असम में चुनाव नतीजे बदलने की हैसियत रखते हैं मुस्लिम वोट
जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें पश्चिम बंगाल और केरल के साथ ही असम ही ऐसा राज्य है, जहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत देश में जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा है।
लखनऊ: असम में चुनावी माहौल अब बनने लगा है और नए नए गठबंधन तैयार हो रहे हैं। भाजपा के सामने असम में अपनी सरकार रिपीट करने की है। वहीं कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए एड़ी छोटी का जोर लगा रही है। भाजपा की नार्थ ईस्ट नीति में असम बेहद महत्वपूर्ण है सो कोई ढील देने का सवाल नहीं उठता। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ने एक महागठबंधन बनाया है और इसका फोकस सीएए और एनआरसी के विरोध से फायदा उठाने पर है। अब असम में दो नए राजनीतिक दल सामने आये हैं जिनके नाम असम जातीय परिषद् और रैजोर दल हैं। ये दोनों ही दल अपनी पैदाइश 2019 में असम में हुए सीएए विरोध को बताते हैं।
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मुस्लिम वोट
जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें पश्चिम बंगाल और केरल के साथ ही असम ही ऐसा राज्य है, जहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत देश में जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल और केरल की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 27-27 फीसदी है, जबकि असम में यह 34 फीसदी है। यही वह तथ्य है, जो भाजपा की राह का रोड़ा बन सकता है। पिछले चुनाव में भाजपा को हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण और मुस्लिम वोटों के बंटवारे का फायदा मिला था। असम में चुनावी नतीजों पर असर डालने में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका हमेशा ही अहम रही है। असम में 34 जिलों में से नौ - धुबरी, बरपेटा, ग्वालपाड़ा, दर्रांग, करीमगंज, हल्लाकांडी, मोरीगांव, नगांव व बोगाइगांव में मुसलमान बहुसंख्यक हैं। इन्हीं वोटों पर कांग्रेस और उसके सहयोगियों की नजर है।
ध्रुवीकरण का माहौल
असम सांप्रदायिक आधार पर भी ध्रुवीकरण निश्चित है। वैसे तो प्रमुख मुद्दा बांग्लादेश से असम में घुसे लोगों का है। लेकिन चूँकि काफी बड़ी संख्या में हिन्दू बांग्लादेश से आये हैं सो ध्रुवीकरण इस आधार पर भी होगा। असम के स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्त मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने उस समय एक दिशा भी दे दी जब उन्होंने हाल में कहा कि भाजपा को असम में बंगाली मूल के मुस्लिम समुदाय से वोट की जरूरत नहीं है। बोलचाल की भाषा में उन्हें ‘मियां’ मुस्लिम जाना जाता है। सरमा ने कहा कि ये तथाकथित मिया लोग बहुत ही सांप्रदायिक हैं।
वे असमिया संस्कृति और भाषा से छेड़छाड़ करने की कई गतिविधियों में शामिल हैं। इसलिए मैं उनके वोट से विधायक नहीं बनना चाहता। अगर वे मेरे लिए वोट करेंगे तो मैं विधानसभा में नहीं बैठूंगा। जो लोग असमिया संस्कृति और भाषा के साथ ही समूची भारतीय संस्कृति को चुनौती दे रहे हैं, वह हमें वोट ना दें। सरमा ने कहा कि भाजपा उन लोगों को टिकट नहीं देगी जो खुद को मियां मुस्लिम बताते हैं।
एक तो स्वदेशी असमिया मुस्लिम हैं, जो आमतौर पर भाजपा को वोट देते हैं
सरमा ने कहा जब हम असम में मुसलमानों की बात करते हैं तो ये दो तरह के हैं- एक तो स्वदेशी असमिया मुस्लिम हैं, जो आमतौर पर भाजपा को वोट देते हैं और भले ही वे हमें वोट नहीं देते हैं, लेकिन वे हमारी संस्कृति और विरासत से जुड़े हैं। जबकि एक श्रेणी उन लोगों की है जिनका एनआरसी में अब तक ठीक से नाम भी नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने समुदाय के विकास के लिए काम किया है लेकिन यह उन्हें वोट नहीं देते। सरमा ने कहा 126 सीटों में से 100 सीट जीतने के लक्ष्य पर समुदाय के वोट का कोई असर नहीं पड़ेगा।
मामला गिनती का
असम सरकार का कहना है कि राज्य में मुस्लिम आबादी 1.30 करोड़ है जिसमें से 90 लाख बांग्लादेशी मूल के हैं। बाकी 40 लाख लोग मुख्य रूप से चार जनजातियों में बंटे हैं। उनकी शिनाख्त के लिए ही पिछले साल सर्वेक्षण की बात उठी थी। सरकार की दलील है कि सही तरीके से शिनाख्त नहीं होने की वजह से स्थानीय मुसलमानों को सरकार की विभिन्न कल्याण योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी और नागरिकता (संशोधन) कानून, सीएए से राज्य की मुस्लिम आबादी में फैली भ्रम की स्थिति दूर करने के लिए ही सरकार ने ऐसा सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है।
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असम में मुस्लिम आबादी लंबे अरसे से विवाद की वजह रही है। असम आंदोलन हो या बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ, यह मामला अकसर सुर्खियों में रहता है। जब भी राज्य में मुस्लिम आबादी का जिक्र होता है तो अंगुलियां बांग्लादेशी मूल के लोगों की ओर ही उठती हैं। लेकिन यह पहला मौका था जब राज्य सरकार ने असम के मूल मुस्लिम बाशिंदों के सर्वेक्षण का फैसला किया गया। इस सर्वे का क्या हुआ इसकी कोई जानकारी अभी सामने नहीं आयी है।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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