रामलला के सखा त्रिलोकी नाथ पांडेय ने निभाई मित्रता

Update:2019-11-15 14:18 IST
रामलला के सखा त्रिलोकी नाथ पांडेय ने निभाई मित्रता

मंदिर आंदोलन को लेकर आंदोलन की चाहे जितनी लंबी फेहरिस्त गिनाई जाए। कोई भी व्यक्ति या संगठन इस आंदोलन का श्रेय अपने ऊपर लेकर भले ही अपनी पीठ थपथपा ले। लेकिन हकीकत यह है कि रामलला के सखा इस मुकदमे में पक्षकार नहीं होते तो फैसला कानूनी तौर पर मंदिर के पक्ष में आना मुश्किल होता। बलिया निवासी त्रिलोकी नाथ पांडेय रामलला के तीसरे सखा हैं। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए हैं। अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद के कारसेवकपुरम के एक कमरे में निवास करते है। हमारे सहयोगी त्रियुग नारायन तिवारी ने त्रिलोकी नाथ पांडेय से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मैं ही नहीं पूरा देश प्रसन्न है। मैं रामजन्म भूमि के मामले के मुकदमे में अक्टूबर 1994 से हाईकोर्ट की बेंच में मुकदमे की पैरवी करता रहा हूं। बाद में रामलला का सखा घोषित होने पर पक्षकार के रूप में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पैरवी करता रहा। फैजाबाद के दीवानी के वकील मदन मोहन पांडे, रविशंकर प्रसाद, वीरेश्वर द्विवेदी, अरुण जेटली जैसे वकीलों से संपर्क करके मुकदमों की तैयारी करता रहा। हाईकोर्ट में हम अपना वकील पाराशर जी को करना चाहते थे। परंतु वह अस्वस्थता के कारण नहीं आए। बाद में जब हमने उच्चतम न्यायालय में जब अपील की तो पाराशर जी से मिलने चेन्नई गए। उन्होंने तुरंत कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी हम करेंगे। उन्होंने पश्चाताप प्रकट किया कि अस्वस्थता के कारण वो लखनऊ में मुकदमे की पैरवी के लिए जा नहीं सके। पाराशर जी की फीस 25 लाख रुपए प्रतिदिन की बताई गई थी परंतु उन्होंने एक भी पैसा नहीं लिया।

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एक समय ऐसा आया जब हम लोग काफी तनाव में थे। दरअसल, ढांचा गिरने के बाद पूजा पाठ के लिए हम लोग कोर्ट गए। रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने मुकदमा किया था। इस पर कोर्ट का आदेश हुआ, परंतु तत्कालीन कमिश्नर राधेश्याम कौशिक ने उस पर ठीक से अमल नहीं किया। और न ही देवकीनंदन अग्रवाल के साथ अच्छा व्यवहार किया। इस बीच दूसरी पार्टी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और हमारे आदेश पर स्थगन करवा दिया। दर्शन नजदीक से करने के लिए स्वामी जी ने पुन: सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया। कोर्ट ने इस पर आदेश पारित कर दिया जिसके तहत वहां दर्शन पूजन चलता है।

जहां तक मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का सवाल है तो पूरे देश से लगभग 10 प्रमुख मंदिरों के ट्रस्ट की छाया प्रति विश्व हिंदू परिषद ने 2 महीना पहले ही हासिल कर ली थी। सभी ट्रस्टों की नियमावली का अध्ययन विधिवत किया जा चुका है। जहां तक मैं समझता हूं सबसे अच्छी नियमावली श्री माता वैष्णो देवी ट्रस्ट की है, जिसका अनुपालन राम जन्मभूमि मंदिर पर बनने वाले ट्रस्ट में दिखता है। तिरुपति बालाजी का भी ट्रस्ट की नियमावली दूसरे नंबर पर आती है।

बाबर के नाम पर मस्जिद हम लोगों को स्वीकार नहीं है। बाबर आक्रांता था और वह देश का दुश्मन है। उसके नाम पर मस्जिद कतई नहीं बनने देंगे। वैसे अल्पसंख्यक लोग कहीं मस्जिद बनाएं, हम लोगों को कोई आपत्ति नहीं है। बस अपनी मस्जिद बाबर के नाम पर न बनाएं।

देवकी नंदन अग्रवाल थे पहले सखा

रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्रेडिट राम लला के 'सखा' देवकी नंदन अग्रवाल को दिया जाना चाहिए। देवकी नंदन अग्रवाल एक सीनियर वकील थे और बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज बने। उन्हें भगवान राम का अनन्य भक्त माना जाता था। देवकी नंदन इलाहाबाद के कटरा मोहल्ले में रहते थे। उनका बचपन फैजाबाद में बीता था जहां उनके पिता इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल थे। देवकी नंदन की मां भगवान राम की भक्त थीं। अग्रवाल परिवार वैष्णव था। बताया जाता है कि देवकी नंदन की मां राम सखी उनसे कहा करती थीं कि वो एक दिन भगवान राम के 'सखा' बनेंगे।

1983 में रिटायर होने के बाद देवकी नंदन अग्रवाल फैजाबाद चले गए। वहां उन्होंने विवादित भूमि को राम लला की संपत्ति साबित करने के लिए साक्ष्य जुटाने शुरू किए जिसमें राजस्व अभिलेख शामिल थे। उन्होंने 1 जुलाई 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दाखिल कर अपने को राम लला का 'सखा' नियुक्त करने की मांग की। सीपीसी (कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर) का आदेश 32 एक स्थापित देवता को व्यक्ति मानता है। यानी भारतीय कानून में देवता या एक प्रतिमा को व्यक्ति माना जाता है। चूंकि कोर्ट की निगाह में स्थापित देवता सदैव एक नाबालिग होता है सो कोर्ट ने देवकी नंदन को याचिका दाखिल करने वाले दिन ही 'सखा' नियुक्त कर दिया।

बतौर राम सखा, देवकी नंदन ने राम जन्म भूमि और आस्थान जन्मभूमि की ओर से सिविल सूट नंबर 5 दाखिल किया जिसमें राम लला को वादी नंबर 1 बनाया गया था।

देवकी नंदन अग्रवाल ने जीवन पर्यंत राम लला के मित्र के तौर कार्य किया। 2002 में उनके निधन के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर टी.पी.वर्मा को अगला 'सखा' नियुक्त किया गया। 2008 में वर्मा ने 'सखा' स्टेटस से सेवानिृत्त होने का आग्रह हाईकोर्ट और फिर सुप्रीमकोर्ट से किया लेकिन दोनों जगह उनकी दरख्वास्त खारिज कर दी गई। बाद में वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की जिसके बाद कोर्ट ने त्रिलोकी नाथ पांडे को 'सखा' नियुक्त किया। बलिया निवासी पांडे ने 2010 में बतौर 'सखा' काम करना शुरू किया। वो बचपन से ही वह संघ से जुड़े रहे हैं। बाद में वह विश्व हिंदू परिषद के लिए काम करने लगे। 1992 में त्रिलोकी नाथ अयोध्या स्थित कारसेवकपुरम में रहने चले गए।

 

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