चीन मानेगा हार: भारत की इस शर्त से हुआ सामना, लद्दाख में होगा ऐसा
लद्दाख की अहम चोटियों समेत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्य स्थानों पर काबिज भारतीय सेना तब तक नहीं हटेगी जब तक चीन एलएसी से पीछे नहीं हटता है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ चल रहे सैनिक विवाद के बीच भारत ने अपना रुख कड़ा कर लिया है। लद्दाख की अहम चोटियों समेत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्य स्थानों पर काबिज भारतीय सेना तब तक नहीं हटेगी जब तक चीन एलएसी से पीछे नहीं हटता है। इसके साथ ही भारत की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि चीन के साथ जारी मौजूदा विवाद को सुलझाने के लिए भारत की ओर से फिलहाल शीर्ष स्तर पर कूटनीतिक बातचीत की पहल नहीं की जाएगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत चीन सीमा पर हालात को अभूतपूर्व बताया है।
पहले चीनी सेना के पीछे हटने का इंतजार
भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में 10 सितंबर को हुई बैठक और उसके बाद फिर दोनों देशों के सैन्य कमांडरों की बैठक में एलएसी पर गतिरोध कम करने के लिए सेनाओं को पीछे हटाने पर भले ही सहमति बनी हो। लेकिन अब भारत ने इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने का फैसला किया है। सैन्य सूत्रों का कहना है कि पूर्वी लद्दाख में अहम स्थानों पर काबिज भारतीय सेना चीन के हटने से पहले एलएसी नहीं छोड़ेगी। सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच पूर्व में हुई बातचीत में भी कई बिंदुओं पर सहमति बनी मगर चीन की ओर से उनका पालन नहीं किया गया।
ये भी पढ़ें- NCB ड्रग्स केस: रकुल और करिश्मा से आज पूछताछ, दीपिका देंगी कल जवाब
इस कारण दोनों देशों के रिश्ते में विश्वास का संकट पैदा हो गया है। जानकार सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों के बीच आमने-सामने टकराव और उत्तेजित करने वाली गतिविधियों को रखने के लिए संयुक्त बयान जारी किया गया है। मगर इसके साथ ही भारत किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत ने एलएसी पर अप्रैल से पहले की स्थिति बहाल करने पर जोर दिया है। दरअसल हाल के दिनों में भारत ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे की चोटियों पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और इस कारण चीन बौखलाया हुआ है।
भारत की सामरिक स्थिति ज्यादा मजबूत
दोनों देशों के बीच गतिरोध पैदा होने से पहले तक भारतीय जवान फिंगर चार से आठ तक गश्त लगाया करते थे। मगर अब पैंगोंग के दक्षिणी किनारे की अहम चोटियों पर कब्जे के बाद भारत की सामरिक स्थिति ज्यादा मजबूत हो गई है। ऐसे में भारतीय सेना इलाके पर तब तक अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहती है जब तक चीन की सेना के पीछे हटने के पुख्ता सबूत नहीं मिल जाते।
ये भी पढ़ें- मिनी सचिवालय पर आतंकी हमला, ड्यूटी पर तैनात जवानों को बनाया निशाना
चीन पहले भी कई बार भारत का विश्वास तोड़ चुका है और इस कारण इस बार भारतीय सेना काफी सतर्क है। इसके साथ ही भारत विवाद को सुलझाने के लिए कूटनीतिक बातचीत का भी इच्छुक नहीं है। भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि विवाद को सुलझाने के लिए जल्द ही सैन्य कमांडर स्तर की एक और दौर की बातचीत होगी। इसके साथ ही सीमा से जुड़े मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए बनाए गए तंत्र की बैठक भी शीघ्र ही होगी।
विदेश मंत्री ने हालात को अभूतपूर्व बताया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की छठे दौर की वार्ता के बाद पहली बार संयुक्त बयान जारी किया गया है। दोनों देश एलएसी पर तनाव घटाने, सेना हटाने और नए सिरे से सेना की मोर्चों पर तैनाती न करने पर सहमत हुए हैं। देखने वाली बात यह है कि चीन की ओर से इस दिशा में क्या कदम उठाया जाता है। दरअसल भारत पूर्वी लद्दाख में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद चीन के भावी रुख को भांपना चाहता है।
ये भी पढ़ें- किसानों का भारत बंद: कृषि बिल के खिलाफ चक्का जाम, इन पार्टियों का मिला समर्थन
चीनी ने पूर्व में भी सेना को पीछे हटाने पर सहमति जताई है मगर अभी तक उसकी ओर से इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इस बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि भारत और चीन सीमा पर दोनों देशों की मोर्चाबंदी के कारण अभूतपूर्व हालात हैं। विदेश मंत्री ने वर्ल्ड इकोनामिक फोरम डेवलपमेंट के शिखर सम्मेलन में कहा कि दोनों देशों को विवाद का हल तलाशने के लिए आपसी सहमति से कोई रास्ता निकालना ही होगा। दोनों देशों में के बीच बातचीत से ही इस विवाद का निपटारा किया जा सकता है। मास्को में चीन के विदेश मंत्री से बातचीत के बाद जयशंकर ने पहली बार इस मामले पर कोई टिप्पणी की है।