बड़ी खबर: जयललिता के घर को मेमोरियल नहीं बल्कि इसमें किया जाएगा तब्दील

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के घर को मेमोरियल बनाने के बजाय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास सह कार्यालय के रुपय में बदलने का उपाय सुझाया है।

Update: 2020-05-27 12:28 GMT

चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के घर को मेमोरियल बनाने के बजाय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास सह कार्यालय के रुपय में बदलने का उपाय सुझाया है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि प्राइवेट प्रापर्टी का अधिग्रहण कर मेमोरियल के लिए सार्वजनिक पैसे का इस्तेमाल करना एक ऐसा प्रथा को शुरू करना है, जिसका कोई अंत नहीं है। जजों ने कहा कि जयललिता के पोएस गार्डन वाले घर के केवल एक हिस्से को मेमोरियल के रूप में बदला जा सकता है।

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कोर्ट के सुझाव पर राज्य को देना चाहिए ध्यान

कोर्ट ने कहा कि 'वेदा निलयम' को प्राइवेट प्रापर्टी का अधिग्रहण कर मेमोरियल में बदलने के बजाए इस पर कोर्ट के सुझाव पर ध्यान देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इसके उत्तरदाताओं जे दीपा और जे दीपक को नोटिस जारे करने के बाद और उनके पक्ष को सुनने के बाद ही कानून के मुताबिक प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करना चाहिए। जिसके बाद पोएस गार्डन की प्रॉपर्टी 'वेदा निलयम' को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास सह कार्यालय के रुपय में बदलना चाहिए।

8 हफ्ते के लिए टली मामले की सुनवाई

इस मामवे की सुनवाई कर रही बेंच ने इस मसले पर सुनवाई को 8 हफ्ते के लिए टाल दिया है और इस पर राज्य सरकार का जवाब मांगा है। सुनवाई कर रही बंच में जस्टिस एन किरुबाकरन और अब्दुल कुद्दौस शामिल थे।

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उत्तराधिकारियों को प्रशासन का पत्र पाने का अधिकार

जजों की बेंच ने राज्य सरकार को पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करने से पहले और इसका मुआवजा देने से पहले प्रापर्टी के उत्तराधिकारियों का भी पक्ष सुनने का सुझाव दिया। कोर्ट का कहना है कि दीपक और दीपा जयकुमार जयललिता के क्लास II के कानूनी उत्तराधिकारी हैं और उन्हें प्रशासन के पत्र पाने का अधिकार है।

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प्रशासनिक पत्र पाने के लिए इन्होंने अपनाया था कोर्ट का रुख

बता दें कि तमिलनाडु सरकार ने बीते हफ्ते पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के पोएस गार्डन निवास पर अस्थायी रूप से कब्जा करने के लिए अध्यादेश लाने की बात कही थी। जिसके बाद जयललिता के भतीजे और भतीजी ने पूर्व मुख्यमंत्री की छोड़ी गई संपत्तियों के बारे में किसी फैसले पर प्रशासनिक पत्र पाने के लिए अदालत का रुख अपनाया था।

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