Manipur Violence: मणिपुर में हिंसा से बेपटरी हुई जिंदगी, मां मार्केट की महिला दुकानदारों की हालत खराब

Manipur Violence: इंफाल. उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर पिछले 48 दिनों से हिंसा की आग में झुलस रहा है। राज्य में भड़की जातीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों समुदायों के बीच इस कदर मारकाट मची हुई है कि गांव-गांव के जला दिए जा रहे हैं। हजारों आशियानों को बर्बाद किया जा चुका है।

Update: 2023-06-19 10:28 GMT
मणिपुर में हिंसा के कारण मां मार्केट की महिला दुकानदारों का धंधा बर्बाद: Photo- Social Media

Manipur Violence: उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर पिछले 48 दिनों से हिंसा की आग में झुलस रहा है। राज्य में भड़की जातीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों समुदायों के बीच इस कदर मारकाट मची हुई है कि गांव-गांव के जला दिए जा रहे हैं। हजारों आशियानों को बर्बाद किया जा चुका है। जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग अपने ही राज्य में शरणार्थी बन गए हैं। हिंसा और तनाव के कारण राज्य में व्यापार, उद्योग-धंधे सबकुछ चौपट हो चुका है।

मणिपुरी जनता के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है। बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ है। अगर दुकानें खुली भी हैं, तो वहां ग्राहक नहीं पहुंच रहे। सड़कों पर केवल संगीनों के साथ सुरक्षाबल नजर आ रहे हैं। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि इतने बदतर हालात कोरोना महामारी के दौरान भी नहीं हुए थे। बता दें कि कोरोना के कारण लगभग दो वर्ष काम-धंधे प्रभावित हुए थे।

दुनिया की एकमात्र मां मार्केट की हालत खराब

मणिपुर की राजधानी इंफाल स्थित एमा स्थल यानी मां मार्केट भी दयनीय स्थिति में है। इस बाजार का इतिहास 500 साल पुराना है। इसकी खास बात ये है कि दुनिया का ये एकमात्र ऐसा बाजार है, जहां की दुकानें महिलाएं संचालित करती हैं। यहां करीब 5 हजार महिला दुकानदार हैं। आमतौर पर यहां काफी चहल-पहल रहा करती थी। टूरिस्ट भी बड़ी संख्या में आया करते थे। लेकिन आंतरिक अस्थिरता ने इसकी सूरत ही बदल दी है।

बाजार में खौफनाक सन्नाटा पसरा हुआ है। दुकानें खुली हैं लेकिन ग्राहक नदारद हैं। कई दिंनों तक बिक्री न होने के कारण महिला दुकानदारों के सामने परिवार का पेट पालना चुनौती बन गया है। महिला दुकानदारें बाजार में जो ग्राहक भी मिलता है, उससे अपना उत्पाद खरीदने की विनती करती हैं। कई तो पैसे के लिए औन-पौन दामों में बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं। राज्य के हालात को लेकर इन दुकानदारों में गहरी निराशा फैल गई है।

कुछ अवसाद शिकार होते जा रहे हैं। इन्हें उम्मीद नहीं है कि कब युद्ध रूकेगा और फिर से हालात पहले की तरह सामान्य हो पाएंगे। यहां दुकान चलाने वाली महिलाओं का कहना है कि पहले वह प्रतिदिन 4 से 5 हजार रूपये कमा लिया करती थीं। लेकिन अब 200-300 रूपये कमाना भी मुश्किल हो रहा है। इनका कहना है कि इतने कठिन हालात तो कोरोना महामारी के दौर में भी नहीं थे।

पीएम मोदी के खिलाफ बढ़ रहा गुस्सा

डेढ़ माह से जारी हिंसा को लेकर मणिपुरी जनता का धैर्य अब जवाब देने लगा है। उनमें केंद्र सरकार खासकर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रोश साफ नजर आ रहा है। रविवार को राजधानी मणिपुर समेत अन्य हिस्सों में प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम का विरोध हुआ। प्रदर्शनकारियों ने रेडियो सेट सड़क पर फेंककर और उसपर पत्थर चलाकर अपना गुस्सा दिखाया। उन्होंने कहा की मन की बात की बजाय हम मणिपुर के मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं। हम मणिपुर की बात चाहते हैं।

3 मई से जारी है हिंसा

बता दें कि मणिपुर में 3 मई से मैतेई, नगा और कुकी समुदाय के बीच हिंसा जारी है। इस जातीय संघर्ष में आदिवासी समुदाय नगा और कुकी एक तरफ और मैतेई दूसरी तरफ हैं। मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने का आदिवासी समुदाय तीखा विरोध कर रहे हैं। अब तक की हिंसक घटनाओं में दोनों तरफ के निर्दोष लोग हताहत हुए हैं। अब तक करीबन 150 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 350 के करीब घायल हुए हैं। केंद्र और राज्य के तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य में हिंसा का दौर नहीं थम रहा है।

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