आंख बूंद कर बैठे तो उसे मन की शंति अवश्य मिलेगी। ऐसा लगेगा जैसे आज भी वर्षों पूर्व दिया गया तथागत का उपदेश प्रकृति की मधुर संगीत के साथ कुशी नगर के खंडहरों में सुनाई दे रहा है, जिससे आंतरिक एवं बाह्य काया पुलकित हो उठेगी।