पटना : बिहार के पूर्व सीएम और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने चारा घोटाले से संबंधित एक मामले में दोषी करार दिया है। अदालत ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी के मामले में अपना फैसला सुनाया है। उनके जेल जाने के बाद अब उनके दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप के लिए बड़ी चुनौती यह होगी कि वो कैसे पार्टी को एकजुट रखते हैं।
पिछले 15 वर्षों से राजद और लालू को नजदीक से देखते आ रहे पत्रकार आनंद कुमार कहते हैं कि देखा जाए तो लालू को उम्मीद थी कि उन्हें जेल जाना ही होगा। इसीलिए तेजस्वी यादव को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। लालू की जेल यात्रा के बाद बेशक पार्टी पर असर पड़ेगा। कुछ नेता पार्टी छोड़ कर नए ठिकाने खोजेंगे लेकिन इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा पार्टी पर।
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उन्होंने बताया कि कद्दावर राजद नेता जगदानंद सिंह, रामचंद्र पुरे, शक्ति सिंह यादव सहित रघुवंश प्रसाद और मनोज झा पहले ही तेजस्वी यादव पर अपना भरोसा जता चुके हैं। ऐसे में पार्टी के अन्दर किसी भितरघात की बात करना बेमानी है।
आनंद कहते हैं पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने विपक्ष में अपनी मजबूत जगह बना ली है, वो अपनी बात तथ्यों के साथ रखने लगे हैं। लेकिन अब जबकि उनके पिता जेल में होंगे। तो उन्हें अपनी समझ से पार्टी हित में निर्णय लेने होंगे जो तय करेंगे कि छोटे यादव को राजनीतिक मोर्चे पर कितना परिपक्व हैं।
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आनंद कहते हैं लालू जब पहली बार जेल गए थे। तब पत्नी को सीएम पद सौंप गए थे। जेल में रहते हुए भी सरकार और पार्टी पर उनकी पकड मजबूत बनी रही। लेकिन तब बात कुछ और थी अब हालात बदल चुके हैं। अक्टूबर 2013 में भी लालू इसी मामले में जेल यात्रा कर चुके हैं। उस समय उन्हें कोर्ट ने दोषी करार देते हुए 5 साल की सजा दी थी। लेकिन लालू दिसंबर में ही राहत पाने में सफल रहे और अगले दो वर्षों में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन कर शानदार चुनावी जीत दर्ज की। लेकिन अब उनका गठबंधन टूट चुका है नीतीश के रास्ते अलग हैं। तेजस्वी और तेज प्रताप दोनों ही अभी इतने अनुभवी नहीं है कि वो नितीश जैसे वट वृक्ष से बैर ले सकें।
आनंद कहते हैं कि लालू के जेल जाने के बाद 2019 से पहले गैर-बीजेपी दलों को एकजुट कर पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का उनका सपना अब टूटता नजर आने लगा है। क्योंकि उनके बेटों में वो बात नहीं है कि वो अलग अलग विचार धारा वाले नेताओं को एक मंच पर ला सकें।