सुभाष चंद्र बोस जयंती: अपने तेवरों से अंग्रेजों की बोलती की बंद, जानें ये मशहूर किस्सा

बोस ने अपने क्रांतिकारी तेवरों से ब्रिटिश राज को भी हिलाकर रख दिया था। अपने नारों से देश के युवा से लेकर बुजुर्गों तक में नए उत्साह का संचार किया था।

Update:2021-01-23 11:29 IST
सुभाष चंद्र बोस: अपने तेवरों से अंग्रेजों की बोलती की बंद, जानिए ये मशहूर किस्सा

लखनऊ: भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक ‘नेताजी’ सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। उन्होंने ना केवल देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, बल्कि 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा', 'जय हिन्द' जैस नारों से देश के युवा से लेकर बुजुर्गों तक में नए उत्साह का संचार किया था। बोस ने अपने क्रांतिकारी तेवरों से ब्रिटिश राज को भी हिलाकर रख दिया था। आज बोस की जयंती के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं-

‘नेताजी’ का जन्म 23 जनवरी को 1897 में ओडिशा (उड़ीसा) के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस पेशे से वकील थे और माता का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए साल 1920 में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा दी और चौथा स्थान लाए। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने नौकरी ठुकरा दी थी।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

इंटरव्यू का ये किस्सा है काफी मशहूर

उनकी जिंदगी से जुड़ा ये किस्सा काफी मशहूर है। जब वो इंटरव्यू देने इंग्लैंड पहुंचे तो वहां पर सभी अंग्रेज अफसर थे, जो कि भारतीयों को उच्च पद देखना पसंद नहीं करते थे। ऐसे में वो भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर कठिन सवाल पूछ रहे थे।

अब बोस की आयी, तो एक अंग्रेज अधिकारी ने एक चलते पंखे को देखकर उनसे प्रश्न किया कि 'इस पंखे में कितनी पंखुड़ियां हैं।' उन्होंने बोस से कहा कि 'अगर तुम इसका सही जवाब नहीं दोगे तो फेल हो जाओगे।' तभी एक अंग्रेज ने भारतीयों को अपमानित करने के मकसद से कहा कि 'भारतीयों में बुद्धि कहां होती है?' अब बोस के पास अंग्रेजों का जवाब देने और उनका मुंह बंद करने का बढ़िया अवसर था।

नेताजी के जवाब से अंग्रेजों की आंखें हो गईं नीची

ऐसे में नेताजी ने भी एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि 'अगर मैंने सही जवाब दे दिया तो आप मुझसे दोबारा कोई सवाल नहीं करेंगे और मेरे सामने यह भी स्वीकार करेंगे कि भारतीय बुद्धिमान होते हैं।' अंग्रेजों ने उनकी बात को स्वीकार लिया। जब बोस अपनी जगह से उठे और पंखा को बंद कर दिया। पंखा रूकते ही उसकी पंखुडि़यां गिनकर बता दी। बोस की सुझबूझ और निर्भीकता देख अंग्रेजों की आंखे नीची हो गई।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी कुछ बातें

बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए जापान की मदद से 'आजाद हिन्द फौज' का गठन किया था। 1943 में बर्लिन में रहते हुए नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की भी स्थापना की। नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहे। कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद नेताजी ने 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक नामक संगठन का गठन किया। 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में उनका निधन हो गया। लेकिन उनकी मौत की गुत्थी आज भी अनसुलझी है।

दरअसल जापान से ये खबर आई कि 18 अगस्त 1945 को दोपहर ढाई बजे ताइवान में एक दुखद हवाई हादसे में नेताजी नहीं रहे। हालांकि हादसे के समय, दिन, हकीकत और दस्तावेजों को लेकर तमाम तर्क-वितर्क, दावे और अविश्वास जारी हैं। उनके जीवित रहने के कई साक्ष्य और बातें रूस और भारत में देखे-सुने गए हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि नेताजी साल 1985 तक जीवित रहे हैं।

‘नेताजी’ के कुछ अनमोल विचार

जिस व्‍यक्ति में पागलपन नहीं होता, वह कभी भी महान नहीं बन सकता, लेकिन सभी पागल व्‍यक्ति महान नहीं बन पाते। क्‍योंकि सभी पागल व्‍यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर ऐसा क्‍यों है? इसका कारण यह है कि केवल पागलपन ही काफी नहीं है, इसके साथ ही कुछ और चीजें भी जरूरी हैं।

हमें अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि उधार की ताकत हमारे लिए घातक होती है।

ध्यान रखें सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।

अगर संघर्ष न हो, किसी का भय न हो, तब जीवन का आधा स्‍वाद ही खत्म हो जाता है।

सुभाष चंद्र बोस कहते थे कि मैंने जीवन में कभी भी किसी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्‍छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता।

सफलता का सफर लंबा हो सकता है, लेकिन उसका आना तय है। इसीलिए हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

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