बिल गेट्स का नया बाजार, खोला टॉयलेट एक्सपो , खर्च होंगे इतने पैसे

कभी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज के बेताज बादशाह रहे बिल गेट्स इन दिनों अपने लिए एक नए बाजार की तलाश में हैं। उनके मन मुताबिक सबकुछ ठीकठाक चलता रहा तो जल्द ही बिल गेट्स टॉयलेटके बाजार में कदम रखेंगे।

Update:2020-11-19 20:15 IST
बिल गेट्स का नया बाजार, खोला टॉयलेट एक्सपो , खर्च होंगे इतने पैसे

लखनऊ: कभी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज के बेताज बादशाह रहे बिल गेट्स इन दिनों अपने लिए एक नए बाजार की तलाश में हैं। उनके मन मुताबिक सबकुछ ठीकठाक चलता रहा तो जल्द ही बिल गेट्स टॉयलेट के बाजार में कदम रखेंगे। बीते दिनों चीन के बीजिंग के टॉयलेट एक्सपो में जब मानव मल भरे एक जार को लेकर बिल गेट्स ने कदम रखा था तो शायद किसी को यह इलहाम नहीं रहा होगा कि उनका यह ‘स्टैंड’ किसी नए मिशन की तलाश की जगह नए बाजार के वजूद के लिए है।

नए किस्म का एक टॉयलेट तैयार

उन्होंने नए किस्म का एक टॉयलेट तैयार किया है, जिसमें प्रति व्यक्ति रोजाना इस्तेमाल पर तीन रुपये बासठ पैसे का खर्च आएगा। हाल फिलहाल एक टॉयलेट की कीमत दस हजार डॉलर यानी छह लाख अस्सी हजार रुपए होगी। हालांकि उनका दावा है कि अगर इसे बड़े पैमाने पर तैयार किया गया तो एक टॉयलेट की कीमत पांच सौ डॉलर यानी 35 हजार के आसपास आएगी। उनके टॉयलेट में पानी खर्च नहीं होगा। बदबू मिटाने के लिए बिल गेट्स फाउंडेशन और स्विटजरलैंड की परफ्यूम कंपनी ‘फर्मेनिश’ ने इस टॉयलेट में ‘स्मेल ब्लाकर’ लगा रखा है। अकेले भारत में हर साल स्वच्छता के मद में 32 बिलियन डॉलर खर्च होते हैं, जबकि 2021 तक यह आंकड़ा 62 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इस टॉयलेट का मॉडल भी बिल गेट्स के हाथ में बीजिंग एक्सपो में था।

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बिल गेट्स दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी हैं। फोब्र्स के मुताबिक उनकी चल-अचल संपत्तियों का मूल्य 95.7 बिलियन डॉलर का है। इस साल माइक्रोसॉफ्ट की सकल आय 16.57 बिलियन डॉलर रही है। वैश्विक स्तर पर बिल गेट्स को इस साल 110.36 बिलियन डॉलर अपने सॉफ्टवेयर कारोबार में हासिल हुए। वैश्विक स्तर पर उनके साफ्टवेयर ‘विंडोज’ का ही मार्केट शेयर 82.88 फीसदी है।

स्वच्छ भारत अभियान से जुडऩा चाहते हैं गेट्स

टॉयलेट के इस डिजाइन पर बिल गेट्स फाउंडेशन ने दो सौ मिलियन डॉलर खर्च किए हैं। इतनी ही धनराशि और खर्च करने का इरादा है। गेट्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रभावित हैं और इसमें योगदान करना चाहते हैं। भारत में सात करोड़ पचास लाख टॉयलेट बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि स्वच्छ भारत मिशन के तहत बीते चार सालों में 85 मिलियन टॉयलेट बनाए जा चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक स्वच्छ भारत मिशन से पहले खुले में शौच से मुक्त केवल 39 फीसदी आबादी थी जो अब 95 फीसदी हो गई है। आंकड़ों के मुताबिक देश के चार लाख पचास हजार गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं।

‘ह्यूमन वेस्ट’ से तैयार होगी खाद

वर्ष 2011 में गेट्स फाउंडेशन ने एक ऐसा टॉयलेट बनाने का विचार तैयार किया जो सूरज की रोशनी में मल को खत्म कर दे। इसी विचार के तहत बिल गेट्स अपने नये टॉयलेट को आकार दिया है। इसमें ‘ह्यूमन वेस्ट’ से खाद तैयार होगी। चीन में 2020 तक 64 हजार पब्लिक टॉयलेट को बिल गेट्स अपने नये टॉयलेट से ‘रिप्लेस’ करेंगे। 2013 में डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नालॉजी, मिलिंडा गेट्स फाउडेशन एवं बायोटेक्नालॉजी इंडस्ट्रीज रिसर्च काउंसिल ने मिलकर इस नए तकनीक वाले टॉयलेट पर भारत में काम शुरू किया। 2014 मार्च में इन लोगों ने मिलकर एक प्रदर्शनी लगाई जिसका नाम था ‘रि इनवेट द टॉयलेट।’

स्वच्छता न होने की इतनी बड़ी कीमत

गेट्स फाउंडेशन का मानना है कि भारत में हर साल छह लाख लोग स्वच्छता न होने के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं। सेनिटेशन की कमी से भारत को प्रतिवर्ष जीडीपी के छह फीसदी की क्षति उठानी पड़ती है। टॉयलेट की कमी की वजह से 25 फीसदी लड़कियां स्कूल छोड़देती हैं। स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों, मानव श्रम की क्षति आदि का खामियाजा देश को सालाना 106 बिलियन डॉलर के नुकसान के रूप में उठाना पड़ता है। पांच साल से कम आयु के आधे बच्चों पर स्वच्छता न अपना पाने के चलते सालाना दो सौ बिलियन डॉलर दवाओं के मद में खर्च करना पड़ता है।

दस में तीन के पास टॉयलेट नहीं

आंकड़ों के मुताबिक भारत मेंदस में से तीन लोग ऐसे हैं जिनके पास टॉयलेट नहीं है। विश्व जनसंख्या की बात करें तो मात्र 27 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनके पास घरों में शौचालय व सीवर है। दुनियाभर में नौ फीसदी ऐसी बीमारियां हैं जो प्रदूषित पानी और स्वच्छता की कमी के नाते होती हैं। 2.3 बिलियन लोग वैश्विक स्तर पर प्रारंभिक स्वच्छता मानदंडों को पूरा नहीं कर पाते। दुनिया में 61 फीसदी लोग सुरक्षित सेनिटेशन सुविधाएं नहीं पा पाते हैं। आज भी दुनिया में 892 मिलियन लोग खुले में शौच के लिए अभिशप्त हैं। जबकि भारत में 522 मिलियन लोग खुले में शौच करते हैं।

देश में ८२ फीसदी गांव ओडीएफ

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि हर साल एक लाख बच्चे डायरिया की बीमारी के चलते मर जाते हैं। इनमें से 90 फीसदी बच्चों को सुरक्षित और साफ पानी नहीं मिल पाता है। भारत में एक हजार पर 43 बच्चे जिंदगी के पहले साल ही दम तोड़देते हैं। दुनिया भर में टायलेट न होने और प्रदूषित पानी की वजह से बीमारी तथा अन्य अनावश्यक मदों पर 223 बिलियन डॉलर का सालाना खर्च होता है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत पूरे देश को खुले में शौच की समस्या से मुक्त करना है। यह लक्ष्य २ अक्टूबर २०१९ तक हासिल भी करना है। अगस्त २०१८ तक भारत के कुलगांवों में से ८२ फीसदी ओडीएफ घोषित किए जा चुके हैं। स्वच्छ भारत मिशन के अगुवा परमेश्वरन अय्यर के अनुसार साढ़े चार लाख से ज्यादा गांव, ४५० जिले, २० राज्य व केंद्र शासित क्षेत्र ओडीएफ हो चुके हैं तथा ८४ मिलियन टॉयलेट का निर्माण किया जा चुका है।

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इस तरह हो सकता है उपयोग

प्रति वर्ष विश्व में टॉयलेटों से ३.८ ट्रिलियन लीटर मल व पानी निकलता है। इसका ट्रीटमेंट करके साफ पानी, नवीनीकृत ऊर्जा, आर्गेनिक उर्वरक व प्रोटीन प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं।

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बिग बिजनेस भी है टॉयलेट

टॉयलेट एक बिग बिजनेस भी है। तीन साल पूर्व विश्व की बड़ी कंपनियों, सोशल इन्वेस्टर्स, सैनीटेशन एक्सपट्र्स और नॉन प्रॉफिट संगठनों ने मिलकर टॉयलेट बोर्ड कोलिशन (टीबीसी) बनाया था। इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है। ये लक्ष्य है वर्ष २०३० तक विश्व को खुले में शौच से मुक्त कराना और विश्व की समूची आबादी को पर्याप्त व समान स्वच्छता उपलब्ध कराना। इस क्रम में ‘टॉयलेट इकोनॉमी’ में बेशुमार अवसर हैं।

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स्वच्छता का बिजनेस सिर्फ टॉयलेट की बिल्डिंग बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें टॉयलेट फिटिंग्स, वेस्ट मैनेजमेंट, स्मार्ट टेक्रोलॉजी और डेटा कलेक्शन का काम भी शामिल है। टीबीसी के अनुसार टॉयलेट इकोनॉमी में टॉयलेट फिटिंग्स, मरम्मत, हाइजीन प्रोडक्ट्स, टॉयलेट वेस्ट का कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन, प्रोसेसिंग और इसके जरिए उपयोगी प्रोडक्ट्स का निर्माण, कंज्यूमर व हेल्थ डेटा कलेक्शन व एनालिसिस आदि शुमार हैं। टीबीसी के कार्यकारी निदेशक शेरिल हिक्स के अनुसार स्वच्छता सिस्टम को स्मार्ट इकोनॉमी में परिवर्तित करने का यह सदी का सबसे बड़ा अवसर है।

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टायलेट्स की दुर्गंध दूर करने में भी बड़ा मौका

स्वच्छता इकोनॉमी में कैसे-कैसे अवसर हैं, इसका एक उदाहरण ‘फर्मेनिश’ कंपनी है जो परफ्यूम व ïफ्लेवर के बिजनेस में है। फर्मेनिश इंडिया के चेयरमैन सतीश राव के अनुसार टायलेट्स की दुर्गंध विकासशील देशों में बड़ी समस्या है। कंपनी इसमें बड़ा अवसर देख रही है। इसी तरह भारत में ‘स्वधा’ नामक कंपनी ग्रामीण क्षेत्रों में टॉयलेट निर्माण का बिजनेस कर रही है।

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री इन्वेंट दि टॉयलेट चैलेंज

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने २०११ में ‘वाटर, सैनीटेशन हंड हाइजीन’ प्रोग्राम शुरू किया था। इसका उद्देश्य था टॉयलेट टेक्रोलॉजी में नवोन्मेष करना। इसके तहत ऐसे टॉयलेट बनाने पर काम किया गया जो किसी भी जगह लगाए जा सकते हों। इस रिसर्च के तहत विश्व भर के १६ शोधकर्ताओं को गेट्स फाउंडेशन ने ‘री इन्वेंट दि टॉयलेट चैलेंज’ ग्रांट दी। ‘री इन्वेंट दि टॉयलेट चैलेंज’ का लक्ष्य था ऐसे टॉयलेट बनाना जिससे मानव वेस्ट से कीटाणु हटाकर बिजली, साफ पानी व पोषक तत्व बनाए जा सकें। ये टॉयलेट बिना बिजली, पानी या सीवर लाइन के काम कर सकें। इनकी लागत प्रतिदिन प्रति यूजर ३ रुपए साठ पैसे से कम आएगी। इससे शहरी गरीब क्षेत्रों में वित्तीय रूप से लाभप्रद स्वच्छता सेवाओं व बिजनेस को बढ़ावा मिल सकेगा। ऐसे टॉयलेट बनें जो विकसित व विकासशील यानी सभी देशों में प्रयोग किए जा सकें।

- अगस्त २०१२ में गेट्स फाउंडेशन ने सिएटल, वाशिंगटन स्थित अपने मुख्यालय में दो दिवसीय ‘री इन्वेंट दि टायलेट फेयर’ आयोजित किया जिसमें २९ देशों के प्रतिभागी शामिल हुए।

-अगस्त २०१३ में फाउंडेशन ने ‘री इन्वेंट दि टायलेट चैलेंज :चीन’ की घोषणा की जिसके तहत चीन में रिसर्च व नेक्स्ट जेनरेशन टॉयलेट बनाने के लिए ५ मिलियन डॉलर का निवेश किया गया।

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-अक्टूबर २०१३ में भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायो टेक्रोलॉजी विभाग, बायो टेक्रोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च एसिस्टेंस काउंसिल और गेट्स फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से ‘री इन्वेंट दि टायलेट चैलेंज :इंडिया’ लांच किया।

- मार्च २०१४ में नई दिल्ली में गेट्स फाउंडेशन व भारत सरकार की मेजबानी में ‘री इन्वेंट दि टायलेट फेयर’ आयोजित किया गया।

नीलमणि लाल

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