One Nation, One Election: मायावती से जगन रेड्डी तक..., विपक्ष की ये पार्टियां क्यों कर रहीं वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन, क्या है इनसाइड स्टोरी?
One Nation, One Election: लोकसभा में पेश वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पर सियासी बहस तेज हो गई है। जहां सत्ताधारी दल इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों का बड़ा गठबंधन इसे अस्वीकार कर रहा है। हालांकि, कुछ विपक्षी पार्टियां इस विधेयक का समर्थन कर रही हैं।
One Nation, One Election: लोकसभा में पेश वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पर सियासी बहस तेज हो गई है। जहां सत्ताधारी दल इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों का बड़ा गठबंधन इसे अस्वीकार कर रहा है। हालांकि, कुछ विपक्षी पार्टियां इस विधेयक का समर्थन कर रही हैं, और यह उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को लेकर सवाल उठाता है। उदाहरण के लिए, जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर, जो आंध्र प्रदेश में विपक्ष में है, ने इस बिल का समर्थन किया है। इसी तरह, मायावती की पार्टी, जो हमेशा बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ती रही है, ने भी वन नेशन-वन इलेक्शन के पक्ष में अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
इसके अलावा, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी इस बिल के समर्थन में अपनी बात रखी है। हालांकि, बीजेडी ने इस पर वोटिंग के दौरान पार्टी का रुख क्या होगा, इस पर अभी तक कोई आधिकारिक फैसला नहीं लिया है।
मायावती क्यों कर रही समर्थन?
लोकसभा में शून्य सदस्यों वाली मायावती की पार्टी भी विधेयक का समर्थन कर रही। पार्टी का कहना है, इस विधेयक को समर्थन देने के पीछे तीन मुख्य कारण बताए हैं। पहला, चुनावी चंदा। उनका कहना है कि उनकी पार्टी को बड़े उद्योगपतियों से चंदा नहीं मिलता, जिससे अलग-अलग चुनावों के खर्चे में दिक्कत आती है। दूसरा, क्रेडिट की लड़ाई। 2007 में जब इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी, तब मायावती ने सबसे पहले इसका समर्थन किया था, और अब वह इसके विरोध में नहीं जाना चाहती।
YSR ने क्यों किया सपोर्ट
जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक का समर्थन किया है। पार्टी ने इसे राष्ट्रहित में बताते हुए पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। हालांकि वाईएसआर आंध्र प्रदेश की राजनीति में सक्रिय है और एनडीए के विरोध में खड़ी है, फिर भी यह सवाल उठ रहा है कि पार्टी इस विधेयक का समर्थन क्यों कर रही है।
दरअसल, आंध्र प्रदेश में पहले से ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं। वाईएसआर के लिए विरोध करने से कोई खास राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि उसका अपना प्रभाव राज्य की राजनीति में सीमित है। इसके अलावा, पार्टी के लिए आंध्र में अपनी स्थिति मजबूत करना भी अहम है, क्योंकि पिछले चुनावों में वाईएसआर के दो सांसद पार्टी छोड़ चुके हैं। इसलिए पार्टी को अपने अस्तित्व की रक्षा की चुनौती भी है।
नवीन पटनायक के सामने है भारी चुनौती
नवीन पटनायक ने तीन महीने पहले वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पर विचार करने की बात की थी, लेकिन अब तक इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। पटनायक की पार्टी बीजेडी के पास राज्यसभा में सात सांसद हैं और उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने सांसदों को बीजेपी के साथ जाने से रोकना है। ओडिशा में हाल ही में चर्चा थी कि बीजेडी के सांसद बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, हालांकि पार्टी ने इसे नकारा है। पटनायक को इस मुद्दे पर खुले तौर पर अपनी राय देने से बचना पड़ रहा है, ताकि वोटिंग के दौरान उनका पूरा दल एनडीए की तरफ न खिसक जाए।