नई दिल्ली: वैश्वीकरण के इस दौर में कोई भी देश किसी समुदाय विशेष को अछूता नहीं छोड़ सकता है। रंगभेदी नीतियां भी धीरे-धीरे बीते समय की बातें होती जा रही हैं। कनाडा और भारत के बीच बढ़ते और मजबूत होते रिश्तों का ही नतीजा है कि सपरिवार भारत के दौरे पर आए हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने दौरे के दौरान अब अमृतसर में स्वर्ण मंदिर जाने की तैयारी हैं। कनाडा के पीएम का स्वर्ण मंदिर जाना महत्वपूर्ण है।
गौरतलब है कि कनाडा 1914 में हुई 'कामागाटामारू' त्रासदी के लिए भारतीयों से पहले ही अधिकारिक रूप से क्षमा मांग चुका है और अब स्वर्ण मंदिर जाना कहीं न कहीं उनकी भारत से रिश्तों में मिठास घोलने की ललक का नतीजा दिखाई दे रही है।
क्या थी कामागाटामारू त्रासदी?
कामागाटामारू भाप से चलने वाला समुद्री जहाज था। यह जहाज हांगकांग में रहने वाले बाबा मुरदित्त सिंह ने खरीदा था। 1914 में इस जहाज से पर सवार होकर पंजाब के 376 कामगार कनाडा गए थे, लेकिन वहां के नस्लीय आव्रजन कानूनों के कारण उन्हें वहां उतरने नहीं दिया गया। केवल 24 लोगों को उतार कर बाकी को वापस कर दिया गया। इस जहाज में 340 सिख, 24 मुसलमान और 12 हिन्दू थे। जब जहाज वापस भारत लौटा तो कोलकाता में बजबज घाट पर ब्रिटिश पुलिस फायरिंग कर दी। जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी।
पहले भी कनाडाई पीएम जाता चुके हैं दुख
इससे पहले 2006 में कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भी कामागाटा मारू को देश के इतिहास का एक दुखद क्षण करार दिया था। हार्पर ने कहा था, कि 'किसी भी अन्य देश की तरह हमारे देश में भी कमियां हैं। मैं कहना चाहता हूं कि कनाडा की सरकार उस दुखद घटना को स्वीकार करती है।' 20 मई, 2016 को प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में इस घटना के लिए आधिकारिक रूप से माफ़ी मांगी थी।