Nameplate Controversy: योगी सरकार को SC से झटका, नेमप्लेट पर रोक जारी, दलीलें हुईं खारिज

Nameplate Controversy: यूपी सरकार ने कांवड़ रूट पर पड़ने वाली खाने पीने की दुकानों में नेमप्लेट लगाने पर आदेश पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा पेश किया। इस हलफनामे यूपी सरकार ने अपने आदेश का बचाव किया

Newstrack :  Network
Update: 2024-07-26 10:01 GMT

Supreme Court (सोशल मीडिया) 

Nameplate Controversy:  कांवड़ मार्ग पर स्थित दुकानदारों को नामपट्टिका लगाने का विवाद छाया हुआ है। इसके ताजाघटना क्रम की बात करें तो देश के शीर्ष अदालत राज्य सरकारों द्वारा कांवड़ मार्ग पर स्थित दुकानदारों को नामपट्टिका लगाने के आदेश पर अंतरिम रोक जारी रखी है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा डाले गए हलफनामे पर सुनवाई की और सरकार की दी हुई दलीलों को खारिज करते हुए आदेश पर रोक जारी रखी। कोर्ट ने कहा कि यह आदेश 5 अगस्त तक जारी रहेगा और उसी दिन आगे की सुनवाई होगी।

अंतरिम आदेश कानून के अनुरूप नहीं, कोर्ट में सरकार का जवाब

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि, केंद्रीय कानून खाद्य एवं सुरक्षा मानक अधिनियम, 2006 के तहत ढाबों सहित हर खाद्य विक्रेता को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है। मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर रोक लगाने वाला न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश इस केंद्रीय कानून के अनुरूप नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं द्वारा इसे उसके संज्ञान में नहीं लाया गया था। इस तर्क पर पीठ ने जवाब दिया कि यदि ऐसा कोई कानून है, तो राज्य को इसे सभी क्षेत्रों में लागू करना चाहिए, कुछ क्षेत्र में नहीं। जस्टिस हृषिकेश रॉय यूपी सरकार के वकील से एक काउंटर दाखिल करने को कहा, जिसमें दिखाया गया हो कि इसे सभी जगह लागू किया गया है।

सिंघवी के कोर्ट में तर्क

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने यूपी द्वारा कल रात में नामपट्टिका पर सुप्रीम कोर्ट मे दिये गए हलफमाने पर अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि चूंकि पिछले 60 वर्षों से कांवड़ यात्रा के दौरान मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का कोई आदेश नहीं था, इसलिए इस वर्ष ऐसे निर्देशों के लागू किए बिना यात्रा की अनुमति देने में कोई बुराई नहीं है। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया है कि निर्देश भेदभाव पैदा करता है। सिंधवी ने कोर्ट के समक्ष हलफनामे से निम्नलिखित कथन पढ़ा, "निर्देशों की अस्थायी प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि वे खाद्य विक्रेताओं पर कोई स्थायी भेदभाव या कठिनाई न डालें, साथ ही कांवड़ियों की भावनाओं और उनकी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को बनाए रखना सुनिश्चित करें को तो वे (यूपी सरकार) कहते हैं कि भेदभाव है, लेकिन यह स्थायी नहीं है।

यूपी सरकार ने दाखिल किया हलफनामा

यूपी सरकार ने कांवड़ रूट पर पड़ने वाली खाने पीने की दुकानों में नेमप्लेट लगाने पर आदेश पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा पेश किया। इस हलफनामे यूपी सरकार ने अपने आदेश का बचाव किया और कहा कहा नेमप्लेट का आदेश इसलिए दिया था कि राज्य में शांति बनी रहे, लेकिन कोर्ट ने इसके इस तर्क को खारिज कर दिया।

जानिए क्या नेमप्लेट विवाद?

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कांड़व रूट पर खाने-पीने की पड़ने वाली सभी दुकानदारों को अपनी दुकान के आगे नामपट्टिका लगाने का बीते दिनों एक आदेश दिया था। इसके बाद यही आदेश उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार ने भी जारी कर दिया था। इन राज्य सरकार द्वारा नामपट्टिका लगाने वाले आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्तंभकार आकार पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाली थीं। याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 22 जुलाई को नामपट्टिका लगाने पर रोक लगा दी थी। इस मुद्दे पर जमकर राजनीति भी हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कुछ मुस्लिम संगठन ने योगी सरकार के इस फैसले का समर्थन किया तो कुछ ने इस पर पुनर्विचार की मांग की। 

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