नई दिल्लीः देशभर में एक समान कर प्रणाली (जीएसटी) लागू करने को लेकर भले ही अभी केंद्र की मोदी सरकार व कांग्रेस के बीच रस्साकसी जारी है, लेकिन टैक्स समरूपता की तकनीकी व्यवस्था के लिए जो केंद्रीयकृत कम्प्यूटर प्रणाली बननी है उसे लेकर विवाद हो गया है। विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने निजी फर्म इन्फोसिस को आउटसोर्स करा दिया। ये कंपनी जीएसटी विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स वितरण को नियमित करने की व्यवस्था बनाएगी।
सरकार ने इस बारे में कम्प्यूटर नेटवर्क तैयार करने की तैयारी का काम जानी-मानी आईटी कंपनी इन्फोसिस को दिया है, लेकिन वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार में उच्च स्तर पर इस बारे में विवाद उभर कर सामने आ गए हैं। केंद्रीयकृत टैक्स प्रणाली विकसित करना एक संवेदनशील और गोपनीय मुद्दा है। इसलिए इतनी विशाल सरकारी टैक्स प्रणाली के लिए कम्प्यूटर तकनीकी विकसित करने का काम सरकार को अपने आप करना चाहिए।
सूत्रों का कहना है कि इस मामले में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने भी अपनी ये राय जेटली को बता दी है। सीबीडीटी का कहना है कि इस तरह का कम्प्यूटर सिस्टम तैयार करने की विशेषज्ञता पहले से ही उसके पास है तो फिर निजी आईटी कंपनी को ठेका देने का कोई मतलब नहीं है।
विवाद इस पर बढ़ सकता है कि जब सीबीडीटी खुद ही सस्ते में ये व्यवस्था बना सकता है, तो फिर इन्फोसिस को ठेका 3 हजार करोड़ में देने का मतलब क्या है। गोपनीयता के अलावा सुरक्षा पहलुओं और डाटा सुरक्षा जैसे सवालों को लेकर टैक्स विशेषज्ञों ने भी इस मामले में सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। हालांकि, वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने इन्फोसिस को ठेका दिए जाने को जायज ठहराते हुए कहा कि उच्च तकनीकी का कम्प्यूटर केंद्रीयकृत कम्प्यूटर सिस्टम तैयार करने में बहुत ज्यादा वक्त लगेगा।
वित्त मंत्री की प्राथमिकता इसे लेकर ज्यादा है कि संसद से जीएसटी बिल पास होने के बाद देश में एकमुश्त टैक्स प्रणाली खड़ी करना बहुत बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम होगा। साथ ही दावों के बाद भी सरकारी सिस्टम में ऐसी कुशलता का अभी अभाव है कि वह कम से कम वक्त में सभी राज्यों और केंद्र के बीच टैक्स नियमन की व्यवस्था को कुशलता के साथ तय समयसीमा के भीतर अमली जामा पहना सके।
बता दें कि केंद्र सरकार के सभी टैक्स सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स के तहत आते हैं। ऐसी दशा में जब प्रस्तावित जीएसटी कानून केंद्र और राज्य सरकारों के सभी आंतरिक टैक्स कानूनों की जगह लेगा, तो ऐसी हालत में इस केंद्रीय व्यवस्था के तहत ही सारी टैक्स व्यवस्था आ जाएगी। ऐसे में किसी निजी कपंनी के लिए कोई भूमिका नहीं रहेगी। टैक्स विशेषज्ञ मानते हैं कि इस मामले में आने वाले दिनों में विवाद बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्फोसिस चाहेगी कि वह तकनीकी सलाहकार के तौर पर दीर्घकालिक व्यवस्था के तहत जीएसटी प्रणाली का हिस्सा बनी रहे।