तेज प्रताप सिंह
गोंडा। परसपुर ब्लक क्षेत्र का पसका सूकर खेत सरयू संगम एक पौराणिक व ऐतिहासिक स्थल है। यहां पौष माह के प्रारम्भ होते ही साधु-संत व गृहस्थों के सरयू संगम त्रिमुहानी तट पर कल्पवास की परम्परा है। पूरे पौष माह चलने वाला पसका सूकरखेत स्थित संगम तट का कल्पवास पौष कृष्ण पक्ष की प्रथम तिथि से शुरू हो गया है। स्नान घाट पर जगह-जगह फैले कूड़े-कचरे, पूजा पाठ, स्नान-ध्यान में बाधक साबित हो रही शवदाह की लकडिय़ों के बीच दूरदराज से आए साधु-संतों और गृहस्थों ने फूस की झोपड़ी बनाकर कल्पवास शुरू कर दिया है। ये लोग दो जनवरी को पौष पूर्णिमा का मुख्य स्नान कर अपने घर वापस जाएंगे। कल्पवासियों के आगमन से सूकरखेत लघु प्रयाग का रूप धारण करने लगा है।
पसका सूकरखेत का पौराणिक महत्व
हिरण्यकश्यप का भाई महादैत्य हिरण्याक्ष सतयुग में पृथ्वी को चुराकर पाताल लोक में अपने चारों तरफ मैला एकत्र कर उसी में छिप गया जिससे देवताओं में हाहाकार मच गया। दैत्य के चंगुल से पृथ्वी को छुड़ाने के लिए सुर नर मुनि सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। देवताओं की करुण पुकार से द्रवित होकर भगवान विष्णु वाराह (सूअर) के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने पृथ्वी को लेकर मैले के बीच पाताल में छिपे राक्षस हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को उसके चंगुल से छुड़ाया। भगवान विष्णु के वाराह अवतार गाथा से पसका सूकरखेत वाराह अवतार स्थल के रूप में प्रसिद्घ है। यहां वाराह छत्र के प्राचीनतम मन्दिर में वाराह भगवान विराजमान हैं।
सूकरखेत पसका में प्रवेश करते ही गगनचुंबी मंदिर दिखाई देने लगता है। समय के थपेड़ों ने इस मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई और मंदिर ढह गया। भगवान वाराह की मूर्ति चोरी हो गई परंतु भक्तों ने मंदिर को बनवाकर उसमें पुन: मूर्ति को स्थापित कर दिया। यह मंदिर कल्पवासियों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। कल्पवासी प्रतिदिन संगम स्नान कर भगवान वाराह के दर्शन करने यहां आते हैं।
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संगम वाला स्थान त्रिमुहानी घाट
घाघरा की एक धारा निकलकर पसका स्थित पावन सरयू नदी में मिली है। यहां पर पश्चिम से पूरब की तरफ सरयू नदी बह रही है। दक्षिण से घाघरा की एक धारा आकर सरयू में मिली है। इस स्थान पर नदियों का तीन मुंह है। इसलिए संगम वाले इस स्थान को त्रिमुहानी घाट कहा जाता है। इसी संगम तट पर कल्पवासी फूस की कुटी बनाकर भगवान के भजन में लीन हैं। दो नदियों के संगम के चलते ही यहां कल्पवास का पौरणिक महत्व है। यह स्थान मिनी प्रयाग के रूप में भी जाना जाता है। यहां पौष पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है जिसे संगम मेला कहा जाता है। पौष पूर्णिमा पर लाखों श्रद्घालु यहां स्नान करते हैं।
सूकरखेत में तुलसीदास ने सुनी रामकथा
पसका सूकरखेत में गोस्वामी तुलसीदास के गुरु नरहरि दास का आश्रम है। इस आश्रम में गुरु नरहरि व गोस्वामी तुलसीदास के बालपन की प्रतिमा रखी हुई है जो लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। मां-बाप की बचपन में ही मृत्यु हो जाने से गोस्वामी जी इधर-उधर भटकते हुए नरहरि के आश्रम पहुंचे जहां गुरु नरहरि ने उनका पालन-पोषण करने के साथ ही उन्हें रामकथा सुनाई जिसे सुनकर गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की। गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्थान का उल्लेख करते हुए श्री रामचरित मानस के बालकांड में लिखा है कि मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत अर्थात मैंने अपने गुरु नरहरि दास से रामकथा सूकरखेत में सुनी।
कल्पवास करने वाले साधु-संत प्रतिदिन नरहरि आश्रम में दर्शन करने जाते हैं। श्रद्घालु यहां से चार किमी दूर गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि राजापुर स्थित तुलसीदास मंदिर भी दर्शन के लिए पहुंचते हैं। प्रदेश के कोने-कोने से साधु-संत व गृहस्थ सांसारिक मोह माया त्यागकर इस हाड़कंपाऊ ठंड में सरयू घाघरा संगम तट पर फूस की कुटिया बनाकर भगवत भजन में लीन हैं। सरयू तट पर इनकी कुटिया अलौकिक छटा बिखेर रही है। कल्पवासियों के आगमन से क्षेत्र के मंदिरों में रौनक आ गई है।
समस्याओं का अंबार
सरयू-घाघरा का संगम कराने वाली धारा पर बांध बना देने से दोनों नदियों का संगम खत्म हो गया। यहां केवल कहने भर को संगम है। पक्का स्नान घाट के आगे मिट्टी जमा होने से नदी घाट छोड़कर दूर बहने लगी है और पक्का घाट बेमतलब का हो गया है। यहां गंदगी फैली हुई है। कल्पवासियों के लिए वर्ष 2014 में बनाया गया शौचालय लगभग निष्प्रयोज्य है। बिजली न होने से लोग परेशान हैं। मिट्टी का तेल भी नहीं उपलब्ध कराया गया है, जिससे कल्पवासी अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। उनके लिए अलाव की व्यवस्था भी नहीं है।
कल्पवासियों की पीड़ा
कल्पवास करने आए साधु संतों का कहना है कि यह स्नान घाट उपेक्षा का शिकार है। स्नान स्थल पर भी गंदगी फैली हुई है। जगह-जगह फैला हुआ कूड़े-कचरे का ढेर व शवदाह की लकडिय़ां पूजा-पाठ व स्नान-ध्यान में बाधक साबित हो रही है। बलरामपुर जिले से आए बाबा दयानंद दास ने बताया कि वह पौष मास की शुरुआत से ही यहां कल्पवास के लिए 18 साल से आ रहे हैं।
बहराइच से यहां कल्पवास करने आईं राधा का कहना है कि उन्हें यहां कल्पवास में आनंद की अनुभूति होती है। जम्मू-कश्मीर समेत देश के विभिन्न स्थानों से आए नागा बाबा कई साल से यहां कल्पवास कर रहे हैं। परसपुर क्षेत्र के सकरौर के बाबा राघवराम दास व सूर्यपाल दास, भारत दास, रघुवर दयाल दास, राधा देवी और सुखराजी देवी ने कहा कि वह कई साल से यहां कल्पवास करने आ रहे हैं, लेकिन यहां का प्रशासन इस पौराणिक स्थल के प्रति उदासीन है। इसी का नतीजा है कि यहां गंदगी और अव्यवस्थाओं का अंबार है।