विनोद कपूर
लखनऊ : देश के दो बड़े यादव राजनीतिक कुनबे। बिहार में लालू प्रसाद यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव। बिहार में लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख तो यूपी में मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के मुखिया। दोनों कुनबे की हालत एक जैसी। यूपी में मुलायम के बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल सिंह यादव में पार्टी में वर्चस्व का संघर्ष तो बिहार में लालू के दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच यही हाल।
दोनों जगह सत्ता का संघर्ष घर से निकल मीडिया तक आया। यूपी में मुलायम सिंह यादव पहले भाई के साथ दिखे तो बाद में बेटे को आशीर्वाद दे डाला। बेटे ने भी पिता को ऐसी पटखनी दी कि उन्हें अध्यक्ष पद से ही हटा दिया और खुद अध्यक्ष बन गए। मीडिया और विपक्षी नेताओं ने अखिलेश को औरंगजेब तक की संज्ञा दे दी जिसने दिल्ली की सत्ता पाने के लिए अपने पिता को आगरा के लाल किले में कैद कर डाल दिया था। बीजेपी में नरेंद्र मोदी के आने के बाद जिस तरह 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया था, उसीतरह अखिलेश ने भी पिता को समाजवादी पार्टी का संरक्षक बना दिया।
घर में ही अगर सत्ता का केंद्र बना रहे तो परिवार के लोगों की महत्वाकांक्षा बढ़ ही जाती है। समाजवादी पार्टी पर कब्जे की बात तो निर्वाचन आयोग तक पहुंच गई, जहां इसके संस्थापक मुूलायम सिंह यादव को हार का मुंह देखना पडा क्योंकि पार्टी के सभी विधायक और सांसद अखिलेश यादव के साथ थे। पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह साइकिल पर अखिलेश यादव का कब्जा हो गया।
बिहार में भी लालू प्रसाद परिवार में ऐसे ही हालात बन रहे हैं। लालू प्रसाद चाारा घोटाले में जेल की लंबी सजा भुगत रहे हैं। बडे बेटे तेज प्रताप की शादी के दो दिन पहले ही उन्हें 6 सप्ताह की छुट्टी मिली थी। वो समय भी अब पूरा हो रहा है। उन्होंने बहुत सोच समझ कर अपने 8वीं पास बेटे की शादी एक राजनीतिक परिवार में की। तेज प्रताप की शादी बिहार के सीएम रहे दारोगा प्रसाद राय की पौत्री ऐश्वर्या से हुई।
केंद्र में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जब विपक्ष पूरी तरह से बेबस नजर आ रहा था, तब लालू प्रसाद यादव ने पिछले साल अगस्त में रैली कर पूरे विपक्ष को एक मंच पर आने का न्योता दिया। लालू के मंच पर सभी आए तो 2014 के बाद पहली बार लगा कि सिर्फ लालू प्रसाद में ही ये ताकत कि वो विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैंं। लेकिन वो ज्यादा कुछ कर पाते इससे पहले ही चारा घोटाले मामले में सुनवाई शुरू हो गई और कुल पांच में से चार मामलों में उन्हें सजा सुना दी गई। अब तो वो संभवत: अगले लोकसभा चुनाव में प्रचार भी नहीं कर पाएंगे। शारीरिक रूप से भी अब वो कई बीमारी के कारण अक्षम ही नजर आते हैं। उनके नहीं रहने पर राजद की कमान दोनों बेटे के हाथ आ गई। छोटा बेटा तेजस्वी राजनीतिक रूप से ज्यादा तेज तर्रार है। इसीलिए जब बिहार में महागठबंधन की सरकार थी तब उसे उपमुख्यमंत्री बनाया गया था जबकि बडे बेटे तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री। नीतिश ने जब पिछले साल जुलाई में बीजेपी के साथ सरकार बनाई तो उसके बाद दो उपचुनाव हुए। एक लोकसभा और एक विधानसभा। तेजस्वी के नेतृत्व में राजद ने दोनों सीटें जीतीं। विधानसभा की एक सीट तो तेजस्वी ने नीतिश की पार्टी जदयू से छीनी भी।
बिहार में नीतिश के नेतृत्व में जब महागठबंधन की सरकार थी तब लालू प्रसाद के समधी चन्द्रिका राय भी मंत्री थे। चंद्रिका राय राजद के विधायक हैं। विवाह का एक मकसद ये भी था कि राजनीति में अगर बच्चों के कदम डगमगाए तो उसे संभाल लें।
लालू के दोनों बेटों के बीच भी पार्टी पर कब्जे का संघर्ष चल रहा है। जिस पर वो कोई लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। छोटा भाई बड़े भाई की बात नहीं मानता तो खिन्न हो बड़ा भाई राजपाट छोड़ द्वारका जाने की धमकी देता है। वो खुद को कृष्ण तो छोटे को अर्जुन मानता है।
यूपी में तो पारिवारिक झगडे ने अखिलेश को सत्ता से दूर कर दिया लेकिन क्या बिहार में भी ऐसा ही होगा? बिहार में विधानसभा का अगला चुनाव 2020 में होना है और चारा घोटाले में जेल जाने के बावजूद उस राज्य के लोग उन्हें अपराधी नहीं मानते। उनके प्रति लोगों की सहानुभूति बढी है। जिसका असर अगले विधानसभा चुनाव में दिखना तय है लेकिन बात वो ही परिवार के झगड़े पर आ जाती है जिसका खामियाजा यूपी में मुलायम परिवार ने भुगता था।