World Toilet Day: ऐसे होते थे शाही टॉयलेट, जानकर हो जाएंगे दंग

आज से करीब 5000 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी टॉयलेट्स मिले हैं। खुदाई के दौरान फ्लश टॉयलेट और नॉन फ्लश टॉयलेट दोनों पाए गए हैं। नालियों का जाल भी बिछा हुआ मिला है जो कचरे को बाहर करने में काम आता था।

Update:2020-11-19 09:14 IST
आज से करीब 5000 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी टॉयलेट्स मिले हैं। खुदाई के दौरान फ्लश टॉयलेट और नॉन फ्लश टॉयलेट दोनों पाए गए हैं।

लखनऊ: हर साल 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है। साल 2001 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई थी। सयुक्त राष्ट्र ने साल 2013 में इसे अधिकारिक तौर पर विश्व शौचालय दिवस घोषित किया था। विश्व शौचालय दिवस पर इस साल की थीम है सस्टेनेबल सैनिटेशन एंड क्लाइमेट चेंज।

शौचालय का इस्तेमाल हमारे जीवन को सुरक्षित रखता है। इससे साथ अलग-अलग बीमारियों को फैलने से रोकने मदद करता है। विश्व शौचालय दिवस वैश्विक स्वच्छता संकट से निपटने के लिए समाज को प्रेरित करता है।

गौरतलब है कि क्रेंद की मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर, 2014 को गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान शुरू की थी। इसके तहत सरकार ने शहर से लेकर गांव सफाई पर विशेष ध्यान दिया। स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ू थामा है और सड़कों पर सफाई की हैं। इसके तहत सरकार देश में बड़ी संख्या में शौचालय बनाने का काम कर रही है।

ये भी पढ़ें...राजाओं के शाही टॉयलेट! खेतों में नहीं बल्कि अपने ही महलों करते थे ये काम

क्या पहले भी था शौचालय

सरकार का लक्ष्य है कि घर-घर शौचालय हो। आज हम आपको विश्व शौचालय दिवस के मौके पर बताते हैं कि प्राचीन काल में राजा और रानियां शौच के लिए कहा जाते थे और उनके लिए इसकी क्या व्यवस्था थी। यह भी सवाल उठता है कि क्या प्राचीन काल में राजा महाराजा भी खुले में शौच जाते थे। आज हम आपको इन्हीं सवालों के जवाब देंगे। आईए जानते हैं प्राचील काल में राजा और महाराजाओं के लिए क्या व्यवस्थी।

पहले राजा और रानियों के लिए बड़े-बड़े राजमहल होते थे जिसमें शौचालय की विशेष व्यवस्था होती थी। उनके लिए जिस प्रकार मुख्य महल से अलग स्नानघर होता था उसी प्रकार बाड़े की तरह शौचालय की भी व्यवस्था होती। कहा जाता है कि शौच के बाद उस अपशिष्ट पर मिट्टी या राख डाल दी जाती थी। राजस्थान के किले में एक शाही टॉयलेट पाया गया है। बताया जाता है कि इस टॉयलेट का इस्तेमाल सिर्फ राजपरिवार किया करते थे। यह विशेष सुविधाओं से लैस टॉयलेट था।

ये भी पढ़ें...नेताजी पर सियासत: ममता ने लिखी पीएम मोदी को चिट्ठी, जयंती पर की ये मांग

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में मिले टॉयलेट्स

आज से करीब 5000 वर्ष पहले सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी टॉयलेट्स मिले हैं। खुदाई के दौरान फ्लश टॉयलेट और नॉन फ्लश टॉयलेट दोनों पाए गए हैं। नालियों का जाल भी बिछा हुआ मिला है जो कचरे को बाहर करने में काम आता था। 5000 साल पहले खुदाई में मिला यह एक ड्राई टॉयलेट है। जिस प्रकार आज कल के सम्प टॉयलेट्स होते हैं। यह देखने में बिल्कुल वेस्टर्न टॉयलेट की तरह होता था।

माना जाता है कि करीब 500 साल पहले जब मुगल भारत में आए तब भी उन्होंने ऐसे ही टॉयलेट बनवाए। कई भारतीय राजाओं के रामहल में ऐसे शौचालय मिलते हैं। राजस्थान के बूंदी किले में भी शौचालय पाया गया था।

ये भी पढ़ें...पुलिस को बड़ी कामयाबी: रांची से 5 उग्रवादी गिरफ्तार, सरगना की तलाश जारी

संग्रहालय में मौजूद हैं प्राचीन काल में शौचालय के सबूत

गौरतलब है कि दिल्ली में सुलभ शौचालय का संग्रहालय का निर्माण कराया गया है। संग्राहलय में राजा महाराजाओं के समय के सिंहासन की तरह दिखने वाले टॉयलेट और हड़प्पा सभ्यता के दौरान मोहन जोदड़ो में इस्तेमाल किए वाले टॉयलेट सीट, सभी तरह के प्राचीन शौचालय रखे गए हैं। इन सभी खोजों से पता चलता है कि भारत के लोग प्राचीन काल से स्वच्छता का ध्यान रखते थे।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें

Tags:    

Similar News