अंतरिक्ष मिशन 'मंगलयान' ने 3 साल पहले दुनिया में रचा इतिहास, इस तरह मिली सफलता
भारत के अंतरिक्ष मिशन मंगलयान ने रविवार (24 सितंबर) को अपने तीन साल पूरे कर लिए हैं। मंगल यात्रा पर 5 नवंबर 2013 को भेजे गए 'मंगलयान' ने 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया था।
नई दिल्ली : भारत के अंतरिक्ष मिशन मंगलयान ने रविवार (24 सितंबर) को अपने तीन साल पूरे कर लिए हैं। मंगल यात्रा पर 5 नवंबर 2013 को भेजे गए 'मंगलयान' ने 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया था।
इसके साथ ही भारत अपने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंच जाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। मंगल पर पहुंचने वाले अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों को कई प्रयासों के बाद ये सफलता मिली थी।
जब हुई मंगल अभियान की घोषणा
भारत के मंगल अभियान की पहली औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2012 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में की थी। उन्होंने कहा था कि 'मंगलयान विज्ञान और टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बड़ा कदम होगा'। उसके बाद से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में सैटेलाइट विकसित किया।
मंगलयान से जुड़ी बातें
मंगलयान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। दोपहर 2 बजकर 39 मिनट पर PSLV C-25 'मार्स ऑर्बिटर' नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष रवाना किया गया। इस मंगल मिशन को 28 अक्टूबर को ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन खराब मौसम के कारण वैज्ञानिकों ने लॉन्चिंग 5 नवंबर तक टाल दी थी।
ऐतिहासिक सफलता के लिए पीएम ने दी बधाई
जैसे मंगलयान के सफल प्रक्षेपण की खबर आई। देशभर में लोगों ने बंधाइयों दी। इसकी शुरुआत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। हालांकि, चौंकाने वाली बात यह थी कि इसरो के आधिकारिक घोषणा से करीब आधे घंटे पहले ही उन्होंने वैज्ञानिकों को इसकी बधाई दे दी। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने मिशन मंगल की सफल शुरुआत के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने खुद फोन पर इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के.राधाकृष्णन को इसरो की इस ऐतिहासिक सफलता के लिए बधाई दी। सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज ने भी इसरो के वैज्ञानिकों को शुक्रिया कहा।
500 से अधिक वैज्ञानिकों ने किया काम
इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को 'मार्स ऑर्बिटर' मिशन नाम दिया। इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा गया। भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ रुपये का खर्च आया। इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया था।
1960 से 45 मिशन लॉन्च
इसरो के पूर्व चेयरमैन के. राधाकृष्णन ने कहा था कि भारत का मंगल अभियान वास्तव में 'टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन' करने वाला है, जिससे दुनिया को यह दिखाया जा सकेगा कि भारत दूसरे ग्रहों तक भी छलांग लगा सकता है। उन्होंने कहा अब तक सिर्फ रूस, जापान, चीन, अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मंगल ग्रह तक जाने की कोशिश की है, जिनमें से सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को सफलता मिली है। 1960 से 45 मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं, जिनमें एक-तिहाई असफल रहे। 2011 में चीन के मिशन की असफलता सबसे ताजा उदाहरण है।