लॉकडाउन बढ़ने पर मुस्लिम धर्म गुरु ने कही ये बात, रमज़ान को लेकर दिया संदेश 

मस्जिद में सिर्फ वही लोग तराबीह पढ़ेंगे जो इस वक्त पांचों वक्त की नमाज़ पढ़ रहे हैं। रमज़ान का चांद दिखाई देने में अब लगभग 13 दिन बचे हैं। लेकिन चांद दिखाई देने के साथ ही तराबीह शुरु हो जाती हैं।

Update:2020-04-11 17:56 IST

नई दिल्ली: पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉकडाउन को बढ़ाये जाने और सीएम अरविंद केजरीवाल द्वारा इस कदम को सही बताये जाने की खबर के बाद धर्मगुरुओं का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो सभी मुसलमान अपने घरों में ही तराबीह पढ़ें। मस्जिद में सिर्फ वही लोग तराबीह पढ़ेंगे जो इस वक्त पांचों वक्त की नमाज़ पढ़ रहे हैं। रमज़ान का चांद दिखाई देने में अब लगभग 13 दिन बचे हैं। लेकिन चांद दिखाई देने के साथ ही तराबीह शुरु हो जाती हैं।

देवबंद से आया मैसेज, तराबीह घरों में ही पढ़ी जाएगी

दारुल उलूम देवबंद के पीआरओ अरशद उस्मानी का इस बारे में कहना है कि अगर देश में लॉकडाउन की मियाद बढ़ाई जाती है तो रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली तराबीह घरों में ही पढ़ी जाएगी। बाकी जो नेशनल लेवल पर पॉलिसी बनाई जाएगी उसका पालन किया जाएगा।

मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कही यह बात

इस बारे में जब मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली से बात की गई तो उनका कहना था कि पहले तो हम यह देखेंगे कि लॉकडाउन की मियाद बढ़ाने के साथ सरकार और क्या ऐलान करती है। उसी के हिसाब से रमज़ान को लेकर कुछ तय किया जाएगा। बाकी यह तो तय है ही कि जिस तरह से आजकल कुछ लोग मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे हैं उसी तरह से तराबीह भी पढ़ी जाएगी। इसमे इमाम साहब, मुआज्ज़िन समेत दो-चार और लोग शामिल होते हैं।

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बरेली के मुफ्ती सलीम नूरी को है ऐलान का इंतज़ार

बरेली शरीफ के मीडिया पर्सन मुफ्ती सलीम नूरी का इस बारे में कहना है कि अभी तक लॉकडाउन की मियाद बढ़ाने को लेकर कोई सरकारी ऐलान नहीं हुआ है। हम ऐलान का इंतज़ार कर रहे हैं। जैसा, जो भी ऐलान होगा उसे देशहित में कबूल करेंगे और उसी के हिसाब तय किया जाएगा।

जानें क्या होती है तराबीह

रमज़ान का चांद दिखाई देने के साथ उसी रात से तराबीह शुरु हो जाती हैं। तराबीह के दौरान कुरान पाक पढ़ा जाता है। जिस तरह से नमाज़ होती है ठीक वैसे ही तराबीह भी पढ़ी जाती है। हाफिज़ कुरान पढ़ते हैं और उनके पीछे खड़े लोग उसे सुनते हैं। नमाज़ की तरह से सजदा भी किया जाता है। कुरान पूरा पढ़े जाने के दिन भी हर मस्जिद में अलग-अलग होते हैं। कहीं रोजाना 5-6 घंटे पढ़कर 5 दिन में पूरा पढ़ लिया जाता है तो कहीं 22 से 28 दिन में भी पूरा किया जाता है।

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