Same Sex Marriage: समलैंगिकों की आपसी शादी: जानिए सुप्रीम कोर्ट फैसले की महत्वपूर्ण बातें
Same Sex Marriage: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने को सर्वसम्मति से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया।
Same Sex Marriage: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने को सर्वसम्मति से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, रवींद्र भट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने 3-2 के बहुमत के फैसले में गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के लिए सिविल यूनियन यानी नागरिक युक्ति की अनुमति देने से भी इनकार कर दिया।
पहली बात तो यह कि एक, सीजेआई और जस्टिस कौल सहित बेंच के सभी पांच न्यायाधीश, जिन्होंने नागरिक युक्ति के लिए वकालत की, इस बात पर सहमत हुए कि संविधान के तहत शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
दूसरी प्रमुख बात ये रही कि - सभी पांच न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की कि समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के लिए लिंग तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) भाषा का उपयोग करके विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में बदलाव करना संभव नहीं है। बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से विवाह शब्द की व्याख्या "पुरुष और महिला" के बजाय "पति-पत्नी" के बीच करने की मांग की थी। वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ताओं ने स्पेशल मैरिज एक्ट (एसएमए) के उन प्रावधानों को रद्द करने के लिए कहा था जो लिंग-प्रतिबंधात्मक हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि एसएमए प्रावधानों को खत्म करने से अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए कानूनी ढांचा खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि एसएमए की लिंग तटस्थ तरीके से व्याख्या करना "न्यायिक कानून बनाना" होगा, जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। उनका मतलब था कि कानून बनाना कोर्ट की शक्ति नहीं बल्कि विधायिका की शक्ति के तहत आता है।
तीसरी बात यह रही कि पाँच में से चार न्यायाधीशों - सीजेआई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति कौल, न्यायमूर्ति भट और न्यायमूर्ति नरसिम्हा - ने व्यक्तिगत राय लिखी। न्यायमूर्ति भट, न्यायमूर्ति कोहली (जो न्यायमूर्ति भट से सहमत थे) और न्यायमूर्ति नरसिम्हा बहुमत में रहे, जबकि सीजेआई और न्यायमूर्ति कौल ने समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए नागरिक युक्ति का विस्तार करने के पक्ष में राय लिखी।
क्या है सिविल यूनियन
सिविल यूनियन विवाह न हो कर विवाह के जैसी स्थिति है। यह उस कानूनी स्थिति को संदर्भित करता है जो समान-लिंग वाले जोड़ों को विशिष्ट अधिकार और जिम्मेदारियां प्रदान करती है जो आम तौर पर विवाहित जोड़ों को प्रदान की जाती हैं। हालाँकि एक सिविल यूनियन एक विवाह जैसा दिखता है, लेकिन पर्सनल लॉ में इसे विवाह के समान मान्यता नहीं है।
चीफ जस्टिस ने अपनी राय में और जस्टिस कौल ने चीफ जस्टिस से सहमति जताते हुए कहा कि सिविल यूनियन बनाने का अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और जीवन के अधिकार से निकलता है। इन दो न्यायाधीशों के दृष्टिकोण में यह भी कहा गया है कि सिविल यूनियन की स्थिति के साथ, समान-लिंग वाले जोड़ों को "अधिकारों का गुलदस्ता" बढ़ाया जाना चाहिए, जिसके विषमलैंगिक जोड़े हकदार हैं।
चौथी प्रमुख बात यह है कि ‘’अधिकारों के गुलदस्ते" पर सभी पांच न्यायाधीशों ने केंद्र के रुख पर ध्यान दिया कि एक उच्च स्तरीय कैबिनेट समिति उन अधिकारों पर गौर करेगी जो गैर-विषमलैंगिक जोड़ों को प्रदान किए जा सकते हैं। इसमें संयुक्त बैंक खाते खोलना, समान लिंग वाले पति-पत्नी को भविष्य निधि का लाभार्थी होना, ऐसे पति-पत्नी को पेंशन या विरासत प्राप्त होना, पति-पत्नी के लिए चिकित्सा संबंधी निर्णय लेने में सक्षम होना आदि शामिल होगा।
पांचवीं बात यह है कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल के दृष्टिकोण ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के विशिष्ट दिशानिर्देशों को इस हद तक खारिज कर दिया कि यह समान लिंग या अविवाहित जोड़ों को संयुक्त रूप से बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं देता है। चीफ जस्टिस ने अपनी राय में कहा कि यह मानना भेदभावपूर्ण है कि केवल विवाहित, विषमलैंगिक जोड़े ही बच्चों के पालन-पोषण के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान कर सकते हैं। इसका मतलब यह निकलता है कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति होनी चाहिए।