गुस्ताखी माफ ! पैराडाइज पेपर्स रिलीज हुए, एक ही चीज कॉमन है... 'बच्चन साहेब'

Update:2017-11-06 16:59 IST

वर्क स्टेशन पर हमारे एक साथी हुआ करते थे। वे हैं तो अभी भी, लेकिन साथ में नहीं हैं। लेकिन फिर भी उनकी याद गाहे-बगाहे आ जाती है। वह इसलिए कि उनको फोन लगाने पर जो जवाब सुनने को मिलते थे, उससे एक बारगी को तो लगता था कि कहीं गलत नम्बर तो नहीं मिल गया और जब बात खत्म होती थी तब यही मन करता था कि इनसे तो बात करना ही फिजूल है।

चाहे होली हो, दिवाली हो या पन्द्रह अगस्त, उनके रेस्पोंस कुछ इसी तरह के होते थे। "हाँ, हेलो", "हाँ बोलो", "हाँ तो, "कुछ काम था क्या"। अर्थात वे अपने बोलने-बतियाने से जाहिर कर देते थे कि उन्हें 'घंटा' फर्क नहीं पड़ता, आपके कॉल से बल्कि आपके होने से भी। कर्टसी, विनम्रता, भाईचारा, इंसानियत उन्हें छूकर भी नहीं गुजरी है।

यही हालत हमारे देश में जिम्मेदार संस्थाओं, व्यक्तियों और प्रतिष्ठानों की है। जिनसे उम्मीद की जाती है कि देश और दुनिया में घट रही घटनाओं पर उनके वजन के अनुसार प्रतिक्रिया दें। अपना पक्ष रखें लेकिन यहां भी यही हाल है कि "हां तो", "बोलो", "फिर", "क्या हुआ" इत्यादि। मतलब 'टन्न' और इसलिए पनामा पेपर्स के बाद अब जब पैराडाइज पेपर्स रिलीज हुए हैं तब एक ही चीज कॉमन नजर आती है। बच्चन साहब और कुछ सफाईयां। जबकि हम खुद को एक जीवंत लोकतंत्र मानते हैं। जहाँ 'सत्य मेव जयते' राष्ट्रीय सूक्ति है वहां 'सत्य' को सड़क कूटना से कुचल दिया जाता है।

विशेषकर अनैतिक धन और काली कमाई के विषय में। हमारे यहाँ 'घोटालों और घपलेबाजों' के लिए ढेर सारे तंज हैं। किस्से-कहानियां और हाहाकार हैं। लेकिन कोई ऐसी सजा नहीं है। जिससे एक नजीर बन सके। उन लोगों के लिए जो बड़ी शान से जनता के पैसे को हजम कर जाते हैं।

वरना बताइए आज देश की जेलों में कितने हाई प्रोफाइल लोग बंद हैं, जो घोटाले बाज हैं। जो जनता के धन के दुरूपयोग करने के दोषी हैं ? आज कहां हैं सुखराम, ए राजा, कलमाड़ी, मधु कोड़ा, लालू यादव, मुलायम सिंह, मायावती, अशोक चव्हाण ?

क्या इस देश में घोटालेबाज 'बहिष्कृत' होते हैं ? क्या वे 'शर्मिंदा' होते हैं ? क्या उनके कभी 'सड़क' पर आ जाने की नौबत आती है ? फिर इतना शोर क्यों है, अख़बारों की हैडलाइन के फॉण्ट क्यों 72 साइज़ के हो जाते हैं ? फिर क्यों धरने, प्रदर्शन और हड़तालें करके आम इंसानों के जीवन को बाधित किया जाता है ?

डूब मरो मेरे देश की सरकारों......डूब मरो |

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