Women Reservation Bill: मोदी सरकार ने बिल में क्यों जोड़ी जनगणना और परिसीमन की शर्त, सता रहा था किस बात का डर

Women Reservation Bill: मोदी सरकार की ओर से पेश किए गए इस विधेयक में जनगणना और परिसीमन की शर्त भी जोड़ी गई है जिसे लेकर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े कर दिए हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2023-09-20 12:32 IST

Women Reservation Bill (photo: social media )

Women Reservation Bill: नए संसद भवन में पहले ही दिन मोदी सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पेश करते हुए सियासी खलबली मचा दी है। लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने वाले इस विधेयक को नारी शक्ति वंदन विधेयक नाम दिया गया है। मोदी सरकार की ओर से पेश किए गए इस विधेयक में जनगणना और परिसीमन की शर्त भी जोड़ी गई है जिसे लेकर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि अगर सरकार की ओर से यह शर्त नहीं जोड़ी गई होती तो देश की महिलाओं को इस विधेयक का तुरंत लाभ मिलता। विपक्षी दल इसे मोदी सरकार का जुमला बता रहे हैं।

दूसरी ओर जानकारों का मानना है कि सरकार ने काफी सोच-समझ कर यह कदम उठाया है। अगर सरकार की ओर से यह कदम नहीं उठाया गया होता तो बाद में यह मामला अदालती पचड़े में फंसने की पूरी आशंका थी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल में उठाए गए एक कदम के बाद सरकार ने इसे शर्त को जोड़ना जरूरी समझा है। हालांकि इस शर्त को जोड़ने के बाद सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर भी आ गई है।

बिल के साथ परिसीमन और जनगणना की शर्त

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की ओर से पेश किए गए इस विधेयक का पारित होना औपचारिकता माना जा रहा है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के साथ ही कई अन्य दल भी इस विधेयक का समर्थन करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वैसे यह विधेयक भले ही संसद से पारित हो जाए पर यह अगले साल देश में होने वाले लोकसभा चुनाव में लागू नहीं हो पाएगा। विधेयक में साफ तौर पर कहा गया है कि कानूनी रूप से अधिसूचित होने और परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण को लागू किया जाएगा।

परिसीमन के लिए देश में जनगणना जरूरी है और जनगणना का काम काफी दिनों से लटका हुआ है। 2021 में जनगणना होनी थी मगर यह अब तक नहीं हो सकी है। 2027 में जनगणना होने की उम्मीद जताई जा रही है और फिर उसके बाद परिसीमन की दिशा में कदम उठाते हुए महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण किया जा सकेगा यानी इसका मतलब साफ है कि महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था 2029 के लोकसभा चुनाव से ही लागू हो पाएगी।


कांस ने बताया महिलाओं के साथ धोखा

मोदी सरकार की ओर से जनगणना और परिसीमन का मुद्दा जोड़े जाने पर विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस ने इसे मोदी सरकार का चुनावी जुमला बताया है। पार्टी ने कहा कि उसने हमेशा महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया है, लेकिन यह बिल सबसे बड़ा चुनावी जुमला और देश की करोड़ों महिलाओं व लड़कियों की उम्मीद के साथ बहुत बड़ा धोखा है।

पार्टी ने कहा कि इस बिल के मसौदे में साथ तौर पर लिखा गया है कि यह जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही प्रभावी होगा। इसका मतलब है कि मोदी सरकार ने महिलाओं के आरक्षण के लिए 2029 तक दरवाजा पूरी तरह बंद कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और जयराम रमेश ने भी इसे लेकर सरकार पर हमला बोला है।


आम आदमी पार्टी ने भी बताया जुमला

दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने भी परिसीमन और जनगणना के प्रावधान को शामिल करने पर सवाल उठाए हैं। आप की वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने कहा कि बिल के प्रावधान पढ़ने पर पता चलता है कि यह महिलाओं को बेवकूफ बनाने वाला बिल है। उन्होंने सवाल किया कि आखिरकार इसमें परिसीमन और जनगणना के प्रावधान को क्यों शामिल किया गया। इसका मतलब साफ है कि यह मोदी सरकार का चुनावी जुमला है और सरकार का इसे अभी तत्काल लागू करने का कोई इरादा नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश

विपक्ष की ओर से इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला जरूर किया जा रहा है मगर सरकार ने न्यायिक दखल रोकने की मंशा से इस प्रावधान को बिल के साथ जोड़ा है। दरअसल 2022 और इस साल भी जिन भी राज्यों में स्थानीय निकाय चुनाव हुए हैं, वहां सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण लागू होने से पहले एक कमेटी के जरिए संबंधित जाति के सर्वे को अनिवार्य कर दिया था।

जिन राज्यों में यह कदम नहीं उठाया गया वहां के चुनाव रद्द कर दिए गए और सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेक्षण कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण तय होने के बाद ही चुनाव कराने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि राज्यों में सरकारों को इस स्थिति का सामना करना पड़ा था।


सरकार की न्यायिक दखल रोकने की मंशा

कानूनी जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस रुख को देखते हुए यदि मोदी सरकार की ओर से लोकसभा और विधानसभाओं में इतनी बड़ी संख्या में बिना परिसीमन के आरक्षण का प्रावधान किया जाता तो इसे कोर्ट में चुनौती मिलना तय था। शीर्ष अदालत के पुराने रुख को देखते हुए फिर इसके लागू होने में दिक्कतें खड़ी होना तय माना जा रहा था। इसी कारण सरकार की ओर से परिसीमन और जनगणना की शर्त को जोड़कर न्यायिक दखल रोकने की कोशिश की गई है।

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