Muharram Procession: जम्मू-कश्मीर की बदलती तस्वीर, 34 साल बाद निकाला गया मुहर्रम का जुलूस, जानें क्यों लगा था प्रतिबंध

Muharram Procession: जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदल रही है। यहां 34 साल बाद प्रतिबंधित मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। जुलूस में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया था।

Update:2023-07-28 12:34 IST
Muharram Procession (Image- Social Media)

Muharram Procession: जम्मू-कश्मीर में कल तीन दशकों प्रतिबंध के बाद, शियाओं ने श्रीनगर में 8वें मुहर्रम का जुलूस निकाला। पैगम्बर मुहम्मद की जय-जयकार के साथ सीना ठोककर और हज़रत इमाम हुसैन को याद करते हुए यह ऐतिहासिक जुलूस निकाला गया। यह जुलूस कड़ी सुरक्षा में शहर के गुरु बाजार से शुरू होकर डलगेट तक शांतिपूर्वक गुजारा गया था।

34 साल बाद निकाला गया जुलूस

शिया समुदाय के इस ऐतिहासिक जुलूस को 34 साल के लंबे इंतजार के बाद निकाला गया था। जुलूस में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया था। सभी ने काले कपड़े पहने थे। न किसी ने राजनीतिक नारेबाजी की, न किसी ने आजादी समर्थक या राष्ट्रविरोधी नारे लगाए। इसके साथ ही अलगाववादियों के झंडे और पोस्टर भी नहीं थे। इस तरह पूरी शांति और धार्मिक श्रद्धा के साथ जुलूस निकाला गया। ऐसे में साफ नजर आ रहा है कि जम्मू-कश्मीर में धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं। वहां पर स्थिति सामान्य हो रही है।

लोगों ने की प्रशासन की तारीफ

प्रशासन की ओर से जुलूस निकालने का समय सुबह छह से आठ बजे तक का था। लेकिन लोगों की संख्या और स्थिति को देखते हुए इसे 11 बजे तक बढ़ा दिया गया था। प्रशासन ने पहले से ही जुलूस को लेकर आयोजक यादगार-ए-हुसैन कमेटी के सामने राजनीति या राष्ट्रविरोधी नारेबाजी न होने की शर्त रख दी थी। जिसके चलते शांति में जुलूस निकाला गया। जुलूस के दौरान पारंपरिक मार्ग से प्रतिबंध हटाने पर कश्मीर के लोगों ने प्रशासन की खूब तारीफ की।

क्यों लगा था जुलूस पर प्रतिबंध

कश्मीर में 34 साल के लंबे इंतजार के बाद ये जुलूस निकाला गया था। दरअसल साल 1988 के बाद आठवें मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। साल 1989 में मुहर्रम के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत हो गई थी। ऐसे में कश्मीर में बिगड़ते हालात को देखते हुए आठ मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला गया था।

इसके बाद 1990 में आतंकी हिंसा और अलगाववाद का दौर शुरू हो गया। जुलूस में शिया श्रद्धालुओं के बजाय आतंकी संगठन JKLF और हुर्रियत के पूर्व चेयरमैन मौलवी अब्बास अंसारी के समर्थक ही ज्यादा होते थे। जिसके जुलूस में सांप्रदायिक हिंसा होने लगी थी।

43 साल बाद बदले हालात

जुलूस की आड़ में होने वाली अलगाववादी सियासत को रोकने के लिए प्रशासन ने जुलूस पर रोक लगा दी। इसके बावजूद जबरन जुलूस निकालने पर पुलिस के साथ हिंसक झड़पें होती थी। जिसके कारण मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

साल 1988 तक आठ मुहर्रम का जुलूस गुरु बाजार से शुरू होकर हरि सिंह हाई स्ट्रीट, लाल चौक, बरबरशाह, नवापोरा और खानयार से होते हुए इमामबाड़ा में संपन्न होता था। बाद में इसका मार्ग बदलकर डलगेट तक सीमित कर दिया गया था। अब 34 साल बाद हालात बदलने पर फिर से शांतिपूर्वक जुलूस निकाला गया।

क्यों मनाया जाता है मुहर्रम

इस्लाम धर्म में शिया लोगों के लिए मुहर्रम बेहद खास होता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम का पर्व मुहर्रम मनाया जाता है। इस दिन हजरत इमाम हुसैन के अनुयायी खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन को याद करते हैं और मातम मनाते हैं।

इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे।

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