मुद्दा: तीन तलाक पर जारी है संग्राम, महिलाओं की पीड़ा को मिली सियासी आवाज
इस कदम को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है कि शाहबानो मुकदमे में जहा राजीव गांधी ने सियासत की ‘लैंडिंग’ या फिर यूं कहें कि ‘क्रैश लैंडिंग’ करा दी थी वहीं मोदी ने उसका नया ‘टेकआफ’ कराया। यह ‘टेकआफ’ हौसलों के पंख बनकर तलाकशुदा पीडि़त महिलाओं की आवाज बन रहा है।
अनुराग शुक्ला
केस स्टडी-1
लखनऊ की रुश्दा सिद्दीकी २५ अप्रैल को योगी आदित्यनाथ के दरवाजे पर थीं। राजधानी के उजरियांव में रहने वाली रुश्दा अपनी इल्तिजा मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की कोशिश में थीं। मुख्यमंत्री तो नहीं मिले पर उनके प्रतिनिधि ने उन्हें इंसाफ दिलाने का दिलासा दिया है। रुश्दा का आरोप है कि उनके पति ने दहेज में कार या दस लाख रुपये लाने की मांग की है। रुश्दा की शादी 22 अक्टूबर 2014 को जाकिर से हुई थी। पहले साल तो सब ठीक रहा पर 2015 से यह मांग शुरू हुई तो खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। परिवार ने समझाने की कोशिश की तो जाकिर ने दो टूक कह दिया या तो मांग पूरी करो या फिर तलाक दे दूंगा।
केस स्टडी-2
शादी से पहले शुमेला जावेद राष्ट्रीय स्तर की नेटबॉल खिलाड़ी थी। लखनऊ से 380 किलोमीटर दूर अमरोहा में रहती हैं। शुमेला की शादी में सब कुछ ठीक था पर एक दिन अचानक उसके पति ने फोन पर तीन बार तलाक कहकर उससे नाता तोड़ लिया। शुमेला ने खता जाननी चाही तो पता चला कि उसका कसूर सिर्फ इतना था कि उसने एक बच्ची को जन्म दिया था। फिलहाल अपने माता-पिता के घर रह रही शुमेला चाहती हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले की जांच कराएं।
केस स्टडी-3
शाहजहांपुर की 22 वर्षीय आफरीन इसी साल जनवरी की एक सर्द शाम में सोशल मीडिया पर ख्यालों की दुनिया में खोई हुई थीं। फेसबुक पर प्यार, जिंदगी व कविताओं आदि से जुड़ी पोस्ट देखने के दौरान अचानक ही एक पोस्ट ने उसे हिलाकर रख दिया। इस पोस्ट में पति ने लिखा था - तलाक, तलाक, तलाक। अगले ही दिन उसके मोबाइल में संदेश आया, जिसमें लिखा था-तलाक, तलाक, तलाक। उसके पति ने अपना इरादा स्पष्ट तौर पर बता दिया था।
केस स्टडी-4
मामला 24 वर्षीय रूबीना का है, जिसने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए 2015 में अपनी उम्र से दोगुनी उम्र के एक अमीर व्यक्ति से शादी कर ली। लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद उसने रूबीना को तलाक देने की धमकी देना शुरू कर दिया।
केस स्टडी-5
नजीराबाद की रहने वाली एक महिला शबाना की शादी 2013 में यूपी में बांदा के रहने वाले सलीम सौदागर से हुई थी। जुलाई 2014 में उनके पति ने सोते वक्त तलाक दे दिया और उठने के बाद उन्हें इस बात की जानकारी दी गयी। महिला की रिश्तेदार के मुताबिक दिव्यांग शबाना दूसरों के घरों में काम करके गुजर-बसर कर रही है।
केस स्टडी-6
नजीराबाद की ही रहने वाली एक और महिला शबाना की शादी जुलाई 2007 में इलाहाबाद के रहने वाले शाह आलम से हुई थी। उसे प्रताडि़त करके मायके भेज दिया गया और पति ने फोन पर ही तलाक दे दिया। महिला का तीन साल का एक बेटा भी है। फिलहाल दोनों महिलाओं की मदद के लिए नजीराबाद के मुस्लिम महिला संगठन आगे आए हैं।
केस स्टडी-7
संतकबीर नगर की आमिना खातून 8 अप्रैल को अपने 6 व 8 साल के दो बच्चों फैजान व फरहान के साथ योगी से मिलने उनके सरकारी आवास पर पहुंच गयीं। तलाक की मारी आमिना को एक दिन बस यूं ही तलाक देकर निकाल दिया गया। उसे खुद से ज्यादा अपने बच्चों की चिंता है। वह कहती है कि मेरे पति ने 4 साल पहले मुझे घर से निकाल दिया। कहा कि कहीं भी जाओ यहां नहीं रहना है। योगी ने कहा है कि हक दिलवाएंगे ।
बढ़ती तादाद
ये सभी केस स्टडी तो महज एक बानगी हैं। सूबे में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उनके सरकारी आवास 5 कालिदास पर मुस्लिम महिलाओं का तांता लगा रहता है। आलम यह है कि तलाक की सताई महिलाओं के करीब 5-7 मामले योगी के दरबार में रोज पहुंच रहे हैं। कुछ योगी से मिल पाती हैं, कुछ को प्रतिनिधि से आश्वासन मिलते हैं।
तलाक के रोज इतने मामले पहुंचने से साफ है कि इससे पीडि़त महिलाओं की तादाद कितनी होगी। सरकार के 38 वें दिन ही योगी के दरबार में अब तक तलाक पीडि़त महिलाओं की संख्या करीब 100 के आसपास पहुंच गयी है। ऐसे में केन्द्र सरकार का रुख कहीं न कहीं जायज दिख रहा है।
वैसे इस मामले पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का पक्ष कुछ और ही है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के एक्जीक्यूटिव मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली कहते हैं कि तलाक का मुद्दा शरीयत से जुड़ा हुआ है। ऐसे में सरकार को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।
बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम दहेज के बजाय संपत्ति में हिस्सा दें, तलाकशुदा महिला की मदद की जाय, बोर्ड तीन तलाक की पाबंदी के खिलाफ है। इसके साथ ही बोर्ड ने एक बार फिर साफ किया कि धार्मिक आजादी हमारा संवैधानिक अधिकार है और शरई मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मोदी ने लखनऊ में ही दिया था संकेत
दरअसल अब तक तलाक पीडि़त महिलाओं की आवाज को सियासी साथ नहीं मिला था। पहली बार लखनऊ आकर ही पीएम मोदी ने संकेतों में कहा था कि किसी भी संप्रदाय अथवा जाति की महिला का हक बराबरी का होना चाहिए। जब तीन तलाक का मुद्दा देश की सबसे बड़ी अदालत में जेरे बहस हो, उस समय मोदी का यह कहना एक बड़ा संदेश है।
यह आधी आबादी के लिहाज से समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ाया गया एक बड़ा कदम है। इस कदम को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है कि शाहबानो मुकदमे में जहा राजीव गांधी ने सियासत की ‘लैंडिंग’ या फिर यूं कहें कि ‘क्रैश लैंडिंग’ करा दी थी वहीं मोदी ने उसका नया ‘टेकआफ’ कराया। यही वजह है कि यह ‘टेकआफ’ हौसलों के पंख बनकर तलाकशुदा पीडि़त महिलाओं की आवाज बन रहा है।
लखनऊ में तलाक के मामले तीन गुना बढ़े
2010-2014 के बीच अकेले मुंबई में तलाक के मामलों में दो गुना इजाफा हुआ है। 2003 से 2014 के 11 सालों में कोलकाता में तीन गुने तलाक हुए हैं। लखनऊ में 2009-2014 के बीच तलाक के मामले तीन गुना बढ़े हैं। इसमें निराश करने वाली बात यह है कि विवाह के पहले ही साल में विच्छेद के अधिकतर मामले उभरे हैं।
भारत में 5.8 फीसदी महिलाएं अपने पतियों से सबंध टूटने के बाद अलग रह रही हैं जबकि मुस्लिम समाज में तलाकशुदा महिलाओं की संख्या करीब 5.7 फीसदी है। हिन्दू महिलाओं के वैधानिक तलाक 1.8 फीसदी ही हैं जबकि बाकी ऐसी हैं जिनके पतियों ने तलाक नहीं दिया पर साथ नहीं रहते। आबादी के लिहाज से देखें तो मुस्लिम महिलाओं की हालत कुछ ज्यादा खराब दिखती है।
कई मुस्लिम देश खत्म कर चुके हैं तलाक
मोदी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में बताया है कि इस कानून का इस्लाम से कोई रिश्ता नहीं है। इसी वजह से तकरीबन 22 मुस्लिम देश, जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, अपने यहां सीधे-सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर चुके हैं। इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल हैं जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानूनों को अपना लिया है।
ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया के सारावाक प्रांत में कानून के बाहर किसी तलाक को मान्यता नहीं है। ईरान में शिया कानूनों के तहत तीन तलाक की कोई मान्यता नहीं है। कुल मिलाकर यह अन्यायपूर्ण प्रथा इस समय भारत और दुनिया भर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची हुई है।
इस्लामाबाद की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ.मुहम्मद मुनीर अपने एक शोधपत्र में बताते हैं कि श्रीलंका में तीन तलाक के मुद्दे पर बना कानून एक आदर्श कानून है।
शाहबानो मामले में राजीव ने बदला था फैसला
वहीं भारत में 1985 में शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था जिसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप माना गया। कट्टरपंथियों के दवाब के बाद राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए 1986 में संसद से कानून ही पारित करा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में अपने विस्तृत आदेश में सरकारों के लचर रवैये पर सख्त टिप्पणी करते हुए समान अचार संहिता को जरूरी बताया था, परंतु 2000 में लिली थॉमस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि समान आचार संहिता को लागू करना विवादास्पद हो सकता है।
2015 में एक अन्य मामले में सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को यूसीसी को लागू करने पर विचार का निर्देश दिया। गोवा में समान आचार संहिता का कानून पहले ही लागू है जिसे सहमति बनाकर देश भर में लागू किया जा सकता है मगर सवाल यह है कि देश इस बार क्या राजीव राज की दिशा में बढ़ेगा या मोदी युग से नई शुरुआत करेगा।
धार्मिक संगठनों का मत
आल इंडिया शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता यासूब अब्बास कहते हैं- जिस तरह सती प्रथा का कानून बनाकर मासूम बच्चियों को बचाया गया वैसे ही तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर मुस्लिम बच्चियों को बचाया जाय। इसके साथ ही ऐसा कानून हो कि एक बार में तीन तलाक बोलकर तो तलाक हो ही न सके।
जबकि, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सचिव जफरयाब जीलानी कहते हैं- तलाक शरई तौर पर जायज चीजों में अल्लाह और रसूल को सबसे नापसंद चीज है। इसके बाकायदा कानून है पर कुछ बड़े गुनाहों में एक बार में तीन तलाक बोलने पर भी तलाक हो सकता है। इस कानून में कोई तब्दीली मुमकिन नहीं क्योंकि यह कुरान और हदीस का कानून है। वैसे जो केस सुप्रीमकोर्ट में चल रहा है उसमें हम अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे।