सावित्रीबाई पुण्यतिथि: देश की पहली विद्रोही महिला कवयित्री, कलम से किया जागरूक
सावित्रिबाई फुले को आधुनिक भारत की पहली विद्रोही महिला कवयित्री कहा जाता है। उनकी पहली काव्य संग्रह 'काव्य फुले' 1854 और दूसरी 'बावनकशी' 1891 में प्रकाशित हुई थी।
लखनऊ: देश की पहली महिला शिक्षक और आधुनिक भारत की पहली विद्रोही महिला कवयित्री सावित्रीबाई फुले, जिसने समाज में फैली कुरीतियों का विरोध कर महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी। वे एक शिक्षिका के साथ-साथ एक समाज सेविका, कवयित्री भी थी। बता दें कि आज सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि हैं।
कैसे हुई सावित्रीबाई की मृत्यु
सन् 1897 में पुणे में जब प्लेग की महामारी ने हाहाकार मचा दिया और ब्रिटिश सरकार ने इस छुआछूत की बीमारी के रोकथाम के लिए रोगियों पर जबरन जुल्म उठाना शुरू कर दिया। तब सावित्रीबाई फुले को उन रोगियों की पीड़ा देखी नहीं गई। उन्होंने उन रोगियों की सेवा के लिए शहर से दूर अलग व्यवस्था की, जहां वे खुद उन रोगियों की सेवा करने लगी। लेकिन रोगियों की यूं सेवा करते-करते खुद सावित्रीबाई फुले भी खतरनाक प्लेग की शिकार हो गई और 10 मार्च 1897 में प्लेग की वजह से मृत्यु हो गई।
आज सावित्री बाई फुले के हमारे समाज के ऊपर कई उपकार हैं। महिला की शिक्षा और उनकी उन्नति के लिए किया गया उनका कार्य अतुल्यनीय हैं। उनके इस कार्य को आने वाली कई पीड़िया याद करेगी। सावित्रीबाई फुले दुनिया में न होते भी उनके विचार हमारे बीच जीवित है।
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आधुनिक भारत की पहली विद्रोही महिला कवयित्री
बता दें कि सावित्रीबाई फुले की कविताएं काफी प्रचलित है। उन्हें आधुनिक भारत की पहली विद्रोही महिला कवयित्री कहा जाता है। उनकी पहली काव्य संग्रह 'काव्य फुले' 1854 और दूसरी 'बावनकशी' 1891 में प्रकाशित हुई थी। तो चलिए एक झलक डालते है सावित्रीबाई फुले की कविताओं की ओर....
शिक्षा के लिए उठाई आवाज
"जाओ जाकर पढ़ो-लिखो
बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है
ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो
ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो"
अपनी कविता में मानवता को भी दी जगह
"जो वाणी से उच्चार करे
वैसा ही बर्ताव करे
वे ही नर नारी पूजनीय
सेवा परमार्थ
पालन करे व्रत यथार्थ और होवे कृतार्थ वे सब वंदनीय।
सुख हो दुख कुछ स्वार्थ नही
जो जतन से कर अन्यो का हित वे ही ऊँचे,
मानवता का रिश्ता जो जानते है वे सब सावित्री कहे सच्चे संत ।"
बेटियों के लिए क्या कहती है सावित्रीबाई
"न रही हो बिटिया मलाला?
सारी आवाम रोते हुए कह रहा है
'ओ प्यारी मलाला, हम बड़े रंज में हैं सुनो, बिटिया मलाला!
तुम्हारे जैसी हजारों बच्चियाँ तुम्हारे लिए निकाल रही हैं कैंडल मार्च
और सुनो, बिटिया मलाला!
मौलवी भी कर रहे हैं तुम्हारे लिए दुआ की बरसात,
देश की सीमाओं से परे उठ रहे हैं हाथ तुम्हारी सलामती के लिए..."
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सावित्रीबाई की यह कविता थी काफी चर्चित
"अंग्रेजी मैय्या, अंग्रेजी वाणई शूद्रों को उत्कर्ष करने वाली पूरे स्नेह से.
अंग्रेजी मैया, अब नहीं है मुगलाई और नहीं बची है अब पेशवाई, मूर्खशाही.
अंग्रेजी मैया, देती सच्चा ज्ञान शूद्रों को देती है जीवन वह तो प्रेम से.
अंग्रेजी मैया, शूद्रों को पिलाती है दूध पालती पोसती है माँ की ममता से.
अंग्रेजी मैया, तूने तोड़ डाली जंजीर पशुता की और दी है मानवता की भेंट सारे शूद्र लोक को."
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