मेघालय: क्या है रैट माइनिंग, कोयला खदान में फंसे हैं 15 मजदूर
मेघालय की एक अवैध कोयला खदान में 15 मजदूरों को फंसे हुए अब दो हफ्ते होने को हैं लेकिन तमाम दिक्कतों के चलते अभी तक उन्हें नहीं निकाला जा सका है। दरअसल खदान में पानी भरने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं। शिलॉन्ग से करीब 3 घंटे के सफर के बाद लुमथारी गांव की एक कोयला खदान में 13 दिसंबर से ये मजदूर फंसे हुए हैं।
नई दिल्ली: मेघालय की एक अवैध कोयला खदान में 15 मजदूरों को फंसे हुए अब दो हफ्ते होने को हैं लेकिन तमाम दिक्कतों के चलते अभी तक उन्हें नहीं निकाला जा सका है। दरअसल खदान में पानी भरने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं। शिलॉन्ग से करीब 3 घंटे के सफर के बाद लुमथारी गांव की एक कोयला खदान में 13 दिसंबर से ये मजदूर फंसे हुए हैं। इन्हें बचाने की कोशिशें जारी हैं।जिस खदान में ये मजदूर फंसे हैं उस खदान में रैट माइनिंग के जरिए कोयले का खनन किया जा रहा था। जोकि एक पुरानी और बेहद ही खतरनाक खनन प्रक्रिया होती है।
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क्या है रैट माइनिंग
मेघालय में जयंतिया पहाड़ियों के इलाके में बहुत सी गैरकानूनी कोयला खदाने हैं। लेकिन पहाड़ियों पर होने के चलते और यहां मशीने ले जाने से बचने के चलते सीधे मजदूरों से काम लेना ज्यादा आसान पड़ता है। मजदूर लेटकर इन खदानों में घुसते हैं। चूंकि मजदूर चूहों की तरह इन खदानों में घुसते हैं इसलिए इसे 'रैट माइनिंग' कहा जाता है। बच्चे ऐसे काम के लिए मुफीद माने जाते हैं। हालांकि कई NGO इस प्रक्रिया में बाल मजदूरी का आरोप भी लगा चुके हैं।न कोयला खदानों के मालिक और डीलर तो स्थानीय हैं, लेकिन अपनी जान जोखिम में डालकर खदान के अंदर जाने वाले ज्यादातर मजदूर बाहरी हैं। आमतौर पर वे नेपाल, बांग्लादेश और असम से आते हैं।
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मेघालय में कोयला खनन का मुद्दा राजनीतिक है। इस साल फरवरी में विधानसभा चुनावों में भी इसका जोर था। चुनाव में कांग्रेस इसीलिए हारी क्योंकि उसने एनजीटी का बैन हटवाने के लिए कुछ नहीं किया।बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि 8 महीने के अंदर इस मुद्दे का समाधान निकालेंगे। हालांकि बैन अभी भी जारी है।
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