भारतीय जनता पार्टी मानकर चल रही है कि तीन तलाक विधेयक के कारण उसे मुस्लिम महिलाओं का समर्थन हासिल हुआ है। चुनावी आंकड़े भी कई जगह ऐसा संकेत दे चुके हैं। तीन तलाक का मुस्लिम वर्ग में विरोध है, लेकिन इसी वर्ग की महिलाएं दबी जुबान इसके समर्थन में हैं। तो फिर, बिहार से कैसा संकेत है? बिहार के खगडिय़ा जिले में हजारों मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक विधेयक के खिलाफ आवाज बुलंद कर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना। लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम की लहर ने अप्रत्याशित तौर पर खगडिय़ा जैसी सीट को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक लोक जनशक्ति पार्टी के खाते में डाल दिया। विधानसभा चुनाव में खगडिय़ा के मतदाताओं ने राजद व कांग्रेस के समर्थन से उतरे जदयू को जीत दिलाई। विकास या मुद्दों से अलग कैडर वोट के मामले में राजद अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और जदयू अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रहने वाले खगडिय़ा में केंद्र सरकार के तीन तलाक विधेयक का मुखर विरोध चर्चा में है।
पूरे देश में जहां ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक विधेयक से खुश हैं, वहीं खगडिय़ा में सडक़ पर मुखर हुए विरोध ने एक नई बहस छेड़ दी है। मुस्लिम महिलाएं तख्तियों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ से छेड़छाड़ का विरोध करती दिखीं और साफ कहा कि तीन तलाक से उनका नुकसान ही होगा।
महिलाओं के हाथों में ‘तीन तलाक बिल वापस लो’ की तख्तियां थीं। खगडिय़ा जिले के गोगरी अनुमंडल मुख्यालय में 17 फरवरी को एकजुट हुई मुस्लिम महिलाएं तख्तियों के जरिए नारा बुलंद कर रही थीं- ‘इस्लामी शरीयत हमारा एजाज़, हम सदर जमुरिया खत्ताव की मजम्मत करते हैं । हम कानून-ए-शरीयत को पसंद करते हैं। हम पर्सनल लॉ के साथ हैं। हम तीन तलाक बिल को वापस लेने की मुतालबा करते हैं।’ तीन तलाक विधेयक के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं का घर की चौखट लांघकर सडक़ पर उतरना मुस्लिम प्रभाव वाले बिहारशरीफ, किशनगंज, कटिहार, अररिया आदि जिलों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
अगले महीने होने वाले अररिया लोकसभा चुनाव की चर्चा के बीच खगडिय़ा के इस घटनाक्रम को भी खुलकर हवा मिल रही है। खगडिय़ा जिला में निकाले मौन जुलूस ने सियासी गलियारे में, खासकर महागठबंधन के नेताओं को सहज मुद्दा दे दिया है।
वीरचंद पटेल पथ की हलचल बता रही है कि राजद इस विरोध के रूप-स्वरूप और इस गोलबंदी की पूरी प्रक्रिया को समझते हुए अब आगे की रणनीति तैयार करने में जुटेगा। राजद इस भीड़ की एकजुटता का आंकलन करने के बाद यह तय करेगा कि तीन तलाक विधेयक के खिलाफ वह विरोध के किस मॉड्यूल पर काम करे।
मौन जुलूस की बुलंद आवाज दूर तक पहुंची
खगडिय़ा में मुस्लिम महिलाएं गोगरी में मदरसा नूरुल उलूम के पास इकट्ठा हुई थीं। तहफ्फ़़ुज़ शरीयत कमेटी के तत्वाधान में मौलाना काजी अरशद कासमी की रहनुमाई में यह मौन जुलूस निकाला गया था। इसके बाद मंतशा खातून, दरक्शा खातून, सीमा परवीन, फातिमा खातून, शगुफ्ता खातून, चांद बेगम, नूरजहां खातून, हसीना खातून, इरफाना खातून, नजमा खातून आदि ने अनुमंडल दंडाधिकारी संतोष कुमार को पांच सूत्री मांगों का एक ज्ञापन सौंपा।
इस ज्ञापन में कहा गया है कि 28 दिसंबर 2017 को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पारित ‘तीन तलाक बिल’ से हम आहत हैं। हम सभी मुस्लिम महिलाएं इस विधेयक के खिलाफ हैं। यह विधेयक महिला विरोधी भी है और बच्चों के खिलाफ भी जाता है।’
‘तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल में इस कानून का जबरदस्त विरोध हुआ है। सरकार ने तीन साल की सजा तो तय कर दी है। सवाल यह है कि सजा किस क्रिमिनल ऑफेंस की होगी। यदि एक साथ तीन तलाक देना क्रिमिनल ऑफेंस है तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार तीन तलाक देने से तलाक मान्य नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने तो पहले से ही इसे निष्प्रभावी बना दिया है।यह बिल संविधान की धारा 14 और 15 का उल्लंघन है।’
- मौलाना वली रहमानी, जनरल सेक्रेटरी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड