शीला दीक्षित: पंजाब की बिटिया ने यूपी से सीखी राजनीति, दिल्ली ने दिया ताज
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित का शनिवार दोपहर को निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने पर उन्हें राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे 81 साल की थी।
नई दिल्ली: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित का शनिवार दोपहर को निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने पर उन्हें राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे 81 साल की थी।
शीला दीक्षित 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं, फिलहाल दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। आइये आज हम आपको उनकी राजनीतिक जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे है।
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मिरांडा हाउस से की है पढ़ाई
पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को जन्म लेने वालीं शीला दीक्षित दिल्ली के जीसस एंड मैरी स्कूल में शुरुआती शिक्षा ली। मिरांडा हाउस से पढ़ाई करने वाली शीला युवावस्था से ही राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी थीं।
शीला दीक्षित की शादी उन्नाव के रहने वाले कांग्रेस नेता उमाशंकर दीक्षित के आईएएस बेटे विनोद दीक्षित से हुई थी। विनोद से उनकी मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान हुई थी। शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित सांसद रह चुके हैं। शीला की एक बेटी लतिका भी हैं।
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ससुर से सीखी राजनीति
शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित कानपुर कांग्रेस में सचिव थे। कांग्रेस में धीरे-धीरे उनकी सक्रियता बढ़ती गई और वे नेहरू के करीबियों में शामिल हो गए। इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे। ससुस के साथ ही शीला दीक्षित भी राजनीति में सक्रिय हो गईं।
राजनीति का ककहरा उन्होंने कांग्रेस में लगातार मजबूत होते अपने ससुर से सीखी। एक रोज ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। 1991 में ससुर की मौत के बाद शीला ने उनकी विरासत को पूरी तरह संभाल लिया।
1984 में पहली बार यूपी की इस सीट से लड़ी चुनाव
गांधी परिवार के भरोसेमंद साथियों में शुमार होने वाली शीला को जल्द ही ईनाम भी मिल गया। 1984 में पहली बार कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ीं और संसद पहुंच गईं।
राजीव गांधी की कैबिनेट में उन्हें संसदीय कार्य मंत्री के रूप में जगह मिली। बाद में शीला दीक्षित प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं।
राजीव के बाद सोनिया ने भी उन्हें पूरी तवज्जो दी और 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। इसी साल लोकसभा चुनाव में शीला कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वे हार गईं।
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15 साल तक रहीं सीएम
शीला दीक्षित दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री भी रहीं। 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था। हालांकि, उन्होंने 25 अगस्त 2014 को इस्तीफा दे दिया था।
वे इस साल उत्त र-पूर्व दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ीं थीं। हालांकि, उन्हें भाजपा के मनोज तिवारी के सामने हार का सामना करना पड़ा था। शीला 1984 से 1989 तक कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद रहीं। 1986–1989 तक वे केंद्रीय मंत्री भी रहीं। दीक्षित 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।
2013 में हार के बाद हाशिए पर पहुंचीं
2013 में उन्हें अरविंद केजरीवाल से शिकस्त मिली। इस हार के बाद वे राजनीति में एक तरह से दरकिनार कर दी गईं, और केरल का राज्यपाल बना दिया गया। मोदी सरकार आने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली लौट आईं।
आम आदमी पार्टी से गठबंधन का खुलकर किया विरोध
2019 के चुनाव से ऐन पहले उन्होंने दमदार तरीके से पार्टी में वापसी की थी। राहुल गांधी ने उन पर भरोसा जताया था। चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेस और आप के गठबंधन की खबरें थीं।
शीला दीक्षित ने खुलकर इसका विरोध किया था। वहीं केजरीवाल लगातार कोशिश कर रहे थे कि दिल्ली में उनका कांग्रेस से गठबंधन हो जाए। लेकिन एक बार फिर शीला दीक्षित की ही मानी गई।