रामकृष्ण परमहंसः मां काली के साथ अल्लाह से साक्षात्कार करने वाली इकलौती विभूति
भारत भूमि पर इकलौती विभूति स्वामी रामकृष्ण परमहंस हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन में साकार कर लोगों के सामने उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया है।
अखिलेश तिवारी
नई दिल्ली- भक्त शिरोमणि कवि बिंदु महाराज ने गाया है कि-" प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा"। सूफी कवियों ने भी प्रेम की चरम अवस्था का संकेत करते हुए कहा है कि "यह है मेरे जुनून का मौजजा ,जहां अपने सर को झुका दिया। वहीं मैंने काबा बना लिया।"
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्मदिन आज
भारत भूमि पर इकलौती विभूति स्वामी रामकृष्ण परमहंस हुए हैं जिन्होंने कवियों की इस बात को अपने जीवन में साकार कर लोगों के सामने उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस को ऐसे तो पूरी दुनिया मां काली के अनन्य भक्त और पुत्र के रूप में जानती है लेकिन सत्य अन्वेषण के अपनी अदम्य जिज्ञास भावना के चलते भगवान रूप स्वामी परमहंस ने मां काली के साथ ही वेदांत मार्ग पर चलकर परम ब्रह्म का साक्षात्कार किया तो रामलला के भक्त बन कर भगवान राम की बाल लीलाओं का आनंद प्राप्त किया। वह दुनिया के ऐसे विरले साधकों में भी हैं जिन्होंने गोपी भाव में भगवान श्री कृष्ण की आराधना की तो सूफी फकीर की तरह जीवन जीकर अल्लाह का साक्षात अनुभव किया।
भक्त मानते थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस को भगवान
स्वामी रामकृष्ण परमहंस को उनके भक्तों ने भगवान का रूप माना है। यह पाठ पूरी तरह से सच भी दिखाई देती है क्योंकि स्वामी परमहंस जी मृत्युलोक में अकेली ऐसी विभूति कहे जा सकते हैं जो परम ब्रह्म का साक्षात्कार करने की समाधि अवस्था से बार-बार लौट कर संसार में विचरण करते रहे।
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गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है कि सोइ जाने जेहि देहु जनाई ,जानत तुमहि तुमही होइ जाई। अर्थात जो ईश्वर को एक बार समाधि अवस्था में प्राप्त कर लेता है वह लौटकर संसार में नहीं आता और परम समाधि अवस्था ही ईश्वर अवस्था में परिवर्तित हो जाती है। लेकिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस जो भगवान रूप है वह बार-बार संसार में अपने भक्तों के लिए विचरण करते हुए दिखाई देते हैं।
परमहंस की सीख- कंचन और कामिनी की तृष्णा रहते हुए ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं
ईश्वर दर्शन के लिए स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने भक्तों से एक बार कहा भी है कि ईश्वर की प्राप्ति तभी संभव है जब मनका सारा कलुष मिटाकर आत्मा को परमात्मा के तरह विषय- विकार हीन कर लिया जाए। स्वामी जी बार-बार कहते हैं कि कंचन और कामिनी की तृष्णा रहते हुए ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। अपने पूरे जीवन में कभी पैसे को हाथ नहीं लगाया। उनके इस व्यवहार और नियम की परीक्षा के लिए एक बार कुछ लोगों ने उनके बिस्तर में कुछ सिक्के छुपा दिए तो स्वामी जी पूरी रात सो नहीं सके और सुबह उठकर देखा तो उनकी पीठ पर छाले पड़े हुए थे।
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भगवत प्राप्ति के लिए साधना को महत्वपूर्ण बताने वाले स्वामी परमहंस जी महाराज ने अपने भक्तों से एक बार कहा कि हवन कुंड में प्रज्वलित आग के बीच अगर आप गीली लकड़ी डाल दें तो वह नहीं जलेगी। सूखी लकड़ी जल जाएगी लेकिन गीली लकड़ी प्रज्वलित आग में धुआं उत्पन्न करने से ज्यादा कुछ नहीं करेगी। ऐसे में भी अगर प्रज्वलित आज के बीच में गीली लकड़ी का टुकड़ा पड़ा रहे तो आग अपनी गर्मी से उस गीली लकड़ी की नमी को सोख लेगी।
संपूर्ण सृष्टि से प्रेम का दिया पाठ
लकड़ी की नमी सूखने के बाद आपको देखने को मिलेगा कि वह गीली लकड़ी का टुकड़ा भी जलने लगा और जब वह जलकर आग बनेगा तो आपको जिन अंतर करना मुश्किल हो जाएगा कि कौन सा आज का टुकड़ा सूखी लकड़ी वाला है और कौन सा गीली लकड़ी वाला। इसलिए ईश्वर की प्राप्ति के लिए भगवत भजन और साधना बेहद अनिवार्य तत्व है अगर लगातार ईश्वर प्राप्ति की कामना बनी रहेगी और निरंतर प्रयास करते रहेंगे तो एक दिन जरूर ऐसा आएगा जब मन का सारा कलुष मिटेगा और आपकी आत्मा भी सच्चिदानंद परमात्म स्वरुप की तरह निश्छल हो जाएगी। सभी प्राणी मात्र के प्रति प्रेम भाव का निर्माण होगा और ईश्वर की तरह आपको भी संपूर्ण सृष्टि से प्रेम हो जाएगा।
ईश्वर प्राप्ति की राह में सबसे बड़ी बाधा भेद बुद्धि
ईश्वर प्राप्ति की राह में स्वामी जी सबसे बड़ी बाधा भेद बुद्धि को मानते हैं। वह कहते हैं कि यह जो भेद बुद्धि है। यही ईश्वर से मनुष्य आत्म को मिलने नहीं देती है। भेद बुद्धि के बारे में एक बड़ा उदाहरण स्वामी जी ने अपने भांजे के जरिए दिया है। कोलकाता के काली मंदिर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने एक बार भोज का आयोजन कराया।
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सभी लोगों को भोजन कराया जा रहा था उसी समय एक अवघड साधु वहां पहुंचा और जूठे पत्तल के ढेर में जहां कुत्ते बचा खुचा अन्न खा रहे थे, उन्हीं के बीच जाकर बैठ गया और एक कुत्ते के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि अकेले-अकेले खाओगे मुझे नहीं दोगे। यह कहकर वह साधु उस कुत्ते के साथ ही जूते पत्थर से उठाकर अन्न खाने लगा।
परमहंस और उनके भांजे का एक किस्सा
यह देखकर स्वामी जी ने अपने भांजे से कहा - हिरदू, जाकर उस साधु से ज्ञान प्राप्त करो। मामा की आज्ञा पाकर हिरदू ने अवघड़ साधु से कहा कि भगवन, ईश्वर की प्राप्ति कब होगी। पहले तो उस साधु ने उन्हें दूर जाने को कहा लेकिन जब वह देर तक वहीं रुके रहे और बार-बार अपना सवाल दोहराते रहे तो साधु ने कहा कि जब यह नाली का पानी और गंगाजल एक हो जाएगा तब ईश्वर मिलेंगे।
काशी के लिए निकले परमहंस बीच रास्ते दान कर वापस लौटे
ईश्वर प्राप्ति की इस उच्च अवस्था पर पहुंचे स्वामी रामकृष्ण परमहंस यह मानते थे कि प्रकृति में मौजूद प्रत्येक तत्व ही ईश्वर रूप है और उसकी अभ्यर्थना पूजा ही श्रेयस्कर है। इसलिए जब वह बंगाल के राजा के साथ काशी यात्रा के लिए निकले और रास्ते में संथाल परगना में अकाल से पीड़ित लोगों को देखा तो काशी में दान देने के लिए जो कुछ भी लेकर चले थे वह सब कुछ उन्होंने अकाल पीड़ित निर्धन आदिवासियों पर लुटा दिया और अपनी तीर्थ यात्रा को यहीं से पूरी मान कर वापस लौट गए।
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