संसद चलाना मुश्किलः कृषि कानूनों को रद्द कराने पर विपक्ष अड़ा, फिर सदन में हंगामा
मंगलवार को कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष ने तीखे तेवर दिखाए। संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही विपक्ष की नारेबाजी और हंगामे के कारण नहीं चल सकी।
नई दिल्ली: कृषि कानूनों पर विपक्ष के कड़े रवैये के बाद अब यह साफ है कि बजट सत्र के दौरान संसद का संचालन काफी मुश्किल काम साबित होगा। विपक्ष ने शुक्रवार को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किए जाने के दौरान ही इस बात का संकेत दे दिया था। सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के दौरान भी कांग्रेस सांसदों ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर हंगामा किया था और आसन के समीप जाकर नारेबाजी की थी।
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मंगलवार को कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष ने तीखे तेवर दिखाए। संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही विपक्ष की नारेबाजी और हंगामे के कारण नहीं चल सकी। दोनों सदनों की बैठक कई बार स्थगित किए जाने के बाद आखिरकार बैठक पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
मोदी सरकार के खिलाफ बहुत दिनों से कोई मुद्दा ढूंढ रहे विपक्ष को कृषि कानून के रूप में एक बड़ा हथियार मिल गया है।
विपक्ष की नारेबाजी से नहीं हो सकी चर्चा
इन कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से ज्यादा समय से किसानों का धरना चल रहा है और सरकार चाहकर भी इस आंदोलन को नहीं समाप्त करा पा रही है।
कृषि कानूनों पर विपक्ष के कड़े तेवर के कारण ही मंगलवार को लोकसभा में कार्यवाही नहीं चल सकी। दूसरी पाली में बैठक शुरू होने पर विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया जिसके बाद बैठक तीन बार स्थगित की गई। इसके बाद बैठक शुरू होने पर विपक्षी दलों के सांसदों ने कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर नारेबाजी शुरू कर दी जिसके बाद सदन की बैठक को बुधवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
विपक्षी सांसदों ने की अपील की अनदेखी
यही हाल राज्यसभा का भी रहा और राज्यसभा में भी विपक्ष के हंगामे के कारण सदन सुचारू रूप से नहीं चल सका। उपसभापति हरिबंश ने सदन के सुचारू संचालन के लिए विपक्षी दलों से सहयोग की अपील की।
उन्होंने सदस्यों से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर होने वाली चर्चा में शामिल होकर अपनी बात रखने को कहा मगर सदस्य कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए थे। सदस्यों का हंगामा जारी रहने पर उपसभापति ने सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।
कई सांसदों ने दिया सभापति को नोटिस
राज्यसभा में कांग्रेस की अगुवाई में विभिन्न विपक्षी दलों के सांसदों ने मांग की कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन पर सदन में अविलंब चर्चा की जानी चाहिए। सभापति एम वेंकैया नायडू ने बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर चर्चा के लिए नियम 267 के तहत नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर राय, वाममोर्चा के ई करीम और द्रमुक के तिरुचि शिवा की ओर से नोटिस मिले हैं।
इस नियम के तहत सदन का सामान्य कामकाज स्थगित कर किसी जरूरी मुद्दे पर चर्चा की जाती है। हालांकि नायडू ने भी सदस्यों से कहा कि वे बुधवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर होने वाली चर्चा में हिस्सा लें।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को कल राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान उठाया जा सकता है मगर विपक्षी सांसद सभापति की इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे।
कृषि मंत्री ने विपक्ष को घेरा
विपक्षी सांसदों को संतुष्ट करने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में कहा कि सरकार कृषि कानूनों पर चर्चा करने के लिए संसद के भीतर व बाहर दोनों जगहों पर तैयार है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा डालने का काम कर रहा है। तोमर ने कहा कि मुश्किल हालात में सत्र का आयोजन किया जा रहा है और ऐसे में विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए।
विपक्ष को मिला बड़ा हथियार
लोकसभा और राज्यसभा में किसानों के मुद्दे पर अविलंब चर्चा के लिए विपक्ष के अड़ जाने से साफ है कि बुधवार का दिन भी हंगामेदार ही साबित होगा। मोदी सरकार के खिलाफ मिले इस बड़े हथियार को विपक्ष अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता।
इसके साथ ही विपक्ष किसानों की नाराजगी को भुनाने की कोशिश में भी जुटा हुआ है। अप्रैल-मई में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और विपक्षी की पूरी कोशिश है कि इस मुद्दे को गरम रखा जाए ताकि भाजपा की घेरेबंदी की जा सके।
किसानों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश
किसान आंदोलन की शुरुआत से ही किसान नेता कृषि कानूनों के मुद्दे पर संसद की बैठक बुलाकर चर्चा की मांग करते रहे हैं। ऐसे में विपक्ष की ओर से बजट सत्र के दौरान किसान नेताओं की इस मांग का समर्थन किया जा रहा है। दोनों सदनों में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अविलंब चर्चा की मांग करके विपक्ष किसानों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश में जुटा हुआ है।
जानकारों का कहना है कि कई दौर की वार्ता के बावजूद सरकार किसान नेताओं को मनाने में अभी तक नाकाम साबित हुई है। इसका कारण यह है कि किसान नेताओं ने साफ कर दिया है कि उन्हें कानूनों की वापसी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं है।
मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती
विपक्षी सांसद भी अब इसी मांग पर अड़ गए हैं। जब इन कानूनों को राज्यसभा में पारित कराया गया था तब भी काफी हंगामा हुआ था और विपक्षी सांसदों ने उपसभापति हरिब॔श पर नियम विरुद्ध तरीके से तीनों कानूनों को पास कराने का आरोप लगाया था।
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अब विपक्ष के हाथ एक बार फिर कृषि कानूनों का हथियार लग गया है और विपक्ष इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता। ऐसे में मोदी सरकार के लिए बजट सत्र के दौरान दोनों सदनों का संचालन एक बड़ी चुनौती साबित होने जा रहा है।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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