क्या भारत से जंग चाहता है नेपाल, बार-बार इन तीन इलाकों पर क्यों कर रहा दावा?
चीन, पाकिस्तान के बाद अब नेपाल, भारत के खिलाफ साजिशें रचने का काम कर रहा है। उसने सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ने का काम शुरू दिया है। बताया जा रहा है नेपाल अब जल्द ही भूमि विवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के पास जाने वाला है।
नई दिल्ली: चीन, पाकिस्तान के बाद अब नेपाल, भारत के खिलाफ साजिशें रचने का काम कर रहा है। उसने सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ने का काम शुरू दिया है। बताया जा रहा है नेपाल अब जल्द ही भूमि विवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के पास जाने वाला है।
वह उसे नेपाल का नया नक्शा सौंपेगा। नेपाल के नए नक्शे में भारत की सीमा से लगे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा इलाकों पर दावा किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद ये नक्शा भारत और गूगल कम्पनी दोनों को भी भेजा जाएगा।
नेपाल के भूमि मामलों की मंत्री पद्मा अरयल ने ये जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि नेपाल के नए नक्शे में भारत की सीमा से लगे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा इलाकों पर दावा किया गया है। जिस पर भारत पहले ही कड़ा एतराज जता चुका है।
भारत के कड़े विरोध के बावजूद नेपाल की संसद ने नए राजनीतिक नक्शे को अद्यतन (अपडेट) करने के लिए संविधान में बीते 18 जून को संशोधन कर दिया था, जिसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भारत के तीन क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
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सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाए सवाल
भारत-नेपाल सीमा विवाद पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी का बयान आया है। जिसमें उन्होंने कहा कि ‘भारतीय इलाकों के बारे में नेपाल कैसे सोच सकता है?
उनकी भावनाओं को इस कदर चोट कैसे पहुंची कि वो भारत के साथ रिश्तों को तोड़ना चाहते हैं? क्या यह हमारी विफलता नहीं है? विदेश नीति को फिर से स्थापित किए जाने की जरूरत है।’
ये बातें उन्होंने एक ट्वीट के जरिए की है। स्वामी यही नहीं रुके बल्कि उन्होंने केंद्र सरकार से विदेश नीति को बदलने की मांग कर डाली है। साथ ही उन्होंने सरकार से सवाल भी किया कि ऐसा क्या है जिसने नेपाल को भारत के साथ रिश्ते तोड़ने पर मजबूर किया है।
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नेपाल ने संसद में पास किया बिल
बताते चलें कि बीते दिनों नेपाल की संसद ने एक विवादित बिल पास किया। जो नेपाल के नए नक्शे को और अधिक मजबूती प्रदान करता है, जिसमें रणनीतिक रूप से तीन भारतीय इलाकों- लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दर्शाया गया है।
इस मामले में भारत की तरफ से कहा गया है कि कृत्रिम विस्तार का यह नेपाली दावा ऐतिहासिक तथ्यों या सबूतों पर आधारित नहीं है। यह सीमा मुद्दे पर बातचीत के लिए हमारी मौजूदा सहमति का उल्लंघन है।
बता दें कि नेपाली संसद में इस बिल को पास होने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता थी, लेकिन प्रतिनिधि सभा में मौजूद सभी 258 सांसदों ने इस बिल के पक्ष में वोट दिया, एक भी वोट विरोध में नहीं पड़ा। जिसके बाद नेपाल के इस बिल को अब राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद इसे संविधान में शामिल किया जाएगा।