Saraswati River Video: एक शापित नदी -जो लुप्त हो गयी
Saraswati River History: जब हम बात सरस्वती नदी के उद्गम स्थान की करते हैं तो यह राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच से निकली, इसे अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी कहा जाता है । जिसका उद्गम स्थल उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास है।महाभारत में मिले एक वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं।
Saraswati River History: हमारे देश में नदियों को माँ कहा जाता है ।कुछ राज्यों में नदियों को जीवनदायिनी और जीवन का आधार कहा जाता है। पर एक ऐसी भी नदी है जिसके बारे में हमने कम ही सुना है , जिसका उद्गम कहाँ हैं, अंत कहाँ है, कुछ प्रमुख रूप से पता नहीं चलता है ।इसलिए आज एक ऐसी ही नदी के बारे में विस्तार से जानेगें ।
सरस्वती नदी (Saraswati River Wikipedia)
जब हम बात सरस्वती नदी के उद्गम स्थान की करते हैं तो यह राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच से निकली, इसे अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी कहा जाता है । जिसका उद्गम स्थल उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास है।महाभारत में मिले एक वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदि बद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती, एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती नदी मानते हैं और उसे पूजते हैं। भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद से होता था। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है।ऐसा माना जाता है कि नदी कई हजार साल पहले अस्तित्व में थी और यह अब सूख गई या विलुप्त हो गई।
वैज्ञानिक मान्यता (Saraswati River Scientific Evidence)
सरस्वती एक बहुत बड़ी नदी थी जो कि संभवतः हड़प्पा संस्कृति के 4000 वर्ष पूर्व सुख गई अथवा गायब हो गई । इसके पीछे भौगोलिक परिवर्तन होना कारण हो सकते हैं |
सरस्वती का नाम क्यूँ पड़ा? (Saraswati River ka Itihas)
इसके पीछे ऋग्वेद में यह कहा गया हैं कि कला,संस्कृति, भाषा, ज्ञान विज्ञान जन्म एवम वेदों की रचना इस नदी के तट पर ही की गई | सरस्वती ज्ञान एवम कला की देवी हैं | इसलिये इसे सरस्वती नदी कहा गया हैं |
महाभारत में है नदी का उल्लेख
महाभारत के कुछ पृष्ठों में इस नदी का उल्लेख है । जो हरियाणा के सिरसा नामक एक कस्बे में कहीं विलुप्त हो गई थी। भौगोलिक इतिहास और पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि राजस्थान हमेशा से एक शुष्क स्थान नहीं था, बल्कि एक समय यह हरा-भरा क्षेत्र हुआ करता था । जिसने एक बड़ी नदी प्रणाली की मेजबानी की, जिसके कारण इस क्षेत्र के आसपास मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता की स्थापना हुई थी।महाभारत में वर्णित राजा पुरुरवा सरस्वती नदी के तट के पास अपनी होने वाली पत्नी उर्वशी से मिले थे। महाभारत का युद्ध न केवल सरस्वती नदी के पास लड़ा गया था बल्कि उसका पाठ भी तटों के पास ही हुआ था।हिंदू पौराणिक कथाओं की मानें तो सरस्वती नदी देवी सरस्वती का ही एक रूप थी। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता की देवी के रूप में पूजा जाता है, इसी वजह से इस नदी का भी महत्व बहुत ज्यादा है।कई संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान शिव और देवी पार्वती की संतानों में से एक कार्तिकेय को सरस्वती नदी के तट के पास देव सेना का रक्षक नियुक्त किया गया था। वहीं भगवान विष्णु के एक अवतार परशुराम ने अत्याचारी राक्षस की हत्या के पाप का पश्चाताप करने के लिए सरस्वती नदी के पानी में स्नान किया था, जिससे उन्हें पापों से मुक्ति मिली थी।
सरस्वती नदी को मिला विलुप्त होने का श्राप
शास्त्रों में इस बात का जिक्र है कि एक बार जब वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुना रहे थे। उस समय ऋषि ने नदी को धीरे बहने का अनुरोध किया ताकि वह पाठ पूरा कर सके।शक्तिशाली सरस्वती नदी ने उनकी बात नहीं मानी और अपने तीव्र प्रवाह में बहती रही। नदी के इस व्यवहार से क्रोधित होकर, भगवान गणेश ने नदी को श्राप दिया कि वह एक दिन विलुप्त ही जाएगी।शायद एक वजह यह है कि नदी आज अपना अस्तित्व खो चुकी है। एक अन्य कथा की मानें तो माता सरस्वती का जन्म भगवान ब्रह्मा के सिर से हुआ था, उन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। वह उन सबसे खूबसूरत स्त्रियों में से एक थीं जिन्हें भगवान ब्रह्मा ने देखा था।उनकी सुंदरता को देखते हुए उन्होंने सरस्वती जी से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस समय माता सरस्वती उनकी इस इच्छा से सहमत नहीं हुईं और नदी के रूप में जमीन के नीचे बहने लगी।
क्या कहता है रिसर्च
सरस्वती नदी के अस्तित्व की बात की जाए तो अलग-अलग शोध बताते हैं कि इसके अस्तित्व को शास्त्र, पुराण और विज्ञान सभी ने माना है। एक रिसर्च में यह बात कही गयी है कि लगभग 5,500 साल पहले सरस्वती नदी भारत के हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान व गुजरात में लगभग 1,600 किलोमीटर तक बहती थी और अंत में अरब सागर में विलीन हो जाती थी।
अन्य पवित्र नदियों की ही तरह आज भी सरस्वती नदी की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता है। पवित्र नदियों की बात की जाए तो गंगा और यमुना के साथ सरस्वती की पूजा भी की जाती है। सरस्वती नदी को पुराणों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस नदी को देवी की तरह पूजा जाता है। पुराणों में बताया गया है कि यह नदी आज भी बह रही है। लेकिन आज यह नदी किसी को दिखाई नहीं देती है। विज्ञान के अनुसार वो सैकड़ों साल पहले धरती पर थी । लेकिन आज यह नदी विलुप्त हो चुकी है। इसलिए ये नदी अब दिखाई नहीं देती है। शास्त्रों की मानें तो सरस्वती नदी एक श्राप के कारण विलुप्त हो गयी और अब दिखाई नहीं देती है। वहीं एक और कथा के अनुसार इस नदी को प्राप्त एक वरदान के कारण यह विलुप्त होकर भी अस्तित्व में हैं। उसी वरदान की वजह से प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन माना जाता है, जबकि सरस्वती नदी कभी किसी को दिखाई नहीं देती है। फिर भी यह अस्तित्व में बनी है।
सरस्वती नदी के विलुप्त होने का एक और कारण
एक मुनि के शाप के कारण सरस्वती भूमिगत होकर पाताल में चली गई। इसकी सात धारायें पर्वतों पर बहने लगी। यह पश्चिम से पूर्व की तरफ बहने लगी। नेमीषाराण्य के पास एक स्थान पर पहुंची जिसे सप्त सारस्वत कहते हैं यह भी एक तीर्थ हैं। इस प्रकार सरस्वती नदी का इतिहास बहुत से सवालों में घिरा हुआ हैं जिसका जवाब ग्रंथो में मिलता हैं लेकिन उन सभी की पुष्टि अब तक जारी हैं ।