Sardar Patel Death Anniversary: स्कूली दिनों से ही जुझारू तेवर वाले थे सरदार पटेल, जानिए लौह पुरुष से जुड़ी रोचक बातें
Sardar Patel Death Anniversary: अपने सशक्त व्यक्तित्व और कार्यशैली के दम पर उन्होंने लौह पुरुष का दर्जा पाया था। देश की आजादी की लड़ाई में सरदार पटेल ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
Sardar Patel Death Anniversary: देश में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम काफी आदर के साथ लिया जाता है। देश को आजादी मिलने के बाद पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। देसी रियासतों का भारत में विलय करने में सरदार पटेल ने बड़ी भूमिका निभाई थी। वे आजाद भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे। उनका जीवन काफी सादगी पूर्ण था।
अपने सशक्त व्यक्तित्व और कार्यशैली के दम पर उन्होंने लौह पुरुष का दर्जा पाया था। देश की आजादी की लड़ाई में सरदार पटेल ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। बारडोली सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने पटेल को सरदार की उपाधि दी थी। 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली थी। आज सरदार पटेल की पुण्यतिथि है और ऐसे में उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातों पर नजर डालना जरूरी है।
अपनी योग्यता से हासिल किया ऊंचा मुकाम
किसान परिवार में जन्म लेने के बाद सरदार पटेल ने देश की राजनीति में ऊंचा मुकाम हासिल किया था। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। सामान्य किसान परिवार में जन्म लेने के बाद उन्होंने अपनी काबिलियत और मेहनत के बल पर अपना एक सशक्त मुकाम बनाया था। उनके नाम कई उपलब्धियां हैं, जो एक साधारण किसान परिवार के लड़के को खास बनाती हैं। उनकी शादी झबेरबा से हुई थी मगर जब वे सिर्फ 33 साल के थे,तभी उनकी पत्नी का निधन हो गया था।
स्कूली दिनों से ही जुझारू तेवर
सरदार पटेल अपने स्कूली दिनों से ही काफी जुझारू तेवर वाले थे और अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। गुजरात के नडियाद में उनके स्कूल के अध्यापक किताबों का व्यापार किया करते थे। वे छात्रों को बाध्य किया करते थे कि वे किताबें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें।
वल्लभ भाई ने इसका तीखा विरोध करते हुए छात्रों से कहा कि उन्हें अध्यापकों से किताबें नहीं खरीदनी चाहिए। इस कारण छात्रों और अध्यापकों में संघर्ष छिड़ गया और स्कूल कई दिनों तक बंद रहा। आखिरकार वल्लभ भाई की जीत हुई और अध्यापकों की ओर से पुस्तक बेचने की प्रथा पर अंकुश लगा।
महात्मा गांधी के अनुरोध पर हटे पीछे
आजादी मिलने के बाद देश में नई सरकार के गठन की तैयारी शुरू हो गई। पूरे देश की उम्मीद कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नाम पर टिक गईं। लोगों को उम्मीद थी कि जो भी कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनेगा, वही देश का पहला प्रधानमंत्री होगा। सरदार पटेल की लोकप्रियता का ही कमाल था कि साल 1946 में नेहरू के नाम को किसी भी कांग्रेस कमेटी ने प्रस्तावित नहीं किया।
सरदार पटेल का नाम पूर्ण बहुमत से प्रस्तावित किया गया। सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनने ही वाले थे, लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी की बात का सम्मान किया। दरअसल महात्मा गांधी को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं नेहरू कांग्रेस को तोड़ न दें। इसलिए उन्होंने सरदार पटेल से पीछे हटने का अनुरोध किया। पटेल ने भी महात्मा गांधी के अनुरोध का सम्मान करते हुए बड़ा दिल दिखाया और पीछे हट गए।
रियासतों के विलय में बड़ी भूमिका
देसी रियासतों का भारत में विलय करने में सरदार पटेल ने बड़ी भूमिका निभाई थी। आजादी के बाद उन्हें देश का पहला उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया था। जब वे गृहमंत्री बने तो उनके सामने पहली चुनौती थी देसी रियासतों को भारत में मिलाना। कई छोटे बड़े राजाओं और नवाबों को भारत सरकार के अंतर्गत लाना आसान नहीं था। ऐसे मौके पर सरदार पटेल ने बड़ी भूमिका निभाते हुए 562 छोटी बड़ी रियासतों का भारत संघ में विलय किया। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के कारण ही उन्हें लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है।
चीन की साजिश से किया था आगाह
सरदार पटेल आने वाले दिनों की साजिशों को पहले ही भांप लिया करते थे। उनकी सोच काफी दूरदर्शी थी। नवंबर 1950 में उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को खत लिखकर चीन से पैदा होने वाले संभावित खतरे से आगाह किया था। भारत के उत्तर में चीन की घुसपैठ का उन्होंने अंदाजा लगा लिया था। वैसे उनकी बातों को पंडित नेहरू ने गंभीरता से नहीं लिया और इसका खामियाजा भी देश को भुगतना पड़ा। चीन की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण ही 1962 में भारत और चीन का युद्ध हुआ था।
सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा
देश के प्रति सरदार पटेल के योगदान को चिरस्थायी बनाने के लिए ही गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर (597 फीट) ऊंची लौह प्रतिमा स्टैचू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया है। यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इसे 31 अक्टूबर 2018 को देश को समर्पित किया गया। स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी की ऊंचाई केवल 93 मीटर है और सरदार की लौह प्रतिमा उससे करीब दुगनी अधिक ऊंची है।