Mission 2024: आधी आबादी पर पीएम मोदी की निगाहें, विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक लाने का कर सकते हैं सियासी धमाका
Mission 2024: 2024 की सियासी जंग के मद्देनजर पीएम मोदी महिला आरक्षण विधेयक का मास्टरस्ट्रोक भी लगा सकते हैं। पीएम मोदी हमेशा हैरान करने वाले फैसले लेते रहे हैं और ऐसे में उनका यह कदम आधी आबादी का समीकरण सेट करने की दिशा में बड़ा हथियार साबित हो सकता है।
Mission 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा अपने फैसलों से देश-दुनिया को चौंकाते रहे हैं। कई मौकों पर यह बात साबित होती रही है कि जिस बात की अटकलें लगाई जाती रही हैं, पीएम मोदी का फैसला उससे बिल्कुल अलग होता है। अब मोदी सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद इसके एजेंडे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से वन इंडिया-वन इलेक्शन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाए जाने के बाद पूरे देश में एक साथ सभी चुनाव कराने को लेकर सबसे ज्यादा कयासबाजी हो रही है।
दूसरी ओर यह भी चर्चा है कि 2024 की सियासी जंग के मद्देनजर पीएम मोदी महिला आरक्षण विधेयक का मास्टरस्ट्रोक भी लगा सकते हैं। पीएम मोदी हमेशा हैरान करने वाले फैसले लेते रहे हैं और ऐसे में उनका यह कदम आधी आबादी का समीकरण सेट करने की दिशा में बड़ा हथियार साबित हो सकता है। हालांकि विशेष सत्र के एजेंडे पर अभी तक न तो सरकार की ओर से कोई बयान जारी किया गया है और न कोई जिम्मेदार भाजपा नेता या मंत्री इस मुद्दे पर बोलने को तैयार दिख रहा है।
अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं पीएम मोदी
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अपने कई फैसलों से सबको चौंकाते रहे हैं। नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, ट्रिपल तलाक कानून, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, नागरिकता कानून और जीएसटी को लागू करना समेत कई ऐसे कदम हैं जिन्हें लेकर पीएम मोदी ने सबको हैरान किया था। तो क्या पीएम मोदी इस बार संसद के विशेष सत्र के दौरान भी सबको हैरान करने वाला कोई कदम उठा सकते हैं,यह सवाल काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
ऐसे में महिला आरक्षण विधेयक को लेकर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं। मोदी सरकार की ओर से महिला आरक्षण विधेयक पर लंबे समय से विचार किया जा रहा है। सांसदों की संख्या में लैंगिक समानता लाने की दिशा में यह क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। इसके साथ ही इस कदम के जरिए भाजपा को 2024 की सियासी जंग में विपक्ष का चक्रव्यूह भेदने में भी बड़ी मदद मिलेगी।
देश की सियासत में पीएम मोदी के उभार में महिलाओं के समर्थन की बड़ी भूमिका मानी जाती है। इस विधेयक के जरिए भाजपा को आधी आबादी का समर्थन हासिल करने में बड़ी मदद मिलने की संभावना जताई जा रही है।
लंबे समय से ठंडा बस्ते में पड़ा है विधेयक
एक काबिले गौर बात यह भी है कि महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किए जाने के बाद विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में घमासान छिड़ने की संभावना भी जताई जा रही है। यह विधेयक 2008 से ही ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। 2008 में यूपीए वन सरकार के समय इस विधेयक को आखिरी बार संसद में पेश किया गया था मगर मंडलवादी पार्टियां इसके विरोध में खड़ी हो गई थीं।
इस तीखे विरोध के बाद मनमोहन सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डालने में ही भलाई समझी थी। इस विधेयक को राज्यसभा में भाजपा और वाम दलों का समर्थन मिला था और इसे दो तिहाई बहुमत से पारित किया गया था मगर लोकसभा में इसे पेश ही नहीं किया गया।
1996 में पहली बार पेश किया गया विधायक
वैसे इस विधेयक को पूर्व की सरकारों ने भी संसद में पेश करने का साहस दिखाया था। यह विधेयक 1996 में पहली बार पेश किया गया था और उस समय देश के प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा थे। बाद में अटल सरकार की ओर से 1998, 1999, 2002 और 2003 इस विधेयक को संसद में पेश किया गया मगर इस पर मुहर नहीं लग सकी।
जदयू के कद्दावर नेता शरद यादव ने 1996 में इस विधेयक का तीखा विरोध किया था और उन्होंने कोटा के भीतर कोटा की मांग उठाकर इस मामले में नया पेंच भी फंसा दिया था। अब मोदी सरकार की ओर से इस विधेयक को संसद में पेश किए जाने की आहट सुनी जा रही है।
कई दलों की प्रतिक्रिया पर होंगी सबकी निगाहें
यदि मोदी सरकार की ओर से यह विधेयक पेश किया जाता है तो कई दलों की प्रतिक्रिया पर भी सबकी निगाहें होंगी। यदि पूर्व के समय को देखा जाए तो समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल की ओर से इस विधेयक का जोरदार विरोध किया गया था। वैसे बदले हुई सियासी हालात में इन दलों का मौजूदा रुख देखना दिलचस्प होगा। नीतीश कुमार समय-समय पर अपना स्टैंड बदलते रहे हैं और ऐसे में माना जा रहा है कि वे इस विधेयक का समर्थन कर सकते हैं।
वाम दलों ने पहले भी महिला विधेयक का समर्थन किया था और उनका यही रुख बने रहने की संभावना है। कांग्रेस के लिए भी इस विधेयक का विरोध करना मुश्किल माना जा रहा है। पार्टी पहले से ही महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी कोटा तय करने की वकालत करती रही है।
इस विधेयक का विरोध करने पर महिला मतदाताओं के नाराज होने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस कारण इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों का रुख देखना दिलचस्प होगा। वैसे इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में मतभेद उभरने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
राज्यसभा में मोदी सरकार को मदद की दरकार
इस विधेयक को पेश किए जाने की स्थिति में मोदी सरकार को लोकसभा में तो किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी क्योंकि वहां पर भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए काफी ताकतवर है। भाजपा को अपने दम पर लोकसभा में बहुमत हासिल है मगर राज्यसभा में इस बिल को पारित करने के लिए भाजपा को नवीन पटनायक की अगुवाई वाली पार्टी बीजू जनता दल और जगनमोहन रेड्डी की अगुवाई वाली पार्टी वाईएसआरसीपी के समर्थन की दरकार होगी।
पिछले दिनों दिल्ली सेवा बिल पर इन दोनों दलों ने एनडीए को समर्थन दिया था मगर इस मुद्दे पर अभी तक इन दोनों दलों का रुख पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। वैसे सियासी जानकारों का मानना है कि इस मुद्दे पर भी मोदी सरकार इन दोनों दलों का समर्थन हासिल करने में कामयाब होगी। महिलाओं का समर्थन हासिल करने के लिए इन दोनों दलों की ओर से इस विधेयक को समर्थन दिए जाने की पूरी संभावना है।