कांपता है पाकिस्तान: जब भी सुनता है भारतीय सेना के इस अफसर का नाम

सन् 1999 में जब कारगिल की लड़ाई बार्डर पर लड़ी जा रही थी, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है। उस समय इंडियन आर्मी के एक अफसर का खौफ पाकिस्तान के अंदर घर कर के बैठा था। ये बात ऐसी ही नही बोली जाती है।

Update: 2023-04-10 12:10 GMT

नई दिल्ली : सन् 1999 में जब कारगिल की लड़ाई बार्डर पर लड़ी जा रही थी, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है। उस समय इंडियन आर्मी के एक अफसर का खौफ पाकिस्तान के अंदर घर कर के बैठा था। ये बात ऐसी ही नही बोली जाती है। बल्कि इसका जीता-जागता सबूत था जब लड़ाई के समय वायरलैस पर पकड़ी गई पाक सेना की बातचीत।

इसके बाद लड़ाई खत्म हो जाने के बाद इस जांबाज़ अफसर को बहादुरी के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था। तो बता दें युवाओं के दिल में जगह और दुश्मनों के अन्दर खौफ पैदा करने वाले इस अफसर का नाम कैप्टन विक्रम बत्रा है।

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हिमाचल का ये वीर जवान

भारतीय सेना का ये जवान हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्म थे, फिर विक्रम बत्रा पढ़ाई खत्म करने के बाद ही सेना में आ गए थे। ट्रेनिंग पूरी करने के 2 साल बाद ही उन्हें लड़ाई के मैदान में जाने का मौका मिला था। उनके हौसले और कद-काठी को देखते हुए उनको चहतो ने उन्हें शेरशाह का कोड नाम दिया था।

बता दें कि शेरशाह था जिसके मुंह से ये दिल मांगे मोर सुनकर ही दुश्मन समझ जाया करते थे कि ये शांत बैठने वाला नहीं है। उनके पिता जीएल बत्रा बताते हैं कि आज भी पाकिस्तान में विक्रम बत्रा को शेरशाह के नाम से याद किया जाता है। विक्रम बत्रा की वीरता की कहानी सुनते हैं उनकी मां जयकमल और पिता जीएल बत्रा की जुबानी।

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इंडियन मिलिटरी अकादमी में एडमिशन लिया

सन् ‘1996 में विक्रम ने इंडियन मिलिटरी अकादमी में एडमिशन लिया था। जम्मू-कश्मीर राइफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर विक्रम की जॉइनिंग हुई थी। फिर 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को करगिल युद्ध में भेजा गया।

हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। मुश्किलों से भरा क्षेत्र होने के बावजूद भी विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया था।

विक्रम बत्रा - ‘ये दिल मांगे मोर’

इसके बाद विक्रम बत्रा ने इस चोटी के शिखर पर खड़े होकर रेडियो के माध्यम से ‘ये दिल मांगे मोर’ को उद्घोष के रूप में कहा तो इस उद्घोष से सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। अब हर तरफ बस ‘ये दिल मांगे मोर’ ही सुनाई देता था।

इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी बागडोर भी कैप्टन विक्रम को ही सौंपी गई थी। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।

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मिशन लगभग सफलता हासिल करने की कगार पर ही था, लेकिन तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे। कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया।’

देश अपने इन वीर जवानो के बलिदानों को हमेशा याद करता रहेगा। जिनके नाम से दुश्मन देश की हड्डियां तक कांप जाती थी। देश को जरूरत है ऐसे ही वीर जवानों की। ऐसे ही मातृ-भूमि के दीवानों की।

जय हिन्द... जय भारत...

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