Politics : मोदी विरोध के नाम पर विपक्ष का नकारात्मक रवैया!

Politics : लोकसभा चुनाव के समय से ही नरेंद्र मोदी को हटाने के गंभीर षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। यह साफ दिख रहा कि विपक्ष के लिए देश कुछ नहीं, केवल मोदी विरोध। जाति की गंदी राजनीति और जनता को गुमराह कर उन्माद फैलाया जा रहा।

Written By :  Sanjay Tiwari
Update: 2024-08-22 16:57 GMT
विपक्षी नेता और पीएम मोदी (pic - Social Media) 

Politics : भारत में जातीय राजनीति को विपक्ष फिर एक बार हवा देने की कोशिश करा है। इस साजिश में कौन और क्यों है, उस पर देश को गंभीरता से सोचना पड़ेगा। बंगाल पर पूरा विपक्ष एक होकर महिला सुरक्षा को मुद्दा नहीं बना पा रहा, लेकिन जातीय आरक्षण के लिए भारत बंद कर दिया जा रहा। वह भी तब, जब न कहीं कोई आरक्षण हटा और न ही कोई योजना आई।

लोकसभा चुनाव के समय से ही नरेंद्र मोदी को हटाने के गंभीर षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। यह साफ दिख रहा कि विपक्ष के लिए देश कुछ नहीं, केवल मोदी विरोध। जाति की गंदी राजनीति और जनता को गुमराह कर उन्माद फैलाया जा रहा। इसमें नौकरशाही बहुत गंदी भूमिका निभा रही। पूरा विपक्ष एक खास योजना के साथ दिख रहा है। इसमें घाघ नौकरशाही खेल रही है। लैटरल भर्ती वाला विज्ञापन वापस लेना था तो पहले यह कहना था कि देश में अभी तक इसमें आरक्षण नहीं है। पुरानी भर्तियों को सामने लाते, बिना कुछ बताए वापस लेने का संदेश जनता में यह गया कि सरकार ने डर कर यह कदम उठाया। विपक्ष का नेरेटिव जनता में पहुंच गया। सरकार न तो राष्ट्रहित के पक्ष रख पा रही और न ही भाजपा का तंत्र जनता में अपनी बात रख पा रहा है। नौकरशाही के एक बड़े वर्ग को भी विदेशी तंत्र इस्तेमाल कर रहा। वे किसी भी कीमत पर मोदी को हटाने के लिए काम कर रहे। इसमें भाजपा का अंतर्कलह भी काम कर रहा।

हालिया दो घटनाओं से समझें

1. UP में शिक्षक भर्ती को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आया। सरकार ने उसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने से मना कर दिया।

2. सिर्फ 45 भर्ती लेटरल एंट्री के लिए निकलीं। इसे आरक्षण का रंग दिया गया। मात्र 45 सीटों के लिए जातिवाद की राजनीति के सामने झुक गई सरकार। जबकि लेटरल इंट्री का इतिहास बहुत पुराना है जिसमें स्वामीनाथन और मनमोहन सिंह जैसे लोग स्थापित हुए। इन्हें मोदी या भाजपा ने तो नहीं जगह दी थी?

'भारत बंद' क्यों?

क्या सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर लागू करने का फैसला दिया है? कतई नहीं, चीफ जस्टिस की 7 सदस्यीय बेंच के कुछ सदस्यों ने क्रीमीलेयर पर ओपिनियन दी थी। ओपिनियन फैसले में शामिल नहीं थी। तब क्या मोदी सरकार क्रीमीलेयर लागू कर रही है? नहीं, मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सुझावों के बाद कैबिनेट मंत्रियों की बैठक कर क्रीमीलेयर को लागू नहीं करने का निर्णय लिया है।

भारत बंद आंदोलन की सांकेतिक तस्वीर (Pic - Social Media)

आखिर है क्या यह क्रीमीलेयर

क्रीमीलेयर उन परिवारों को माना जाता है, जिनकी हर साल की आय 8 लाख हो और यह 3 साल तक लगातार हो। ऐसे परिवार को क्रीमीलेयर मानकर आरक्षण से अलग कर देते हैं। यह ओबीसी में लागू है। इससे IAS-RAS स्तर के अफसरों के बच्चों को आरक्षण मिलने के रास्ते बन्द हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को अधिकार दिया है कि वे चाहें तो कैटेगरी में कोटा कर सकती हैं। यह राज्यों के लिए स्वैच्छिक है। मोदी कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के क्रीमीलेयर के सुझाव को रद्द कर दिया। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैटेगरी के वर्गीकरण के राज्यों को दिए अधिकार के फैसले पर स्टडी करवाने के लिए विशेषज्ञों को दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में सबकोटा या वर्गीकरण का केस कैसे आया?

बता दें कि 1975 में पंजाब की कांग्रेस की ज्ञानी जैल सिंह सरकार ने एससी कैटेगरी में आधी सीटों का कोटा (First preference) मजहबी सिख व बाल्मीकि जातियों को देने का फैसला किया था, यह 2006 तक चला, जब पंजाब एवं हरियाणा कोर्ट ने रोक लगा दी। तब इसके विरोध में पंजाब में बहुत बड़ा आंदोलन हुआ। बाल्मीकि एवं मजहबी सिख को कोटा रखने के लिए कांग्रेस की अमरिंदर सिंह सरकार The Punjab Scheduled Castes and Backward Classes (Reservation in Services) Act, 2006 कानून लेकर आई। 2010 में चमार महासभा के देविन्दर सिंह के चुनौती देने पर हाइकोर्ट ने 50 फीसदी कोटा देने की धारा 4(5) पर रोक लगा दी। 2010 में पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। फिर यह केस 5 जजो की बेंच से होता हुआ 7 जजों की बेंच में गया और फरवरी 2024 से इस देविन्दर सिंह बनाम पंजाब सरकार केस की सुनवाई शुरू हुई। इस तरह इस केस में 1 अगस्त को राज्य को वर्गीकरण की स्वतंत्रता देने का निर्णय आया। राज्य द्वारा कोटा दी जाने वाली जातियों की स्थिति की जांच कोर्ट भी कर सकती है। हरियाणा में बीजेपी सरकार ने एससी में कोटा देने का फैसला किया है। एससी के 20 फीसदी आरक्षण में 16 वंचित जातियों को आधा कोटा (first preference) देने का प्रस्ताव हैं। पर हरियाणा में अभी आचार संहिता लग चुकी है। अध्यादेश जारी करने के लिए हरियाणा राज्य सरकार ने चुनाव आयोग से अनुमति मांगी है।

हरियाणा राज्य के अनुसूचित जाति आयोग ने वर्गीकरण पर अपनी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट राज्य सरकार को दी है। इसी के आधार पर यह फैसला किया गया। इसके तहत एक कैटेगरी में कम प्रतिनिधित्व वाली जातियों को कोटा तय किया जाता है। मान लीजिए एससी के 16 प्रतिशत आरक्षण में 4 प्रतिशत पिछड़ी एससी जातियों नायक, मोची, वाल्मिकि, धोबी, बलाई, चाण्डाल, नट आदि के लिए कर दिया जाए।

सब कोटा बनाने का आधार क्या है?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार, जातियों के प्रतिनिधित्व एवं स्थिति का सर्वेक्षण किया जाता है। सटीक आंकड़े होने पर ही उन जातियों को सबकोटा में लाभ दिया जाता है। सबकोटा की सीट नहीं भरी गई (NFS), तो उसे एससी में कंवर्ट करके शेष एससी जातियों से भरी जायेगी। कोटा एक तरह से कुछ सीटों पर वंचित जातियों को first preference की तरह होता है। उनसे पद न भरे जाने पर शेष एससी जातियों से भरे जाते हैं।

सांकेतिक तस्वीर (Pic - Social Media)

अब यह प्रश्न है कि सबकोटा का उपयोग राज्य सरकारों ने राजनीतिक फायदे के लिए करके वोट-बैंक के लिए किसी भी जातियों को जोड़ दिया तो? सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सबकोटा में उन्हीं जातियों को जोड़ सकते हैं, जो सर्वेक्षण के आंकड़ों में एससी की वंचित जातियों में हैं। कर्नाटक के ओबीसी वर्गीकरण में बिना आंकड़ो के कुछ जातियों को अलग कोटा देने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। राजस्थान में एससी-एसटी की जातियों का अलग-अलग मत है। राजसमंद-चित्तौड़गढ के भील समाज लंबे समय से एसटी में कोटे की मांग कर रहा था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का स्वागत किया है। वहीं, बाल्मीकि समाज की भी कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया रही है।

भारत बन्द का आह्वान किस संगठन ने किया?

भारत बन्द का आह्वान किस संगठन ने किया? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही अचानक सोशल मीडिया में भारत बंद के पोस्टर और मैसेज आने लग गए, जिस पर आह्वान करने वालों का नाम नहीं था। फिर इसके लिए स्थानीय स्तर समितियां संघर्ष समितियां बनीं। अब क्रीमीलेयर के विरोध के मैसेज आ रहे हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर का सिर्फ ओपिनियन दिया था और क्रीमीलेयर के उस ओपिनियन को केन्द्र सरकार ने रिजेक्ट कर दिया। एससी-एसटी की वंचित जातियों का कहना है कि वे लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। उन्होंने कानूनी लडाइयां लड़ी है। जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व उनका हक है। उनका कहना है कि विरोध स्वरूप भारत बन्द का आह्वान करने से पहले उनसे सलाह-मशविरा भी नहीं किया।

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