मोदी सरकार का एमएसपी दांवः फायदा किसान का या पांच राज्यों के वोट बैंक का

याद करें चार साल पहले किसानों की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 2022 में देश अपनी स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाएगा और वह किसानों की आय दोगुनी करने की योजना पर काम कर रहे हैं। 2022 आने में अब केवल एक साल बचा हैं।

Update:2021-01-28 18:42 IST
मोदी सरकार का एमएसपी दांवः फायदा किसान का या पांच राज्यों के वोट बैंक का

रामकृष्ण वाजपेयी

एमएसपी के खेल में सरकार का आत्मघाती कदम। जब दिल्ली में किसान आंदोलन अपने चरम पर है मोदी सरकार ने दक्षिण भारत 12 तटीय राज्यों के किसानों को नारियल (कोपरा) पर एमएसपी बढ़ाकर तोहफा दिया है। सरकार का दावा है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया गया। सरकार ने किसानों की 40 साल पुरानी मांग को पूरा किया है। मोदी सरकार का यह भी आरोप है कि यूपीए सरकार ने लंबे वक्त तक स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू नहीं किया था। कोपरा की एमएसपी में 375 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है. पहले एमएसपी 9960 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब 10335 रुपये कर दी गई है।

केंद्र सरकार का एमएसपी का दांव महत्वपूर्ण है

2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए तमिलनाडु, केरल, असम, पुडुचेरी और प. बंगाल के किसानों का वोट बैंक मजबूत करने की दृष्टि से केंद्र सरकार का एमएसपी का दांव महत्वपूर्ण है। सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इस साल के मध्य तक होने वाले पांच-छह राज्यों के चुनावों को देखते हुए सरकार का यह फैसला महत्वपूर्ण है। शायद सरकार यह साबित करना चाहती है कि देश का किसान उसके साथ है।

चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजनीति के चौसर पर बिसात सजा रहे हैं ऐसे में ये कहा जा सकता है कि पंजाब, हरियाणा के किसानों का आंदोलन गलत समय पर हुआ। इन दोनो ही राज्यों में चुनाव होने में अभी काफी समय है। लिहाजा इन राज्यों के किसानों को लेकर सरकार ज्यादा दबाव में नहीं है।

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किसान आंदोलन ने सरकार की छवि बिगाड़कर रख दी

याद करें चार साल पहले किसानों की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 2022 में देश अपनी स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाएगा और वह किसानों की आय दोगुनी करने की योजना पर काम कर रहे हैं। 2022 आने में अब केवल एक साल बचा हैं। लेकिन किसान आंदोलन ने सरकार की छवि बिगाड़कर रख दी है। किसान अपनी आय को लेकर भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। उसे समझ नहीं आ रहा कि उसकी आय में कितनी बढ़ोतरी हुई है।

अब अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के नजरिये से देखें तो पिछले दस साल में कुछ फसलों की एमएसपी 2.5 गुना से 3 गुना तक बढ़ी है। ज्वार मालदंडी की एमएसपी दस सालों में 2.93 गुना और सोयाबीन पीला की एमएसपी 2.69 गुना बढ़ी है।

धान की बात करें तो 2010-11 में सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 1 हजार रुपये प्रति कुंतल था जो 2020-21 में 1868 रुपये प्रति कुंतल हो गया है। ग्रेड ए धान का एमएसपी 2010-11 के 1030 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 2020-21 में 1868 रुपये प्रति कुंतल हो गया है। एमएसपी में फायदा दोगुना होता नजर आ रहा है। कुछ फसलों का एमएसपी ढाई गुना से अधिक बढ़ा है. गेहूं और धान की एमएसपी में डेढ़ गुना की बढ़ोतरी हुई है।

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आंदोलनकारी किसानों की मांग मान ली जानी चाहिए

लेकिन एमएसपी बढ़ाकर किसानों की आय बढ़ाने का खेल घातक है यदि ये सही है तब तो आंदोलनकारी किसानों की मांग मान ली जानी चाहिए। सरकार भूलकर रही है। यहां एक बात ध्यान देने की है कि 55 वर्ष पहले एमएसपी की शुरुआत का आधार बनाने वाली एलके झा कमेटी ने कहा था कि सरप्लस इकोनॉमी के लिए एमएसपी अभिशाप बन जाएगा।

देश में झा कमेटी की अनुशंसा तो लागू हो गई, लेकिन सरकार विशेषज्ञों के इस संकट को भूल गई,कि सरप्लस इकोनोमी के लिए एमएसपी घातक है। दरअसल पिछले पचास 55 वर्षों में इसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। जिसकी शुरूआत खाद्यान्न जरूरत से हुई थी, वह बाद में एक सीमित क्षेत्र के किसानों के लाभ तक सीमित हुआ और फिर धीरे-धीरे राजनीतिक मुद्दा बन गया।

एमएसपी टूल का बढ़ता दुरुपयोग चिंता का विषय

एक कृषि अर्थशास्त्री का कहना है कि गरीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने के एमएसपी टूल का बढ़ता दुरुपयोग चिंता का विषय है। राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्र तक में इसे शामिल कर लाभ लेने की कोशिश की गई। चुनाव के पूर्व फसलों के एमएसपी में अभूतपूर्व वृद्धि की जाती रही हैं। समर्थन मूल्य का निर्धारण करने वाली संस्था कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों को दरकिनार कर सत्तारुढ़ दलों ने इसे संशोधित किया जाता है।

सरकार किसानों की मदद जरूर करे। लेकिन एमएसपी के तौर-तरीके, प्रासंगिकता और उसके उपयोग पर व्यापक चर्चा की जरूरत है। अगर सरकार एमएसपी का राजनीतिक स्वार्थों के लिए दुरुपयोग करेगी तो नतीजे घातक होंगे।

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एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर जंग छिड़ी है। इसे कानूनी गारंटी बनाने की मांग उठी है। राजनीतिक जंग भी छिड़ी है। ऐसे में एमएसपी से खिलवाड़ घातक होगा इसके गलत संदेश जाएंगे। चुनाव के पहले मतदाता में घूसखोरी की आदत पड़ेगी।

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