Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला, जानें सीजेआई ने क्या कहा
Same Sex Marriage: सेम सेक्स मैरिज को कानून दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर आज यानी मंगलवार 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट बड़ा ने फैसला सुनाया है।
Same Sex Marriage: समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के रद्द होने के बाद सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग लंबे समय से होती आ रही है। ऐसे रिश्ते में रह रहे लोग अपनी परेशानियों को विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर उठाते रहे हैं। कुछ लोग तो यहां आ रही दिक्कतों को देखते हुए अन्य देशों का रूख कर चुके हैं। सेम सेक्स मैरिज को कानून दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर आज यानी मंगलवार 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की ने कहा कि यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता, केवल व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है। उन्होंने कहा कि जीवनसाथी चुनना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवन साथी चुनने का अधिकार जीवन के अधिकार के अंतर्गत आता है। एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है।
सीजेआई ने आगे कहा कि होमोस्क्शुअलिटी या क्वीरनेस केवल शहरी कुलीन वर्ग तक सीमित नहीं है। ये केवल अंग्रेजी बोलने वाले और अच्छी जॉब करने वाले व्यक्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गांवों में खेती करने वाली महिलाएं भी क्वीर हो सकती हैं। ऐसा सोचना कि क्वीर लोग केवल शहरी या कुलीन वर्ग में ही होते हैं, ये बाकियों को मिटाने के जैसा है।
शहरों में रहने वाले सभी लोगों को क्वीर नहीं कहा जा सकता है। क्वीरनेस किसी की जाति या क्लास या सामाजिक-आर्थिक स्टेटस पर निर्भर नहीं करती है। ये कहना भी गलत है कि शादी एक स्थायी और कभी ना बदलने वाला संस्थान है। विधानपालिका कई कानूनों के जरिए विवाह के कानून में कई सुधार ला चुकी है।
दरअसल, समलैंगिक विवाह का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रर्ड करने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने कोर्ट में इसका विरोध किया था। शीर्ष अदालत ने इस साल 10 दिनों तक चली सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कर रही है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलील
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2018 में अदालत द्वारा समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया गया था। इस फैसले के बाद अगर दो व्यस्क आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो यह अपराध नहीं है। ऐसे में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलनी चाहिए।
इस दौरान केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा कार्रवाई का सही तरीका नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने,समझने और उससे निपटने में सक्षम नहीं होगी।
इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहीं सुप्रीम कोर्ट की वकील करूणा नंदी ने कहा कि हमने बहुत मेहनत की है। काफी समय से संघर्ष चल रहा है और फैसला चाहे कुछ भी हो हमारा संघर्ष जारी रहेगा।