मसाला किंग धर्मपाल: दुकान से MDH ब्रांड का मालिक बनने का सफर, ऐसी है कहानी

भारतीय मसाला बाजार के किंग कहे जाने वाले पद्मभूषण धर्मपाल गुलाटी का 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। धर्मपाल गुलाटी को व्यापार और उद्योग खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Update: 2020-12-03 04:39 GMT
मसाला किंग धर्मपाल: दुकान से MDH ब्रांड का मालिक बनने का सफर, ऐसी है कहानी

नई दिल्ली: भारतीय मसाला बाजार के किंग कहे जाने वाले पद्मभूषण धर्मपाल गुलाटी का 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। गुलाटी पिछले कुछ दिनों से माता चंदा देवी अस्पताल में भर्ती थे। पिछले साल ही धर्मपाल गुलाटी को व्यापार और उद्योग खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह ऐसे व्यक्ति थे जो अपना विज्ञापन स्वंय करते थें। उन्हें दुनिया का सबसे उम्रदराज ऐड स्टार माना जाता था।

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पाकिस्तान के सियालकोट में पिता चलाते थे दुकान

देश के बंटवारे के पहले उनके पिता ने 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में एक दुकान खोली थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में पहुंचकर गुलाटी ने करोलबाग में मसाले का छोटा सा काम शुरू किया। वह ज्यादा पढे लिखे नहीं थे खुद बताते थें कि उन्होेंने कक्षा पांच तक पढाई की है। पर घरेलू कारणो से वह आगे की पढाई नही कर सकें।

1500 करोड़ रुपये का सम्राज्य

एमडीएच यानी की महाशियां दी हट्टी कंपनी 1500 करोड़ रुपये का सम्राज्य खड़ी कर चुकी है। जिसमे 15 फैक्ट्रियां, 1000 डीलर्स के अलावा। वह सामाजिक सेवा में सदैव आगे रहते थें। उनकी देखरेख में 20 स्कूल और एक अस्पताल भी चल रहे थें। एमडीएच मसाले के आफिस देश में ही बल्कि लंदन और दुबई में भी हैं। यह कम्पनी 100 से ज्यादा देशों में अपने मसाले सप्लाई करती है।

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धरमपाल गुलाटी कक्षा पांचवीं तक पढ़े थे। आगे की पढ़ाई के लिए वह स्कूल नहीं गए। उन्होंने भले ही किताबी शिक्षा अधिक ना ली हो, लेकिन कारोबार में बड़े-बड़े दिग्गज उनका लोहा मानते थे। उनकी कम्पनी का टर्नओवर लगभग 21 करोड़ का बताया गया था। वह अपना व्यवसाय खुद देखते थें। गुलाटी आज भी रोज दफ्तर और फैक्ट्री जाते हैं और खुद डीलरों से मुलाकात करते हैं। कुछ साल पहले धर्मपाल की कंपनी महाशियां दी हट्टी ने 213 करोड़ का मुनाफा कमाया।

श्रीधर अग्निहोत्री

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