Mahakumbh 2025: महाकुंभ में राजकोष की लूट ही बड़ा खतरा ! योगीजी बचाएं !!

Mahakumbh 2025: भूलोक का विशालतम जनवादी पर्व महाकुंभ रोमांच के साथ आशंकायें भी सर्जाता है। भारतीय गणतंत्र का पहला पर्व (1954) को भुलाना सुगम नहीं है। एक प्रधानमंत्री की असावधानी और एक चौपाये की भड़क के परिणाम में 500 आस्थावान कुचलने से मर गए थे। लाशों की पहचान चप्पलों और जूतों से की गई थी। बारह करोड़ की भीड़ रही थी। उस महानतम मानवीय त्रासदी के बाद से गजराज का प्रवेश महाकुंभ में निषिद्ध हो गया।;

Written By :  K Vikram Rao
Update:2025-01-05 18:33 IST

CM Yogi Adityanath (Photo: Social Media)

Mahakumbh 2025: भूलोक का विशालतम जनवादी पर्व महाकुंभ रोमांच के साथ आशंकायें भी सर्जाता है। भारतीय गणतंत्र का पहला पर्व (1954) को भुलाना सुगम नहीं है। एक प्रधानमंत्री की असावधानी और एक चौपाये की भड़क के परिणाम में 500 आस्थावान कुचलने से मर गए थे। लाशों की पहचान चप्पलों और जूतों से की गई थी। बारह करोड़ की भीड़ रही थी। उस महानतम मानवीय त्रासदी के बाद से गजराज का प्रवेश महाकुंभ में निषिद्ध हो गया। मगर हर महाकुंभ पर यह त्रासदी अनायास याद आ जाती है।

इसीलिए योगीराज महाराज आदित्यनाथ पर आमजन की आंखें लगी हैं कि अंतिम स्नान भी सुरक्षित हो जाए। बड़ी संख्या में आस्थावानों के आने की संभावना है। अतः भारतीय संस्कृति की विलक्षणता और आयोजन कौशल के प्रति टकटकी सभी की बंधी है।

सुरक्षा के अतिरिक्त प्रशासनिक उत्कृष्टता और राजकोष की मर्यादा की भी अपेक्षा बढ़ी है। हर बार के महाकुंभ के बाद राजकोष की लूट और धन हानि की चर्चा होती है, मगर बिसरा दी जाती है। मेरी दृढ मान्यता है कि पवित्र धर्मकोष के गबन की नतीजे अवश्य गंभीर होते हैं। मेरा यह मानना है कि मंदिरों के परिसर में ही प्रारब्ध के रूप में श्वान की योनि में लुटेरे पुजारी ही जन्मते हैं। पूजा केन्द्रों के इर्द-गिर्द पंजा मारते रहते हैं। यूं तो अर्थशास्त्री कौटिल्य चाणक्य ने कहा था कि "मछली कब पानी पी ले और राजपुरुष कब राजकोष में सेंध लगा दें, जानना बड़ा कठिन है।"

हर कुंभ के बाद अपव्यय और गबन के मामलों में जांच होती है। हर बार दब जाती है। मगर इस बार योगीजी से अपेक्षा है कि राजकोष पर डाका डालने वाले, निरीह धर्मप्राण जनों की रक्षा में कोताही करने वाले राजपुरुषों को इसी भूलोक में राजदंड मिले।

इस बार के कुंभ में कई विशिष्टताएं होंगी। कहीं अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है। सरकार ने इस बार भीड़ को संभालने और भक्तों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए बड़े स्तर पर तैयारियां की हैं। नई तकनीकों और व्यवस्थाओं से यह कुंभ मेला पहले से अधिक भव्य और सुव्यवस्थित होने की उम्मीद है।

1954 का कुंभ मेला न केवल आज़ाद भारत का पहला कुंभ था, बल्कि यह भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर भी साबित हुआ। यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर, धार्मिक परंपराओं और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना। महाकुंभ 2025 की तैयारियां इसी परंपरा को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है। इस बार का कुंभ मेला एक बार फिर दुनिया को भारतीय संस्कृति की महानता और उसके आयोजन कौशल का परिचय देगा।

मीडिया और महाकुंभ से जुड़ी एक खास घटना याद आती है। तब अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे। महाकुंभ प्रशासन और मीडिया से टकराहट पर पुलिस ने मीडिया शिविर पर हमला कर दिया था। विरोध में भूख हड़ताल शुरू हुई। उसी दिन लखनऊ के राजभवन में अटलजी की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। अंतिम प्रश्न के तौर पर मैंने उल्लेख किया। तत्काल अटलजी ने मुख्यमंत्री को समाधान हेतु आदेश दिया। समस्या टल गई। शांति लौट आई प्रयागराज में।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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