Mohan Bhagwat Statement: वर्ण और जाति जैसी व्यवस्था अतीत हैं, इसे भूल जाओ - मोहन भागवत

Mohan Bhagwat Statement: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है, कि वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए।

Update: 2022-10-08 09:33 GMT

Mohan Bhagwat Statement(image social media)

Mohan Bhagwat Statement: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए। नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है। डॉ. मदन कुलकर्णी और डॉ. रेणुका बोकारे द्वारा लिखित वज्रसुची टंक में, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा थी।

इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम सामने आए। इस दावे का उल्लेख करते हुए कि वर्ण और जाति व्यवस्था में मूल रूप से भेदभाव नहीं था और इसके उपयोग थे, श्री भागवत ने कहा कि अगर आज किसी ने इन संस्थानों के बारे में पूछा, तो जवाब होना चाहिए कि "यह अतीत है, इसे भूल जाओ। आरएसएस प्रमुख ने कहा, "भेदभाव पैदा करने वाली हर चीज का ताला, स्टॉक और बैरल खत्म हो जाना चाहिए।

यह भी कहा कि पिछली पीढ़ियों ने हर जगह गलतियां की हैं और भारत कोई अपवाद नहीं है। भागवत ने कहा उन गलतियों को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। और अगर आप सोचते हैं कि हमारे पूर्वजों ने गलतियां की हैं, यह स्वीकार करने से वे हीन हो जाएंगे, ऐसा नहीं होगा क्योंकि सभी के पूर्वजों ने गलतियां की हैं। इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयदशमी उत्सव में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अल्पसंख्यक समाज को लेकर बड़ा बयान दिया था।

उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यक समाज के लोगों में बिना किसी कारण के एक डर खड़ा किया जाता है कि संघ या अन्य संगठित हिंदू उनके लिए खतरा बन सकते हैं। संघ प्रमुख ने अल्पसंख्यक समाज को आश्वस्त करने के अंदाज में कहा कि अतीत में ऐसा न तो कभी हुआ है और न भविष्य में होगा। संघ प्रमुख के इस बयान को सियासी नजरिए से काफी अहम माना गया था। दरअसल मुस्लिमों को लेकर संघ के विचारों में हाल के दिनों में बड़ा बदलाव आता दिख रहा है। संघ प्रमुख के बुधवार को दिए गए महत्वपूर्ण भाषण को भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है।

संघ प्रमुख भागवत ने पिछले दिनों मुस्लिम समाज से जुड़े हुए कई बुद्धिजीवियों से भी मुलाकात की थी और उनके साथ सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत बनाने के उपायों पर गंभीर मंथन किया था। बंद कमरे में चली इस बैठक के दौरान दोनों समुदायों के बीच संबंध सुधारने पर भी चर्चा हुई थी। संघ प्रमुख ने एक मस्जिद और मदरसे का दौरा करके मुस्लिम समुदाय से जुड़े धार्मिक नेताओं के साथ लंबी चर्चा भी की थी। सियासी जानकार भी संघ प्रमुख की इन कोशिशों को संघ की नीतियों में बड़े बदलाव के तौर पर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसका बड़ा असर दिख सकता है।

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