क्या है 13 पॉइंट रोस्टर विवाद?

ये एक नंबर गेम है। किसी यूनिवर्सिटी के विभाग में भर्ती के लिए कम से कम चार पद होने पर ही आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। इन चार में से एक पद ओबीसी के लिए आरक्षित होगा। चार को अगर प्रतिशत आरक्षण से भाग दें तो अनुसूचित जाति और जनजाति को कोई हिस्सा नहीं मिलता।

Update: 2019-03-08 08:28 GMT

ये एक नंबर गेम है। किसी यूनिवर्सिटी के विभाग में भर्ती के लिए कम से कम चार पद होने पर ही आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। इन चार में से एक पद ओबीसी के लिए आरक्षित होगा। चार को अगर प्रतिशत आरक्षण से भाग दें तो अनुसूचित जाति और जनजाति को कोई हिस्सा नहीं मिलता। क्योंकि 4 का 15 प्रतिशत 0.60 है जो एक से कम है। ऐसे ही अनुसूचित जाति का हिस्सा 7.5 प्रतिशत 0.37 है। ऐसे में इनके लिए कोई आरक्षण नहीं होगा। संख्या 4 का ओबीसी का हिस्सा यानी 27 प्रतिशत 1.08 है जो कि एक से ज्यादा है। ऐसे में चार पद होने पर ओबीसी के लिए एक सीट आरक्षित होगी।

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13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक विभाग में निकलने वाली 14 जगहों में पहली तीन अनारक्षित वर्ग के लिए, चौथी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए, पांचवी और छठी अनारक्षित, सातवीं जगह अनुसूचित जाति, आठवीं जगह अन्य पिछड़ा वर्ग, नवीं,

दसवीं और ग्यारहवीं जगह अनारक्षित, बारहवीं जगह ओबीसी, तेरहवीं जगह अनारक्षित और चौदहवीं जगह अनुसूचित जनजाति के लिए होगी।

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13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक अनुसूचित जनजाति तक आरक्षण देने के लिए कम से कम विभाग में 14 भर्तियां निकालनी होंगी। लेकिन समस्या है कि एक विभाग में अधिकांश समय दो-तीन से ज्यादा भर्तियां नहीं निकलती हैं. ऐसे में इस व्यवस्था के चलते यूनिवर्सिटी की प्रोफेसरशिप में आरक्षण बमुश्किल लागू हो पा रहा था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 40 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 95.2% प्रोफेसर, 92.9% एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27% असिस्टेंट प्रोफेसर सामान्य कैटेगिरी से आते हैं। मतलब ये वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिला है।

केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2019 को 13 पॉइंट रोस्टर को ही लागू रखने का आदेश दिया। इसके विरोध में 5 मार्च को ओबीसी, एससी और एसटी संगठनों

द्वारा भारत बंद बुलाया गया जिसके बाद केंद्र ने इस आदेश को पलटने के लिए अध्यादेश लाने का आश्वासन दिया. 7 मार्च को हुई मोदी सरकार की आखिरी कैबिनेट मीटिंग में इस अध्यादेश को लाने का फैसला किया गया। इसका नाम

रिजर्वेशन इन टीचर्स काडर अध्यादेश, 2019 रखा गया है। इस अध्यादेश के बाद से विश्वविद्यालयों की भर्तियों में 200 पॉइंट रोस्टर लागू हो जाएगा।

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क्या है रोस्टर

मिसाल के तौर किसी खेल का मैच शुरू होने से पूर्व दोनों टीमों के खिलाडियों की जानकारी डी जाती है। कौन सा खिलाड़ी किस पोजीशन पर खेलेगा, उसकी उम्र, उसका रिकार्ड आदि ये रोस्टर होता है।इसी तरह दफ्तर में काम करने वालों के

वर्क रोस्टर में लिखा होता है कि किस कर्मचारी को किस दिन काम पर आना है। और किस दिन छुट्टी होती है।

यूपीए सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग यानी डीओपीटी ने साल 2005 में यूजीसी से कहा कि विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में लागू आरक्षण व्यवस्था की खामियों को दूर किया जाए. यूजीसी ने प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई. इस कमेटी ने डीओपीटी के 2 जुलाई 1997 के दिशानिर्देश के अनुसार 200 पॉइंट रोस्टर लागू किया. कमेटी के मुताबिक विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर - तीन स्तर की भर्तियां की जाएंगी। इसके लिए किसी विभाग को एक इकाई न मानकर विश्वविद्यालय या कॉलेज को एक इकाई माना जाएगा क्योंकि भर्तियां कॉलेज या विश्वविद्यालय करता है कोई एक विभाग नहीं।

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अगर किसी यूनिवर्सिटी में 100 पद खाली हैं तो इसमें से अनुसूचित जाति को 15, अनुसूचित जनजाति को 7.5 और ओबीसी को 27 जगहें मिलनी चाहिए। मतलब 200 पॉइंट रोस्टर का मतलब था कि यूनिवर्सिटी में निकलने वाली 200

रिक्तियों में 30 एससी, 15 एसटी, 54 ओबीसी और 101 अनारक्षित वर्ग के लिए रखी जाएंगी।इस व्यवस्था को बीएचयू के एक छात्र ने इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने 2016 में यूजीसी के फैसले को पलट दिया और आदेश दिया कि विश्वविद्यालयों में भर्ती के लिए विभाग को ही इकाई माना जाए और इसी के साथ 13 पॉइंट रोस्टर लागू हो गया।

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