किसानों का दर्द: ठण्ड, बारिश और पुलिस की मार सबकुछ सह लेंगे, घर नहीं जाएंगे...
किसान ही सिर्फ परेशान नहीं हैं, बल्कि पुलिसकर्मी और आर्मी के जवान भी अपनी वर्दियों में भीग जा रहे हैं। वे भी किसानों की तरह ही ठिठुरने की बजाय अपनी ड्यूटी के लिए बराबर खड़े हैं।
नई दिल्ली: किसान आन्दोलन का रविवार को 39 वां दिन है। शनिवार को दिन भर आन्दोलन में शामिल होने के बाद थकान दूर करने के लिए जब रात में किसान अपनी जगह सोने के लिए गये तो उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह उनके साथ क्या कुछ होने वाला है।
रविवार को सुबह जब किसानों की नींद खुली तो वे एक दम से हक्का बक्का से रह गये। बाहर खूब तेज सर्द हवा चल रही थी। ट्राली से उतरकर जमीन पर जैसे ही एक किसान ने पैर रखा। उसका एक पांव में पानी में था। पायजामा कीचड़ से सन गया था। उस पर पानी के छीटे पड़े थे।
उसके बाद उसने जब गर्दन आस पास घुमाई तो चारों तरफ पानी ही पानी था। आसमान की तरफ देखा तो अभी भी बादल नजर आ रहे थे।
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बारिश में उखड़ गये टेंट, पांडाल में पानी ही पानी
इतनी में फिर से तेज बारिश शुरू हो गई। वह अभी कुछ समझ पाता इतने में कुछ किसानों की जोर –जोर से चिल्लाने की आवाजें कानों में सुनाई पड़ने लगी। वह भागता हुआ उसी दिशा की तरफ दौड़ा। जिधर से आवाजें आ रही थी।
उसके पीछे-पीछे न्यूजट्रैक की टीम भी दौड़ पड़ी। सामने देखा तो 5 से 6 लोग हाथों से तंबू को पकड़े हुए थे। एक दूसरे को इशारे से कुछ समझा रहे थे। हमें समझते तनिक भी देर नहीं लगी।
दरअसल ये लोग तंबू को सहारा देने की बात कर रहे थे। हमने अपने कैमरा मैन को इशारा किया और उसके बाद हम भी उनकी मदद के लिए उनके साथ लग गये।
काफी देर तक कोशिश करने के बाद टेंट फिर से अपने स्थान पर तनकर खड़ा हो गया। दरअसल तेज आंधी में टेंट उखड़ गया था। हमारे कैमरामैन बेहद होशियार थे। इसलिए उन्होंने बिना समय गंवाए इस पूरे दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर लिया था। सामने देखा तो बड़ा सा पांडाल पानी से लबालब था।
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किसानों का हाल देखकर आंखों में आ जायेंगे आंसू
जब हमारी टीम ने किसानों से बात की तो उन्होंने अपनी आप बीती बयाँ की। उनकी बातों से उनके दर्द को समझा जा सकता था। ये भी साफ हो चुका था कि ये कोई नकली किसान नहीं हैं।
जो किसी के कहने पर यहां ठण्ड और बारिश की तकलीफ उठाने या पिकनिक मनाने के लिए अपना घर बार सब कुछ छोड़कर दिल्ली बॉर्डर पर आये हैं।
बल्कि ये असली किसान हैं। वो किसान जो बारिश से लेकर ठंड के मौसम में रात दिन खेतों में बिना थके और बिना रूके निरंतर काम करता रहता हैं।
हमारी बातचीत जारी रही। इतने में वहां पर कुछ और किसान आ गये। बातचीत तो अभी चल ही रही थी तभी उनमें से कुछ किसानों ने आगे कैमरे की तरफ बढ़ते हुए कहा कि जब तक हमारी मांगें सरकार पूरी नहीं करती है तब तक हम यहां से लौटकर अपने घर वापस जाने वाले नहीं हैं।
नकली किसान का दावा निकला झूठा
उधर मौसम विभाग का कहना है अगले तीन दिन तक यूं ही बारिश रहने वाली है जो तीन दिन बाद थम भी जाएगी, तब भी उसकी गलन अगले एक-डेढ़ हफ्ते तक बनी रहनी है।
जानकारों की मानें तो पश्चिमी विक्षोभ के कारण हुई बारिश ने दिल्ली का तापमान इतना गिरा दिया है कि अठ्ठाइस वर्ष का रिकॉर्ड टूट गया है। लेकिन किसानों का धैर्य न जाने किस मिट्टी का बना है कि टूटने में नहीं आता।
चार तारीख को सरकार से होने वाली बातचीत से उम्मीद रखे इन किसानों में से एक किसान ने आज तक से कहा कि हम यहां सेवा भाव से आए हैं, तो ठंड-शीत सब सह लेंगे, लेकिन तब तक वापस नहीं जाएंगे जबतक कि जिस काम के लिए आए हैं वो पूरा नहीं हो जाता।
बारिश है कि सर्दी में 'वर्षा ऋतु' से प्रतिस्पर्धा कर रही है और किसान हैं कि भारी तकलीफ में भी मुस्कुरा रहे हैं। ऐसी बात नहीं है कि इन बूढ़ी देहों को शीत नहीं लग रही, पर इतने दिनों से अपनी मांगों के लिए टिके हुए किसान बारिश की वजह से हिलने के मूड में नजर नहीं आ रहे।
बारिश होती है तो नौजवान पैंट ऊपर करके सफाई करने लग जाते हैं। जैसे कि ये कहना चाहते हों कि सरकार से बाद में निपटेंगे, पहले शीतलहरों की आंख में आंख डालकर थोड़ा बतकही कर लेते हैं।
सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने कबड्डी का फील्ड बना लिया
यहीं सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने कबड्डी का फील्ड बना लिया है। जहां नौजवानों की टीमें आ रही हैं। लड़कियों की भी टीमें आ रही हैं जो अपने शॉर्ट्स में ही खेलने निकल पड़ती हैं।
चाय की दुकानों और लंगरों पर बाकी दिनों के तरह अब ज्यादा भीड़ नजर आ रही है। हल्कू की चिलम की तरह ही किसानों के पास ये चाय ही है जो इस ठंड से बचने का आखिरी उपाय है। कई बार इन बच्चों, नौजवानों और बूढ़े किसानों को देखकर भरम आता है कि किस अयस्क से इन हड्डियों का निर्माण हुआ है जो ठंड से भय नहीं खातीं।
शास्त्री जी के नारों को भूलने लगे हैं लोग
सिर्फ किसान ही परेशान नहीं हैं, बल्कि पुलिसकर्मी और आर्मी के जवान भी अपनी वर्दियों में भीग जा रहे हैं। वे भी किसानों की तरह ही ठिठुरने की बजाय अपनी ड्यूटी के लिए बराबर खड़े हैं।
कहने को किसान और जवान दोनों ही सत्ता और जनता के रूप में एक दूसरे के एकदम आमने-सामने खड़े हैं, लेकिन शीतलहरों से इनके टकराने के जज्बे को देखकर मन में यही आ रहा है कि शायद इसलिए शास्त्री जी ने कहा था 'जय जवान, जय किसान'।
लेकिन ऐसा लगता है कि किसानों के आलावा शास्त्री की जी की बातों को बाकी लोग भूलते जा रहे हैं या यूं कहे कि भूल चुके हैं।
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