रानी कर्णावती का इतिहास, जानें कौन थी यह वीरांगना जिसने दिया था जौहर में बलिदान
हुमायूं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया था उम्रभर रक्षा करने का वचन दिया था। इस भाई - बहन के प्यार को आज भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि राखी मिलते ही राजा ने ढेरों उपहार भेजे और मेवाड़ की सुरक्षा के लिए आगे आए।
लखनऊ :रानी कर्णावती एक ऐसी रानी थी जिनकी चर्चा आज भी इतिहास के पन्नो में की जाती है। आपको बता दें कि इस रानी ने अपने राज्य की हार को देखते हुए 8 मार्च 1535 को जौहर में आत्महत्या कर ली थी। बताया जाता है कि यह मेवाड़ का दूसरा जौहर माना जाता है। जानते हैं रानी कर्णावती के इतिहास के बारे में। आज भी लोग इन्हें किन वजहों से याद करते हैं।
राजा राणा सांगा की मृत्यु
रानी कर्णावती अपने बलिदान के लिए जानी जाने वाली उन बहादुर रानियों में से एक है। जो अपनी जान तो दे दी लेकिन दुश्मन के सामने अपने घुटने नहीं टेके। कर्णावती चित्तौड़ के राजा राणा सांगा की पत्नी थी। आपको बता दें कि 1526 में मुगल बादशाह बाबर ने दिल्ली पर अपना कब्जा कर लिया था। जिसके चलते मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ राजपूत शासकों का एक दल चलाया था। जिसके बाद खानुआ की लड़ाई में राणा सांगा की पराजय हो गई थी इस युद्ध में इन्हें काफी गहरे घाव लगे थे जिसकी वजह से इनकी कुछ दिनों में मृत्यु हो गई थी।
बहादुरशाह ने दूसरी बार मेवाड़ पर किया हमला
रानी कर्णावती के दो बेटे थे जिनका नाम राणा उदय सिंह और राणा विक्रमादित्य था। राजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद रानी ने अपने बड़े विक्रमादित्य को राज गद्दी पर बैठाया लेकिन पूरा राज्यभार संभालने के लिए इस राजा की उम्र काफी छोटी थी। इसी बीच गुजरात के बहादुरशाह ने दूसरी बार मेवाड़ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा विक्रमादित्य की हार देखने को मिली। जिसके बाद रानी कर्णावती ने राज्य के सम्मान की रक्षा करने के लिए अन्य राजपूत राजाओं से अपील की।
दासी पन्ना ने जवाबदेही को किया स्वीकार
रानी कर्णावती से राजपूत शासकों ने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि विक्रमादित्य और उदय सिंह को युद्ध के दौरान बुंदी जाने की अपील की। रानी ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिसके बाद उन्होंने अपनी भरोसेमंद दासी पन्ना के साथ अपने दोनों बेटों को बुंदी भेज दिया। आपको बता दें कि पन्ना ने इस जवाबदेही को ईमानदारी से स्वीकार भी किया।
रानी कर्णावती ने हुमायूं को भेजी थी राखी
हर रक्षाबंधन पर रानी कर्णावती को याद किया जाता है। इस रानी ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए 1534 में हुमायूं को राखी भेजी थी। बताया जाता है कि रानी कर्णावती की राखी को स्वीकार कर हुमायूं ने इस राखी की लाज बचाई थी। हुमायूं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया था उम्रभर रक्षा करने का वचन दिया था। इस भाई - बहन के प्यार को आज भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि राखी मिलते ही राजा ने ढेरों उपहार भेजे और मेवाड़ की सुरक्षा के लिए आगे आए।
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रानी कर्णावती ने किया था आत्मघाती
हुमायूं राखी मिलने के बाद चित्तौड़ के लिए रवाना हुए लेकिन वह समय से पहुंचने पर नाकाम साबित हुए। जिसके चलते बहादुरशाह ने चितौड़ पर प्रवेश कर लिया। यह देखते हुए रानी कर्णावती को अपनी हार दिखने लगी जिसके बाद 8 मार्च के दिन अन्य महिलाओं के साथ रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया। कहा जाता है यह मेवाड़ का दूसरा दिल दहलाने वाला जौहर माना जाता है। हुमायूं ने बहादुरशाह को युद्ध में पराजित किया। कर्णावती के बड़े बेटे को राजगद्दी से बहाल कर दिया था।
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