संदीप अस्थाना
आजमगढ़। बाहुबली पूर्व सांसद रमाकान्त यादव का तिलिस्मी राजनीतिक किला दरकने लगा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब कई ऐसे चेहरे सामने आ गए हैं जो मुखर होकर उनके खिलाफ बोलने लगे हैं। एक दौर वह भी था जब कोई भी व्यक्ति बाहुबली पूर्व सांसद रमाकान्त यादव के आगे खड़े होने की हिमाकत भी नहीं कर पाता था। यही वजह रही कि वह खुद जिले की फूलपुर-पवई सीट से पांच बार विधानसभा में पहुंचे और आजमगढ़ संसदीय सीट से तीन बार सांसद बनने का गौरव हासिल किया। इतना ही नहीं अपने पुत्र अरुणकान्त यादव को दूसरी बार फूलपुर-पवई सीट से विधायक बनाने में कामयाब रहे। लेकिन मौजूदा स्थितियां पूरी तरह से बाहुबली के विपरीत हैं। अब तो उनके खुद के टिकट के भी लाले पड़ गए हैं। कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल उन पर दांव लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। यहां तक कि मौजूदा समय में वह जिस दल भाजपा में हैं, उस दल में भी उन्हें टिकट मिलने की संभावनाएं नहीं दिख रही हैं। कई दावेदार सामने खड़े हैं। इसी वजह से चर्चा-ए-आम रही कि वह समाजवादी पार्टी की तरफ रुख किए मगर वहां से भी नकार दिए गए। ऐसी स्थिति में उनका राजनीतिक भविष्य काफी असमंजस में दिख रहा है।
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महंगा पड़ा सवर्णों का विरोध
भाजपा में रहते हुए सवर्ण समाज का खुलेआम विरोध करना बाहुबली रमाकान्त यादव को अब महंगा पड़ रहा है। उनके कई ऐसे भी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए जिसमें वह सवर्ण समाज को सीधे गालियां दे रहे हैं और जूतों से मारने की बात कर रहे हैं। इसके अलावा जिले में कहीं पर भी किसी व्यक्ति या समुदाय से यदि किसी यादव का विवाद होता है तो वह गलत होने के बाद भी यादव समाज के साथ खड़े मिलते हैं। इसी वजह से अन्य जातियों के लोग उनसे कन्नी काटने लगे हैं। मुस्लिम समाज के लोग तो पहले से ही उनको अछूत माने हुए हैं। उनके भाजपा में आने के बाद यह फासला और भी बढ़ गया है।
योगी व राजनाथ के खिलाफ उगल चुके हैं जहर
पूर्व सांसद रमाकान्त यादव सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ पहले ही जहर उगल चुके हैं। इन दोनों लोगों पर उन्होंने सवर्ण मानसिकता से काम करने, सवर्णों को प्रश्रय देने एवं पिछड़ी जातियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। जबकि योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ में सबसे अधिक रमाकान्त को ही मानते थे और हर मुद्दे पर उनका समर्थन करते थे। जबसे रमाकान्त ने इन दोनों लोगों के खिलाफ जहर उगला है, इन दोनों ने उनसे दूरी बना ली है। स्वाभाविक सी बात है कि यह लोग पार्टी पटल पर अब रमाकान्त का समर्थन नहीं कर रहे।
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मुलायम के आगे ताल ठोंककर समाजवादी कुनबे से हुए दूर
समाजवादी कुनबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव जब आजमगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लडऩे के लिए आए तो बाहुबली रमाकान्त यादव भाजपा के टिकट पर उनके खिलाफ मैदान में उतर गए। यहां तक कि मुलायम व रमाकान्त ने एक ही दिन नामांकन पत्र दाखिल किया। नामांकन के दौरान रमाकान्त के समर्थकों ने मुलायम सिंह की कार के बोनट को जमकर ठोंका। रमाकान्त ने अपने समर्थकों को मना भी नहीं किया। इस कारण से समाजवादी कुनबा उन्हें तवज्जो नहीं दे रहा है। इस चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हो जाने के कारण भी समाजवादियों को उनकी जरूरत नहीं है। गठबंधन के इस माहौल में सपा के टिकट पर कोई राजनीतिक अनाड़ी भी मजबूती से चुनाव लड़ेगा।
पारिवारिक सदस्यों की हार से खुली जनाधार की पोल
पारिवारिक सदस्यों के चुनाव में फिसड्डी साबित हो जाने के कारण उनके जनाधार की पोल खुल गयी। पिछले विधानसभा चुनाव में वह अपनी बहू के लिए दीदारगंज सीट से टिकट मांग रहे थे। टिकट न मिलने पर उन्होंने अपनी बहू को निर्दलीय चुनाव लड़ाया और दावा किया कि उनकी बहू को भाजपा प्रत्याशी से कम वोट मिला तो वह भाजपा से अपने लिए टिकट नहीं मांगेंगे। उनकी बहू बुरी तरह से हार गयीं जबकि भाजपा प्रत्याशी काफी मजबूती से चुनाव लड़ा। इतना ही नहीं अपनी पहली पत्नी को उन्होंने नवगठित माहुल नगर पंचायत से चेयरमैन का चुनाव लड़ा। वह भी बुरी तरह से हार गयीं।
इसके पहले भी उनके पारिवारिक सदस्य कई चुनाव बुरी तरह से हार चुके हैं। उनके राजनीतिक विरोधी उनके पारिवारिक सदस्यों के बुरी हार की सूची बनाए हुए हैं और उसे गिनाते हुए दल के हाईकमान को यह बता रहे हैं कि अब रमाकान्त यादव का वह जनाधार नहीं रहा। ऐसे में अब उनको तवज्जो देना दल के हित में ठीक नहीं होगा। सब मिलाकर स्थितियां बाहुबली रमाकान्त के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल है। ऐसे में आगे क्या होगा, इस बारे में कोई भी सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
किला दरकने के पीछे क्या रहा है कारण
अब यह जानना जरूरी है कि पूर्व सांसद रमाकान्त यादव का राजनीतिक किला दरकने के पीछे क्या कारण हैं? सच तो यह है कि कारणों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। पहला और सबसे बड़ा कारण तो उनका दलबदलू चरित्र रहा है। उनके बार-बार दल बदलने के कारण सभी प्रमुख दलों का उन पर से भरोसा उठ गया है। इसके साथ ही वह हर राजनीतिक पद पर अपने परिवार के ही सदस्य को आसीन करना चाहते हैं। यही वजह रही कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले जनाधारी लोगों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में भी उनका कद घटा है।