छिन्नमस्तिका, मां चिंतपूर्णी धाम जहां मिलता है आस्था को आयाम
शास्त्र बताते हैं कि आदि शक्ति मां जगदंबा ने मानव कल्याण मात्र के लिए अपनी ही योगाग्नि में स्वयं को भष्म कर अपने अंग भारतीय उपमहाद्वीप में 51 विभिन्न स्थानों पर गिराकर अपने शक्ति पीठों को उत्पन्न किया।
दुर्गेश पार्थसारथी,
अमृतसर: शास्त्र बताते हैं कि आदि शक्ति मां जगदंबा ने मानव कल्याण मात्र के लिए अपनी ही योगाग्नि में स्वयं को भष्म कर अपने अंग भारतीय उपमहाद्वीप में 51 विभिन्न स्थानों पर गिराकर अपने शक्ति पीठों को उत्पन्न किया। इन्हीं 51 शक्ति पीठों में से एक है हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में स्थित छिन्नमस्तिका मां चिंतपूर्णी का यह पवित्र धाम। चिंतपूर्णी मां छिन्नमस्तिका के इस पवित्र धाम का संबंध एक पौराणिक कथा से भी जोड़ा जाता है।
देव-दानव संग्राम से जुड़ी है कथा
कथानुसार जब देव-दानव संग्राम में राक्षसराज महाबली शुंभ और निशुंभ नामक अजेय दैत्यों ने आदि शक्ति मां चंडिका व काली रूपों का सामना करते समय अपने सेनापतियों चंड और मुंड के मां के हाथों मारे जाने पर 'रक्तकबीज' नाम के प्रसिद्ध राक्षसों का दल अपनी सेना में शामिल कर लिया। इन राक्षसों को उनकी तपस्या से यह विचत्र वरदान प्राप्त था कि युद्ध में उनके रक्तं के जितने भी कतरे बहकर जमीन पर गिरते थे उनमें से उन्हीं की क्षमता वाले उतने ही रक्त्बीज पैदा हो जाते थे।
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जया और विजया ने पीया था रक्त बीज का रक्त
रणभूमि में उत्पन्न इस विचित्र स्थिति से निपटने के लिए मां जगदंबा ने अपनी दो योगिनियों जया और विजया को आदेश दिया कि वे इन असुरों का रक्त धरा पर गिरने से पहले ही पी जाएं ताकि इन असुरों की छल माया का नाश संभव हो सके। तत्पश्चात् आदि शक्ति मां ने अपने नव शक्ति रूपों में अदम्यअ संग्राम किया। पूरी रणभूमि दैत्यों के शवों से पट गई। रणचंडी नाच उठीं, सियारों के झुंड रणक्षेत्र की ओर दौड़ पड़े। रक्तबीज का समूल नष्ट हो चुका था, लेकिन वे अपनी रक्त पिपासा को शांत न कर सकीं तथा और रक्त की मांग करने लगीं।
जया और विजया के लिए मां ने खुद काट दी थी अपनी गर्दन
उनकी बेचैनी देख मां भगवती ने स्वयं अपनी गर्दन धड़ से अलग कर दी और उनमें से रक्त की दो धाराएं फूट पड़ी। एक जया और दूसरी विजया के मुख में जबकि, बीच में एक तीसरी अमृतमयी रक्तक की जो धारा फूटी वह मां के कांतिमय मुख मंडल में प्रवाहित होने लगी।
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चार महारुद्रों के बीच है चिंतपूर्णी धाम
प्राचीन धर्म शास्त्रों की मान्यतानुसार मां का यह शक्तिमय स्थान चार महारुद्रों के बीच है। पूर्व में भगवान शिव का महाकालेश्वर स्था, पश्चिम में नरहाणा महादेव, उत्तर में मुचकुंद महादेव तथा दक्षिण में शिववाणी स्थित है। कल्यालणकारी मंगलमय आनंददायक, धनवैभव समृद्धिदायक यह स्थायन छिन्नमस्तिका मां चिंतपूर्णी नाम से जग प्रसिद्ध हैं।
कहा हैं चिंतपूर्णी माता का मंदिर
यह पवित्र स्थल हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है। यहां वर्ष में पड़ने वाले चार नवरात्रों (क्वातर और चैत्य के अलावा दो गुप्त नवरात्र) में भक्तों की काफी भीड़ होती है। वैसे भी वर्ष भर यहां हजारों की संख्या में माता के भक्ता आते रहते हैं। यहां पहुंचने के लिए पंजाब के होशियारपुर तक ट्रन से। इससे आगे की यात्रा बस से तय करनी पड़ती है। वैसे यहां पहुंचने के पंजाब के लगभग सभी जिलों से पंजाब रोडवेज की अच्छी सर्विस है। अंबाला, लुधियाना, जालंधर, पठानकोट और चंडीगढ़ से भी बस से पहुंचा जा सकता है।
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