रामायण की खास बात: मां सीता से भी अधिक था इस सती का त्याग
देखा जाए तो एक भव्य महल के निर्माण में नींव की मुख्य भूमिका होती है। लेकिन मजबूत बुनियाद की वह ईंट कहीं दिखाई नहीं देती। ठीक उसी तरह श्रीराम
दुर्गेश पार्थ सारथी, अमृतसर: दूरदर्शन पर रामायण के बाद अब उत्तर रामाण का प्रसारण शुरू हो गया है। ऐसे में दर्शकों और श्रीराम कथा में रुचि रखने वालों के जेहन में एक सवाल बार-बार कौंध रहा है। वह है लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का। उर्मिला के बारे में कहा जाता है कि यदि लक्ष्मण मेघनाद का वध कर पाए तो इसके पीछे उनकी पत्नी उर्मिला की शक्ति थी। लेकिन श्रीराम कथा में उर्मिला का उल्लेख बहुत कम मिलता है।
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घर की नींव की तरह है उर्मिला का त्याग
देखा जाए तो एक भव्य महल के निर्माण में नींव की मुख्य भूमिका होती है। लेकिन मजबूत बुनियाद की वह ईंट कहीं दिखाई नहीं देती। ठीक उसी तरह श्रीराम कथा में उर्मिला, मांडवी व श्रुतकीर्ति सहित रामकथा के अन्य गौड़ पात्रों का योगदान है। श्रीराम कथा के मर्मज्ञ कहते हैं कि उर्मिला के त्याग की कहीं और मिसाल नहीं मिलती। क्योंकि वह अपने पति लक्ष्मण को दिए बचनों से बंधी हुई थीं। वह तो पति वियोग में रो भी नहीं सकती थीं। उनके ऊपर परिवार और तीनों माताओं की सेवा का दायित्व भी था। उर्मिला लक्ष्मण की धर्मपत्नी तथा माता सीता की बहन थीं। माता सीता के त्याग, पति प्रेम व सेवा को सभी याद करते हैं परन्तु उर्मिला के त्याग, वियोग व दुःख की चर्चा शायद ही होती है।
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मैथिलीशरण गुप्त के लिखे साकेत में उर्मिला का त्याग
मानस-मंदिर में सती, पति की प्रतिमा थाप,जलती सी उस विरह में, बनी आरती आप।
आँखों में प्रिय मूर्ति थी, भूले थे सब भोग,
हुआ योग से भी अधिक उसका विषम-वियोग।
आठ पहर चौंसठ घड़ी स्वामी का ही ध्यान,
छूट गया पीछे स्वयं उससे आत्मज्ञान।
ये पंक्तियां कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचना ‘साकेत’ के नवम सर्ग की हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने उर्मिला की विरह वेदना को व्यक्त किया है। इन पंक्तियों का सार है– मन-मंदिर में अपने पति की प्रतिमा स्थापित करके उर्मिला विरह की अग्नि में जलते हुए खुद आरती की ज्योति बन गई है। आंखों में प्रिय की मूर्ति बसाकर सभी मोह-माया को त्याग कर उनका जीवन एक योगी के जीवन से भी ज्यादा कठिन और कष्टदायक है। दिन-रात स्वामी के ध्यान में डूबने के कारण वे स्वयं को भी भूल गई हैं।
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योगी की तरह उर्मिला ने बिताया था जीवन
माता सीता तो पूज्यनीया हैं ही, लेकिन उर्मिला का त्याग भी कमतर न था। रामायण और रामचरित मानस का गहनता से अध्ययन करें तो यह सार निकल कर आता है कि लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला ने अपनी आकांक्षाओं को मिटाकर धैर्यपूर्वक एक योगी तरह पति वियोग की अग्नि में अपने तपा कर कुंदन बनाया। रामायण की इसी उर्मिला को अपना केंद्र बना कर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने 'साकेत' में उनके त्याग का वर्णन किया है।
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कुछ यूं लक्ष्मण का मन हटाया
कथानक के अनुसार, श्रीराम और माता सीता के साथ लक्ष्मण जब वन जाने के लिए प्रस्थान कर रहे थे तब वे उर्मिला को इसकी सूचना देने और उन्हें भी साथ चलने के लिए कहने के लिए उनके कक्ष में गए। वहां उर्मिला को सोलह शृंगार में देखकर लक्ष्मण बहुत क्रोधित हुए। वे बोले, 'मैं आज से तुम्हारा मुख तक नहीं देखूँगा।' लक्ष्मण के कक्ष से बाहर जाते ही उर्मिला रोने लगीं। वे जानती थीं कि यदि वे लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए जाएंगी तो लक्ष्मण श्रीराम और सीता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से नहीं कर पाएंगे।
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यदि लक्ष्मण पत्नी के प्रेम को साथ लेकर जाते हैं तो भी विरह की पीड़ा उन्हें सताएगी और उनके कर्तव्य का मार्ग अवरुद्ध करेगी। इसलिए उर्मिला ने अपने कृत से लक्ष्मण के मन में स्वयं के प्रति द्वेष पैदा किया। जब तक लक्ष्मण वन में रहे तब तक उर्मिला भी राजमहल के सुख त्यागकर कुटिया में रहीं। यदि लक्ष्मण अपने कर्तव्य को भली-भांति निभा सके तो इसमें उर्मिला का पूर्ण योगदान रहा है।
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हड्डियों का ढांचाभर रह गईं थी उर्मिला
'साकेत' के अनुसार 14 वर्ष के वनवास से वापस लौटने के बाद भी लक्ष्मण जी उर्मिला से दूर रहे। लेकिन, सीता जी के समझाने पर वे उर्मिल से मिलने उनके कक्ष में गए। वहां उर्मिला की दशा देखकर विह्वल हो उठे। क्योंकि जिस उर्मिला को वे राजमहल में छोड़ कर गए थे, वो उर्मिला हड्डियों का ढांचा मात्र बन कर रह गई थीं।
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उर्मिला के त्याग का वर्णन करते हुए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त लिखते हैं-
ज्यों घुसे सूर्य-कर-निकर सरोज-पुटी में।जाकर परन्तु जो वहां उन्होंने देखा,
तो दिख पड़ी कोणस्थ उर्मिला-रेखा।
यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया!
अर्थात् उर्मिला शरीर केवल नाम का शरीर रह गया है। वियोग की पीड़ा ने उन्हें रेखा के समान बना दिया है। राष्ट्रकवि लिखते हैं कि सीता जी ने भी लक्ष्मण से कहा था कि हजारों सीता मिलकर भी उर्मिला के त्याग की बराबरी नहीं कर सकतीं।
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महिलाओं को उर्मिला से सीखना चाहिए संयम
उर्मिला का त्याग वास्तव में किसी बलिदान से कम नहीं है। उर्मिला का त्याग लक्ष्मण को बंधन का नहीं बल्कि मुक्ति का संदेश देता है। महिलाओं का जीवन हमेशा त्याग और संघर्ष का होता है। चाहे वह त्याग एक बेटी, बहन, पत्नी या मां के रूप में ही क्यों न हो। हर समय काल में उनका जीवन प्रेरणादायक होता है। इस संदर्भ में उर्मिला का चरित्र सर्वोपरि होगा। महिलाओं को संयम उर्मिला से सीखने का यत्न करना चाहिए।
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